हल्द्वानी: अब्दुल मलिक पर 26 साल पूर्व भी लगी थी रासुका 

वर्ष 1998 में बरेली के भोजीपुरा थाने में विभिन्न संबंधित धाराओं समेत रासुका में दर्ज हुई थी एफआईआर 

हल्द्वानी: अब्दुल मलिक पर 26 साल पूर्व भी लगी थी रासुका 

हल्द्वानी, अमृत विचार। बनभूलुपरा दंगे के मास्टर माइंड अब्दुल मलिक का आपराधिक इतिहास काफी लंबा-चौड़ा है। राजद्रोह, हत्या, बलवा, हत्या का प्रयास और कानून की धज्जियां उड़ाना आदि अपराधों की कई धाराओं में वह पहले भी नामजद रह चुका है। उस पर लगभग 26 वर्ष पूर्व पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) में भी एफआईआर दर्ज हो चुकी है। 

शहर के पुराने जानकारों के अनुसार,  सपा नेता अब्दुल मतीन सिद्दीकी का छोटा भाई अब्दुल रऊफ सिद्दीकी राजनीति में उभर रहा था। जुझारू और मिलनसार रऊफ ने कम समय में ही शहर की राजनीति में अपनी अलग पहचान बना ली थी। उसकी लोकप्रियता को देखते हुए समाजवादी  युवजन सभा का जिलाध्यक्ष बनाया गया था। इस वजह से वह राजनीति में कइयों, खासकर बनभूलपुरा के कुछ मुस्लिमों नेताओं की आंखों की किरकिरी बन गया था। 

19 मार्च 1998 को रऊफ सिद्दीकी अपने साथी चन्द्रमोहन सिंह और त्रिलोक बनौली के साथ कार से लखनऊ जा रहा था। बरेली के समीप भोजीपुरा थाना क्षेत्र के अंतर्गत एक वाहन से उसकी कार को टक्कर मारी गई। जैसे ही कार पलटी वैसे ही भाड़े के शूटर्स ने रुऊफ पर ताबड़तोड़ फायरिंग कर दी।

हमले में रऊफ की मौके पर ही मौत हो गई थी, जबकि दोनों साथी घायल हो गए थे। रऊफ हत्याकांड की भोजीपुरा थाने में अब्दुल मलिक समेत सात नामजद के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई थी। रऊफ की मौत के बाद हल्द्वानी में कई दिनों तक बाजार बंद रहे थे। तब मलिक पर हत्या, रासकुा समेत कई संगीन धाराओं में एफआईआर दर्ज हुई थी।

पुलिस और गिरफ्तारी से बचने को मलिक ने अपने रसूख से सीबीसीआईडी ट्रांसफर करा दी थी जांच
रऊफ की हत्या के बाद पुलिस ने अब्दुल मलिक की गिरफ्तारी के शिकंजा कसना शुरू कर दिया था। अब्दुल मलिक ने सत्ता में अपनी ऊंची दखल से इस प्रकरण की जांच पुलिस से सीबीसीआईडी को ट्रांसफर करा दी थी। सीबीसीआईडी जांच के आदेश के बाद अब्दुल मलिक समेत सभी भूमिगत आरोपी हल्द्वानी आ गए थे। 

मलिक की गिरफ्तारी पर हुई थी पत्थरबाजी, आगजनी
रऊफ की हत्या के समय नैनीताल के एसएसपी नासिर कमाल थे। रऊफ की हत्या के बाद ईद की नमाज अता करने ईदगाह गए एसएसपी का अब्दुल मलिक से आमना-सामना हुआ। एसएसपी को हत्यारोपी का खुलेआम घूमना नागवार गुजरा। उन्होंने मलिक को गिरफ्तार करने का जिम्मा तत्कालीन बनभूलपुरा चौकी इंचार्ज योगेश दीक्षित को सौंपा। पुलिस एक पुराने मामले में गिरफ्तारी वारंट लेकर अगले ही दिन मलिक के लाइन नंबर 8 स्थित घर पहुंच गई।

मलिक को सीबीसीआईडी जांच के चलते गिरफ्तारी का खतरा नहीं था। जब इंचार्ज ने गिरफ्तारी वारंट दिखाया तो वह दंग रह गया । जब पुलिस मलिक को जिप्सी में लेकर घर से निकली तो उसके हिमायती सड़़क पर आ गए। हालिया बनभूलपुरा उपद्रव की तरह कुछ ही देर में विरोध प्रदर्शन, पत्थरबाजी व आगजनी में बदल गया। बनभूलपुरा में घंटों बवाल हुआ। बाहर जाने वाले रास्तों पर  ठेले, बैरियर, वाहन खड़ा कर दिए गए, लेकिन पुलिस फिर भी मलिक को गिरफ्तार कर ले गई। उस बलवे में एसपी सिटी पुष्कर सिंह सैलाल समेत कई पुलिस कर्मी घायल हुए थे।

जब गवर्नर के साथ हेलीकॉप्टर में उड़कर लखनऊ पहुंचा था मलिक
अब्दुल मलिक की राज्य ही नहीं, केंद्र की सत्ता में दखल बताई जाती है। जब सूरजभान उत्तर प्रदेश के राज्यपाल बन पहली बार लखनऊ पहुंचे तो मलिक भी उनके साथ हेलीकॉप्टर में सवार था। अमौसी हवाई अड्डे पर तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने राज्यपाल का स्वागत किया था। मलिक की राज्यपाल और मुख्यमंत्री के साथ फोटो अखबारों में प्रकाशित हुई थी।  इसके बाद पुलिस प्रशासन में हड़कंप मच गया था। शासन ने तुरंत ही सीबीसीआईडी जांच करने का आदेश निरस्त कर दिया था।

अब्दुल मलिक का आपराधिक इतिहास
1.वर्ष 1983 में आईपीसी की धारा 147, 148, 307, 323 में केस दर्ज
2.वर्ष 1986 में आईपीसी की धारा 452, 427, 323, 504, 506 में केस दर्ज
3.वर्ष 1991 में आईपीसी की धारा 323, 504 में केस दर्ज
4.वर्ष 1998 में आईपीसी की धारा 307 में केस दर्ज
5.वर्ष 1998 में बरेली के भोजीपुरा थाने में आईपीसी की धारा 147, 148, 149, 302, 307, 427 में केस दर्ज