भीमताल: छह सौ रुपये में हुई थी रानीबाग की रामलीला प्रारंभ

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Published By Bhupesh Kanaujia
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भीमताल, अमृत विचार। कुमाऊं का हरिद्वार कहे जाने वाले रानीबाग मे रामलीला की शुरुआत 1976 मे बाललीला के साथ हुई थी। स्थानीय युवा मोहन चन्द्र मिश्रा ने लालटेन व पेट्रोमेक्स की रोशनी में लीला का आयोजन किया था।
 
कपड़े खरीदने के लिए पैसे न थे तो काठगोदाम रामलीला कमेटी से कपड़े उधार लिए गए थे । पहली रामलीला के लिए चंदे के रुप में महज 600 रुपये प्राप्त हुए थे। तब सबसे ज्यादा चंदा पांच रुपये मिला था, जो रानीबाग के पूर्व प्रधान रहे बद्रीदत नौगाईं ने दिया था ।
 
1978 से तख्त, बल्ली व पाइप की सहायता से स्टेज बना कर लीला का आयोजन शुरु हुआ । अस्सी के दशक में पक्का भवन बना । इसे चंदे की धनराशि से बनाया गया । सबसे अधिक चंदा बद्रीदत नौगाईं व गोपाल दत पाण्डे ने दिया । बीते 47 वर्षों में रामलीला के आयोजन में लाल सिंह बिष्ट, पान सिंह पनोरा, हरीश चन्द्र मेहरा, भगवान दास वर्मा, षष्ठी दत त्रिपाठी, नारायण लाल चौधरी, चन्द दत्त कर्नाटक, हीरा लाल साह, राजेन्द्र लाल साह, उमेश चन्द्र डबराल, हरीश लाल साह, मधुसूदन भट्ट , रामू बन गोस्वामी और लीलाधर बुढलाकोटी आदि ने सहयोग दिया । समय के साथ आगे बढती रामलीला आज अत्याधुनिक लाइट्स, साउंड आदि तक पहुंच गई है ।
 
रामलीला कमेटी के पूर्व सचिव दीपक नौगाईं बताते हैं कि पहले कई गाँवों के लोग मिलकर लीला का आयोजन किया करते थे तथा लोग दूर दूर से पैदल चलकर लीला देखने आते थे। लीला के पात्र मांसाहार व हर तरह के नशे से दूर रहते थे पर अब ऐसा नहीं है ।
 
पूर्व कलाकार प्रवीण मेहरा कहते है कि अब रामलीला मे कई तरह की विसंगतियां आ गई है। युवाओं मे रामलीला को लेकर पहला जैसा जज्बा नहीं रहा। अब तो कलाकार जुटाना मुश्किल हो जाता है। टीवी आने के बाद रामलीला देखने वाले दर्शकों की संख्या में भी कमी आई है ।

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