नैनीताल: कल सुबह ब्रह्म मुहूर्त में मां नंदा-सुनंदा आ जाएंगी भक्तों के बीच

नैनीताल: कल सुबह ब्रह्म मुहूर्त में मां नंदा-सुनंदा आ जाएंगी भक्तों के बीच

नैनीताल, अमृत विचार। सरोवर नगरी नैनीताल में मां नंदा-सुनंदा के 121वें महोत्सव का रंगारंग आगाज हो गया है। शुक्रवार को रामसेवक सभा के कलाकारों ने कदली वृक्ष से नैना देवी मंदिर में मां नंदा-सुनंदा की सुंदर प्रतिमाओं का निर्माण किया। अब शनिवार सुबह ब्रह्म मुहूर्त में मां नंदा-सुनंदा की प्रतिमाओं को भक्तों के दर्शन के लिए खोल दिया जाएगा।
 
मां की मूर्ति निर्माण में लगे चंद्र प्रकाश शाह ने बताया मां की मूर्ति धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मूर्ति को केले के पेड़ से बनाया जाता है। मूर्ति निर्माण में रुई,बांस,पाती का प्रयोग किया जाता है। मूर्ति निर्माण में करीब 24 घंटे से अधिक का समय लगता है। मां की प्रतिमाओं को सोने-चांदी के आभूषणों से सजाया जाता है जिसके बाद मूर्ति को रात 12 बजे नैना देवी मंदिर के मुख्य पंडाल में स्थापित किया जाता है। जहां ब्रह्म मुहूर्त में मां की प्रतिमाओं को भक्तों के दर्शन के लिए खोल दिया जाता है।

मां नंदा सुनंदा खुद धारण करती है अपना स्वरूप

मां नंदा सुनंदा की मूर्तियों का निर्माण कर रही आरती सम्मल बताती है वो करीब 10 वर्षों से मां नंदा सुनंदा की प्रतिमाओं का निर्माण करने हल्द्वानी से नैनीताल आती हैं पूर्व में डीएसबी कॉलेज में पढ़ाई के दौरान रामसेवक सभा से जुडीं इसके बाद से मूर्ति निर्माण के काम में उनकी रुचि बड़ी और 10 वर्षों से लगातार मां नंदा-सुनंदा की मूर्तियों का निर्माण कर रही हैं। आरती बताती हैं कि वो मूर्ति में केवल रंग भरने का काम करती हैं। मां नंदा सुनंदा अपना स्वरूप खुद धारण करती हैं। माँ का स्वरूप कभी हंसता हुआ होता है तो कभी दुख भरा जिससे अनुमान लगाया जाता है कि आने वाला साल कैसा होगा।

मूर्ति निर्माण में प्राकृतिक रंगों का होता है प्रयोग

मूर्ति के निमार्ण कर रहे कलाकार बताते हैं की मूर्ति निर्माण में जो भी रंग और सामान प्रयोग में लाए जाते है वो पुरी तरह से प्राकृतिक होते हैं। जिसको बांस,कपडा,रूई के प्रयोग से रंगा जाता है और डोले को नैनी झील में विसर्जित करने से झील में कोई दुष्परिणाम नहीं पड़ते।

 बकरी की बली के पीछे है रोचक कथा

वहीं जानकार बताते है की एक बार मां नंदा-सुनंदा अपने ससुराल जा रही थीं तभी राक्षस रूपी भैंस ने उनका पीछा करा जिससे बचने के लिए मां नंदा-सुनंदा केले के पेड के पिछे छुप गईं तभी वहां खडे बकरे ने उस केले के पेड के पत्तों को खा लिया। जिसके बाद राक्षस रूपी भैंस ने मां नंदा-सुनंदा को मार दिया। जिसके बाद से ही बकरी की बली देनी की भी प्रथा है और इस घटना के बाद से ही मां नंदा-सुनंदा की याद में मेला मनाया जाता है जिसमें मां अष्टमी के दिन स्वर्ग से धरती में अपने ससुराल आती हैं और कुछ दिन यहां रह कर वापस अपने मायके को लौट जाती हैं।