बरेली: गोलियां चलती रहीं...कारसेवक बढ़ते रहे, विवादित ढांचा आखिर में गिराकर ही माने
बरेली, अमृत विचार। कभी कार सेवकों ने परिकल्पना भी नहीं की थी की अयोध्या में भगवान श्री राम के इतने सुंदर और भव्य मंदिर का निर्माण होगा। सालों पहले राम मंदिर का सपना देखने वाले कारसेवक आज बहुत ही खुश हैं। 1990 के दशक में बरेली से अयोध्या गए कारसेवकों को अलग ही अनुभूति हो रही है। क्योंकि वे किस तरह अयोध्या पहुंचे थे और किन-किन यातनाओं का सामना करना पड़ा, आज भी उनके जहन में ताजा है।

3 दिसंबर 1992 में अयोध्या के लिए बरेली से हजारों की संख्या में कारसेवक गए थे। जिनमें विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल समेत तमाम हिंदू संगठनों के कार्यकर्ता शामिल थे।
उन दिनों याद ताजा करते हुए उस समय विश्व हिंदू परिषद के महामंत्री रहे सतीश शर्मा ने बताया कि उनके साथ बजरंग दल के अधिवक्ता पूरनलाल प्रजापति कारसेवकों की व्यवस्था करने गए थे। जबकि प्रदीप रूहेला सभी के आने जाने की व्यवस्था करते थे। उन सभी ने वह भयावह स्थिती देखी जब कारसेवकों पर गोलियां बरसाई गई थीं। लेकिन सभी ने किसी तरह अपने आप को बचाते हुए स्थिति का सामना किया। उस दौरान एक बाबा की बस सारे बैरियर तोड़ते हुए 'घटनास्थल' पर पहुंच गई थी।

वहीं आगे कारसेवकों पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसाई जा रही थीं। उस दौरान किसी तरह कारसेवक अशोक सिंधल के नेतृत्व में हनुमान अखाड़े में रुक गए। लेकिन गोलियां लगातार चलती रहीं। तभी उन लोगों के साथ मौजूद एक कारसेवक ने पुलिस पर पत्थर फेंकने का प्रयास किया। रोकने के बाद भी नहीं रुका और छज्जे पर आ गया। इस दौरान पुलिस की गोली उसका सिर चीरती हुई निकल गई। वहीं दो नवंबर को एक बार फिर कारसेवकों ने पहुंच कर विवादित ढांचा गिराने का प्रयास किया। लेकिन पुलिस ने आंसू गैस के गोले और गोलियां दागनी शुरू कर दीं। कभी कारसेवक आगे बढ़ते तो कभी पीछे हटते।

इस दौरान अपनी जान बचा कर मढ़ीराम की छावनी में छिपे दो कोठारी भाइयों की पुलिस की गोली लगने से मौत हो गई। जिसके बाद वहां कर्फ्यू लग गया और बरेली से गए लोग दिगम्बर अखाड़े में रुक गए। उसके बाद जब माहौल शांत हुआ तो सभी 7 नबंवर को भगवान राम के दर्शन करने के बाद बरेली की ओर रवाना हुए। उसके बाद काफी दिनों तक वह खुद को बचाकर इधर-उधर भटकते रहे। लेकिन दूसरी ओर पुलिस कारसेवकों के परिवार को परेशान कर रही थी। आज यह सभी लोग काफी प्रफुल्लित हैं। उनकी मनोकामपा पूर्ण हुई।

