कूटनीति की ताकत

कूटनीति की ताकत

वर्ष 2024 वैश्विक राजनीति में मील का पत्थर साबित होने जा रहा है। अमेरिका और रूस-चीन के गठबंधन के बीच टकराव ही वैश्विक और क्षेत्रीय तनावों और समीकरणों की दशा-दिशा तय करेगा। आने वाले वर्षों में दुनिया के समीकरणों में बहुत अहम बदलाव होने जा रहे हैं। ये बदलाव भू-राजनीतिक और भू-आर्थिक क्षेत्रों में भारत के तय उभार से और अधिक रेखांकित होंगे।

दुनिया इस जटिल और उभरते भू-राजनीतिक मंजर के साथ तालमेल बिठाने के लिए जूझ रही है, अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में सत्ता और निर्णय प्रक्रिया की ताकत के पारंपरिक संतुलन में बहुत बड़े बदलाव देखने को मिल सकते हैं जिनसे वैश्विक प्रशासन में एक नए युग की शुरुआत का पता चलता है।

चीन-भारत संबंध संतुलन की स्थिति में पहुंचना, इसे बरकरार रखना बड़ी चुनौती होगी। आर्थिक मोर्चे पर एक ऐसा समय आएगा जब चीन की अर्थव्यवस्था वृद्धि नहीं करेगी और भारत की अर्थव्यवस्था आगे बढ़ेगी। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने शुक्रवार को ‘रायसीना संवाद’के एक परिचर्चा सत्र में चीन की ‘चाल’ के खिलाफ आगाह किया और कहा कि भारत को संतुलन की स्थिति पर बेहतर शर्तें पाने के लिए अन्य कारकों का उपयोग करने के अपने अधिकारों का परित्याग नहीं करना चाहिए।

मौजूदा भू-राजनीतिक माहौल, वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में ऐसा बदलाव ला रहा है, जो स्थायी हैं। ये ऐसा तथ्य है,जो अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और आर्थिक समीकरणों को नया आकार दे रहा है। रायसीना संवाद जियो-पॉलिटिक्स और भू-इकोनॉमी पर आधारित एक वार्षिक सम्मेलन है जिसका उद्देश्य दुनिया के सामने आने वाले सबसे चुनौतीपूर्ण मुद्दों का समाधान करना है।

विदेश मंत्री जयशंकर ने कहा कि जी-20 की अध्यक्षता के दौरान एक बड़ी शक्ति के रूप में भारत की छवि उभर कर सामने आई। विवादास्पद मुद्दों के समाधान के लिए वैश्विक बहुपक्षीय प्रणाली में आमूल-चूल सुधार होना चाहिए। उन्होंने कहा कि वैश्विक नियम एकपक्षीय हित में नहीं होने चाहिए। अपनी बढ़ती अर्थव्यवस्था और आबादी, सामरिक रूप से अहम भौगोलिक स्थिति और बढ़ते प्रभाव की वजह से भारत, विश्व मंच पर अधिक अहम भूमिका निभाने जा रहा है।

ये उभार न केवल भारत के अपने विकास का प्रतीक है, बल्कि ये एक व्यापक चलन यानी, अंतर्राष्ट्रीय मामलों को आकार देने में ग्लोबल साउथ की बढ़ती भूमिका का भी संकेत है। पिछले आठ सालों से इस सम्मलेन में करीब 100 देशों के प्रतिनिधि शामिल होते आए हैं।

ऐसे में इस कार्यक्रम के जरिए भारत सरकार अपनी कूटनीतिक क्षमता को बढ़ा रही है। भारत सरकार इस कार्यक्रम के जरिए अंतर्राष्ट्रीय संबंधों और मुद्दों को लेकर अपनी नीति दुनिया के सामने स्पष्ट करती है। सम्मेलन भारत की कूटनीतिक सफलता को दर्शाता है।