नैनीताल: अप्रैल में होगी नैनी झील में पांच साल से बंद सेलिंग रिगाटा

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Published By Bhupesh Kanaujia
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चन्द्रेक बिष्ट, नैनीताल,अमृत विचार। देश-विदेश से नैनीताल आने वाले सैलानियों को नैनी झील और उसमें तैरने वाली याट यानी पाल नौकाएं बेहद आकर्षित करती हैं। यह नौकाएं जब झील में तैरती हैं तो नैनी झील के सौन्दर्य में चार चांद लग जाते हैं। जब नैनी झील में सेलिंग रिगाटा प्रतियोगिता का आयोजन होता है तो इसे देखने के लिए स्थानीय लोगों सहित पर्यटकों की भीड उमड पडती है। 113 साल पुराना नैनीताल याट क्लब कोविड काल से आज तक स्थगित हुई सैलिंग रिगाटा प्रतियोगिता का आयोजन आगामी अप्रैल माह में करा रहा है। 

बता दें कि नैनी झील विश्व की सबसे ऊंचाई वाली सैलिंग रिगाटा खेल की झील भी है। नैनी झील में अंग्रेजों ने वर्ष 1880 में इंग्लैड से दो पाल नौकाएं लाकर दौड़ाई गई। अंग्रेजी शासनकाल के दौरान नैनीताल 1862 से उत्तर प्रांत अवध की ग्रीष्मकालीन राजधानी बन गई। वर्ष 1897 नैनी याट क्लब की नीव रखी गई। वर्ष 1910 में विध्निवत नैनीताल याट क्लब की स्थापना कर सेलिंग रिगाटा प्रतियोगिता शुरू की गई। मालूम हो कि सैलिंग रिगाटा खेल में नैनी झील को विश्व की सबसे ऊंचाई वाले झील का तमगा मिला है।

यहां खास बात यह है कि रिगाटा के लिए हवा की दिशा बेहतर मानी गई। इन्हीं विशेषताओं को देखते हुए 1910 में अंग्रेजों ने नैनीताल याट क्लब की स्थापना कर बोट हाउस क्लब से सैलिंग रिगाटा यानी पाल नौका दौड़ का हर वर्ष अक्टूबर में आयोजन षुरू किया। इस क्लब से तत्कालीन अंग्रेज गवर्नर्स सर हरकोर्ट बटलर, सर विलियम मैरिस व सर मेलकम हैली, नैनीताल क्रिस्टल लाज निवासी राजा गिरीराज सिंह, मेजर कैरे, केप्टन एस कैरे व तत्कालीन मेरठ के कमिश्नर विलियम्स जुड़े। इस प्रतियोगिता में आजादी पूर्व समर रिगाटा का नाम भी दिया गया था।

पांच साल से स्थगित प्रतियोगिता आगामी अप्रैल माह में होगी : वीर श्रीवास्तव 
नैनीताल। याट क्लब नैनीताल के कामाडोर वीर श्रीवास्तव ने बताया कि कोविड काल से स्थगित सेलिंग रिगाटा प्रतियोगिता का आयोजन आज तक नही किया जा सका। अब यह आयोजन अगले साल अप्रैल में किया जा रहा है। 10 याटों को तैयार किया जा रहा है। याट क्लब द्वारा आयेाजित इस प्रतियोगिता में भारत वर्ष की तमिलनाडु, मुम्बई, नैनीताल व सिकन्दराबाद की विश्व प्रसिद्ध टीमें हिस्सा लेती हैं। हमारा मकसद नैनीताल को साहसिक पर्यटन के साथ जोड़ कर विश्व पर्यटन के नक्शे में लाना है।  

नैनीताल। नैनी झील में अंग्रेजों ने वर्ष 1880 में इंग्लैड से दो पाल नौकाएं डाली। तब वह अपना पाल नौकायन का शौक पूरा करते थे। 1897 में नैनी सैलिंग क्लब की स्थापना की गई। विश्व के याट क्लबों की मान्यता मिलने के बाद 1910 में यह नैनीताल याट क्लब के नाम से जाने जाना लगा।1862 से नैनीताल उत्तर प्रांत अवध की ग्रीष्मकालीन राजधानी बन गई। नैनीताल में सचिवालय बन जाने से अंग्रेज अधिकारी अपनी-अपनी याटों से नौकायन करते थे। चूंकि इंग्लैंड में पाल नौका दौड़ बेहद प्रचलित खेल है, लिहाजा नैनीताल में इस खेल का प्रचलन हुआ। 1947 में आजादी मिलने के बाद कुछ समय तक नैनी झील में पाल नौकाएं गायब रही, इन्हें अंग्रेज अपने साथ ले गये। नैनीताल क्रिस्टल लाज निवासी राजा गिरीराज सिंह ने विदेश से नाव खरीद कर याट क्लब को दी। राजा इस खेल के एक्सपर्ट माने जाते थे। प्रो. अजय रावत, इतिहासविद् नैनीताल।

1842 में इंग्लैड से पहली नाव लाकर नैनी झील में उतारी गई
नैनीताल। 1841 में पी बैरन ने नैनीताल की खोज की। नैनी झील व यहां की भौगोलिक बनावट से बैरन इतना प्रभावित हुआ कि 1842 में उसने इंग्लैड से नाव लाकर नैनी झील में उतार दी। नर सिंह थोकदार के स्वामित्व वाले नैनीताल को महज 20 रूपये में खरीद लिया। बताया जाता है कि नर सिंह को उसने नाव में बैठा कर डुबाने की धमकी दी। एक स्टाम्प में नर सिंह के दस्तखत करा कर नैनीताल का स्वामित्व ईस्ट इंडिया कम्पनी के नाम करा दिया। इसके बाद यहां अंग्रेजों ने बसना शुरू कर दिया। 1857 के गदर के बाद अंग्रेजों का यहां बसना तेज हो गया। पश्चिमी देशों में याटिंग का खेल खूब प्रचलित था। लिहाजा 1880 में इंग्लैड से याट लाकर नैनीताल झील में उतारी गयी।

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