उमा भारती के हटते ही चली थीं गोलियां
जिस दिन कार सेवको पर गोलिंया बरसाई गईं। उस समय उमा भारती वहां मौजूद थीं। पुलिस और कारसेवकों के बीच उमा भारती को छुड़ाने के लिए खींचातानी हुई। रामभक्तों पर डंडे बरसाने के बाद साध्वी उमा भारती को हिरासत में ले लिया गया और कारसेवकों पर पुलिस ने गोलियां दागना शुरू कर दिया। जिससे वहां भगदड़ मच गई और गोली लगने से कई जानें गईं। साथ ही कई घायल हुए।
बंदरों ने बचाई थी बस में सवार रामभक्तों की जान
अयोध्या में कोई कारसेवक न जा सके। इसके लिए पुलिस ने जगह-जगह नाकाबंदी कर दी थी। यही नहीं तारों से बैरिकेडिंग कर उसमें करंट छोड़ दिया गया था। कारसेवकों से भरी बस जैसे ही तारों के पास पहुंची, वहां बंदर आ गए और तारों को हिला दिया। जिससे तार पोल से हट गए और राम भक्त बच गए। इस घटना को याद कर आज भी उनको विश्वास नहीं होता की उनकी जान भगवान श्री राम की सेना ने बचाई।

बरेली के सैकड़ों रामभक्तों ढहाया था विवादित ढांचा, ईटों को भी नहीं छोड़ा वहां
बरेली से आदित्य शर्मा, धर्मेंद्र रस्तोगी, प्रदीप रोहेला, अशोक शर्मा, कुंवर हर प्रसाद उर्फ ललुआ समेत सैकड़ों कारसेवक 3 दिसंबर को बरेली से रवाना हुए थे। लेकिन उन्हें 250 किलोमीटर पहले ही रोक दिया गया। उसके बाद वह लोग पैदल ही निकल पड़े और 6 दिसंबर को अयोध्या पहुंच गए। वहां तय किया गया की सभी केवल भजन करते हुए एक-एक मुट्ठी रेत देकर कार सेवा करेंगे। लेकिन लाखों की संख्या में मौजूद कारसेवकों को यह बात नागवार गुजरी और उन्होंने विवादित ढांचे को ढहा दिया। विवादित ढांचे के गुंबद इतने मजबूत थे कि छेनी भी तिरछी पड़ गई। लेकिन फिर भी जब तक विवादित ढांचे को गिरा नहीं दिया गया, तब तक कारसेवक पीछे नहीं हटे। उसके बाद कारसेवकों ने वहां अस्थाई मंदिर बनाकर भजन आदि किया और मस्जिद की ईटें तक अपने साथ ले आए।

बाहर पड़ा होता था, ताला अंदर होती थी मीटिंग
किला के रहने वाले प्रदीप रोहेला ने बताया कि 90 और 92 के दौर में जब वह लोग रणनीति बनाते थे। तब पुलिस के डर से बाहर ताला डाल दिया जाता था। जब बाहर टहलते बच्चों से पूछा जाता था, तो वह पुलिस को गुमराह करने के लिए मीटिंग पहले हो जाने की बात कहते थे और पुलिस चली जाती थी।
कुछ घंटे पहले दिया जाता था पास, पहचान के लिए थे कोडवर्ड
कार सेवकों को अयोध्या भेजने से पहले उनके परिचय पत्र बनाए जाते थे। लेकिन यह अंतिम समय में बनाए जाते थे। ताकि इसकी गोपनीयता भंग न हो। इसके साथ ही इनके अलग कोडवर्ड भी बने हुए थे। जिससे आपस में सभी एक दूसरे को पहचान सकें।

मंदिर तक पहुंचने के लिए निकाली थी नकली अर्थी
राममंदिर तक पहुंचने के लिए रामभक्त हर प्रयास कर रहे थे। कभी खादर तो कभी जंगलों के रास्ते पैदल जा रहे थे। जब वह अयोध्या के पास पहुंच गए तो उन्हें कोई रोके, इसके लिए उन्होंने सरयू तक जाने के लिए नकली अर्थी बनाकर शव यात्रा निकाल कर जाने लगे। लेकिन रामभक्तों का उत्साह देखकर पुलिस भांप गई की अर्थी नकली है और रामसेवकों को रोका दिया गया।
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