डब्ल्यूटीओ नीतियां
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किसानों के निशाने पर विश्व व्यापार संगठन भी है। उनकी मांग है कि सरकार भारत को विश्व व्यापार संगठन और मुक्त व्यापार समझौतों से बाहर निकाले। सोमवार को पंजाब व हरियाणा के किसानों ने राजमार्गों के किनारे कई स्थानों पर ट्रैक्टर खड़े करके प्रदर्शन किया।
यह कदम ऐसे समय उठाया गया है जब किसान फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी गारंटी समेत विभिन्न मांगों को लेकर केंद्र पर दबाव बनाने के लिए आंदोलन कर रहे हैं। आंदोलन कर रहे किसानों ने डब्ल्यूटीओ की नीतियों की आलोचना की और उन्हें ‘किसान विरोधी’ बताया। उन्होंने दावा किया कि डब्ल्यूटीओ की नीतियों के कारण सरकार सभी फसलों पर एमएसपी नहीं दे रही है।
दरअसल वर्ष 1994 से विश्व व्यापार समझौता कृषि क्षेत्र में लागू हुआ। समझौते का उद्देश्य कृषि क्षेत्र को सरकारी नियंत्रण से मुक्त कर उत्पाद एवं व्यापार का निजीकरण करना था। डब्ल्यूटीओ का नियम कहता है कि विश्व व्यापार संगठन से जुड़े सदस्य देशों को अपने कृषि उत्पाद को दी जाने वाली घरेलू मदद की मात्रा को सीमित करना चाहिए। जबकि डब्ल्यूटीओ के नियम किसानों की मांग से विपरीत हैं।
गौरतलब है विकसित राष्ट्रों ने अपने किसानों को भारी सहायता जारी रखी। एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में प्रति किसान 300 डॉलर की सब्सिडी दी जाती है जबकि अमेरिका में यही सब्सिडी प्रति किसान 40,000 डॉलर की मिलती है। इससे विकसित देशों के किसानों की व्यक्तिगत उत्पादन लागत कम हुई और बाजारों में कम कीमत पर अपने उत्पादों को बेचकर भी वे मुनाफे में रहे वहीं हमारे किसान अपनी अत्यधिक कृषि लागत और कम बाजार भाव के कारण ऋणग्रस्त होते गए।
किसानों के आंदोलन करने का उद्देश्य ही यही है कि उन्हें एमएसपी, फसलों की खरीद और पब्लिक डिस्ट्रिब्यूशन सिस्टम को लेकर कानूनी गारंटी दी जाए। सवाल है कि विश्व व्यापार समझौतों के तहत सरकारी खरीद तथा समर्थन मूल्य को कम कर दिए जाने से किसान बेबस और लाचार हो गए। क्या डब्ल्यूटीओ का कृषि समझौता खाद्य सुरक्षा नीति के विरुद्ध होने के साथ ही देश की नीति-निर्धारण की संप्रभुता में हस्तक्षेप भी है।
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