बरेली: शहर से लेकर देहात तक धूमधाम से मनाया गया गोवर्धन पूजा

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Published By Vishal Singh
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बरेली,अमृत विचार। आज कार्तिक महीने की प्रतिपदा तिथि को हमारे समूचे देश में गोवर्धन पूजा बड़े ही धूमधाम और हर्षोल्लास के साथ मनाई जा रही है। जिसके लिए गांवों से लेकर शहरों तक महिलाओं ने सुबह ही गाय के गोबर से घरों में गोवर्धन स्थापित किए। जिसमें गोवर्धन पर्वत, गायें और ग्वाले समेत अन्य स्वरूपों को बनाया गया। इसके साथ ही परंपरा के अनुसार अन्य कार्य किए गए।

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वहीं इस पर्व के अवसर पर बरेली शहर के तमाम परिवारों में गोवर्धन स्थापित कर उनकी पूजा की गई। साथ ही जनपद में भुता क्षेत्र के मगरासा गांव में महिलाओं ने भी आज सुबह घर-आंगन को साफ करके गाय के गोबर से गोवर्धन बनाए। जिसमें गायें, ग्वाले और गोवर्धन पर्वत को स्थापित किया। इसके साथ ही कन्याओं ने रंगोली घरों को सजाया।

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इसको लेकर मगरासा में गोवर्धन स्थापित करने वाली लीलावती बताती हैं कि उनके परिवार की बेटियों ने मिलकर घर में गोवर्धन स्थापित कराए हैं। हमारे त्योहारों में अब नई पीढ़ी भी पूरे जोश के साथ बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रही है। वहीं रंगोली बनाने वाली 12वीं की छात्रा रुचि गंगवार बताती हैं कि उनके परिवार में गोवर्धन रखे जाने की बहुत पुरानी परंपरा है, जो आज भी चली आ रही है।

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वहीं वीना गंगवार बताती हैं कि सुबह को जब गोवर्धन रखे जाते हैं, तो उनकी दिन में पूजा-अर्चना की जाती है, जबकि रात में गांव-मोहल्ले के बच्चे, नौजवान और बुजुर्ग गोवर्धन रखे गए स्थान पर अपनी टोली के साथ पहुंचते हैं। इस दौरान सभी मिलकर लोकगीत गाकर गौधन जगाते हैं। जिसके बाद गोवर्धन स्थापित करने वाले लोग उन लोगों को खील-खिलौना और बतासे समेत तमाम सामग्री से बने प्रसाद को बांटते हैं।

आपको बता दें कि गोवर्धन पूजा को लेकर एक पौराणिक कथा है, जिसके तहत प्राचीन काल में ब्रजवासी भगवान देवराज इंद्र की पूजा इसलिए करते थे, क्योंकि उनके द्वारा की गई वर्षा से फसलें और गौधन यानी गाएं और बैलों के लिए घास आदि होती थी। वहीं उनकी पूजा न करने पर वह अधिक वर्षा कर देते थे, जिससे प्रलय आ जाती थी।

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यह बात बाल्यकाल में जब भगवान श्रीकृष्ण को पता चली, तो उन्होंने ब्रजवासियों को देवराज इंद्र की पूजा न कराकर गोवर्धन पर्वत की पूजा कराई। जिसका परिणाम यह हुआ कि इंद्रदेव ने अति वर्षा से बाढ़ ला दी। जिससे बचाने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने अपने हाथ की सबसे छीटी अंगुली से गोवर्धन पर्वत को ऊपर उठाकर ब्रजवासियों को बचाने के लिए आश्रय दिया। जिसके इस करिश्मा से देवराज इंद्र का घमंड चूर-चूर हो गया।

इस दौरान भगवान कृष्ण ने सभी से कार्तिक मास की प्रतिपदा को गोर्धन पर्वत और गोवंश की पूजा करने को कहा। जिसके बाद से लगातार इस दिन गोवर्धन पूजा होती आ रही है।

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