बरेली: खिदमत-ए-खल्क में वक्फ कर दी सकलैन मियां ने जिंदगी, 54 साल देश विदेश के लाखों लोगों को किया मुरीद
बरेली, अमृत विचार। नक्शबंदिया सिलसिले के बुजुर्ग शाह सकलैन मियां एक अजीम शख्सियत थे। इसका अंदाजा उनके साथ चलने वाले मुरीदों के सैलाब को देखकर लगाया जा सकता था। इंतकाल होने पर हर कोई मियां हुजूर का आखिरी दीदार करना चाहता है, मगर उनकी हयात के दौरान भी मुरीदों की नजर उनकी नूरानी चेहरे से नहीं हटती थीं। अदब और एहतराम का आलम यह था कि सकलैन मियां के मुरीद उन्हें मियां हुजूर कहकर पुकारते थे।
मौलाना मुफ्ती फहीम सकलैनी अजहरी की लिखी किताब तजकिरा-ए-मशाइखे कादिरिया मुजद्दिदिया शाफतिया के मुताबिक मियां नक्शबंदिया सिलसिले के ही बुजुर्ग शाह बशीर मियां अपनी हयात के दौरान मोहल्ला गुलाबनगर में रहते थे। उन्होंने मियां हुजूर के दादा शाह शराफत अली मियां को बुलाया और अपने सिर पर बंधी दस्तार उतारकर उनकी तरफ बढ़ाई और कहा आपके घर पोता होने वाला है। घर जाएं और इस दस्तार का कुर्ता बनवाकर पोते को पहनाएं। जिसके बाद वह बरेली से ककराला पहुंचे, 13 मार्च 1947 को सकलैन मियां की पैदाइश हुई। वालिदा हज्जन सिद्दीका खातून ने इस्लामी और रूहानी माहौल में सकलैन मियां की तरबियत की। शुरुआती तालीम वालिद सूफी शाह शुजाअत अली मियां से हासिल की। चार साल की उम्र में शराफत मियां सकलैन मियां को ककराला से बरेली ले आए।
वर्ष 1964 में शराफत मियां ने सकलैन मियां को खिलाफत से नवाजा। 1969 में शराफत मियां के विसाल के बाद 22 साल की कम उम्र में दरगाह शाह शराफतिया के सज्जादानशीन बने। तबसे लेकर अब तक 54 साल तक सकलैन मियां ने नक्शबंदिया सिलसिले की रवायतों को न सिर्फ आगे बढ़ाया बल्कि खिदमत-ए-खल्क को अंजाम देते रहे। उनके एक बेटे गाजी मियां हैं।
गरीबों के लिए हमेशा खुला रहा दरबार
सकलैन मियां गरीब अमीर से बिना भेद-भाव के आस्ताने पर मिलते थे। उन्होंने तमाम गरीब लड़कियों की शादी कराई। उनकी सरपरस्ती में कई दर्जन संस्थान, मदरसे चल रहे थे। हजरत शाह सकलैन एकेडमी के अलावा कई तंजीमें समाज और कौम के लिए नेक काम कर रही हैं।
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