संवेदनशील मामलों में लापरवाही न बरते ट्रिब्यूनल: हाईकोर्ट

संवेदनशील मामलों में लापरवाही न बरते ट्रिब्यूनल: हाईकोर्ट

प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने संवेदनशील मामलों में मोटर एक्सीडेंट क्लेम ट्रिब्यूनल के विवेकहीन और यांत्रिक व्यवहार पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि  बिना सोचे-समझे यांत्रिक रूप से आदेश पारित करना ट्रिब्यूनल का निहायत ही लापरवाह रवैया प्रदर्शित करता है। जहां परिवार अपने किसी सदस्य को खो देता है और आर्थिक दबाव झेल रहा होता है, ऐसे में ट्रिब्यूनल द्वारा मामले की तत्कालिकता को न समझना उसकी असंवेदनशीलता जाहिर करता है। 

इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में दिशा-निर्देश जारी किया था, जिससे दावेदारों विशेषकर नाबालिगों और निरक्षर लोगों के हितों की रक्षा की जा सके। इसका यह अर्थ नहीं है कि याचियों के आवेदन पर विचार करते समय ट्रिब्यूनल को कठोर हो जाना चाहिए। 

उक्त आदेश न्यायमूर्ति मनीष कुमार निगम की पीठ ने ऐदल सिंह और एक अन्य की याचिका को स्वीकार करते हुए पारित किया। मौजूदा मामले में याचियों ने वर्ष 2015 में अपने बेटे को खो दिया। उस समय उन पर विवाह योग्य तीन बच्चों की जिम्मेदारी थी। वर्ष 2015 में हुई दुर्घटना का अवार्ड वर्ष 2017 में पारित किया गया और पैसा फिक्स डिपॉजिट में निवेश कर दिया गया। 

याचियों ने जून 2023 में बेटी की शादी हेतु फिक्स्ड डिपॉजिट में जमा धनराशि जारी करने के लिए आवेदन दाखिल किया। इस तथ्य का प्रमाण ट्रिब्यूनल के सामने दिया गया, लेकिन ट्रिब्यूनल, बुलंदशहर ने क्रमशः दो आदेश पारित कर आधी राशि याचियों को प्रदान करने और शेष राशि को पुनः फिक्स्ड डिपॉजिट में जमा करने का आदेश दिया। 

उक्त आक्षेपित आदेश को याचियों ने हाईकोर्ट में चुनौती दी और उसे रद्द करने की मांग की। कोर्ट ने भी माना कि फिक्स्ड डिपॉजिट में निवेश बरकरार रखने का निर्देश नहीं दिया जा सकता है। याची प्रार्थना के अनुसार राशि पाने के हकदार हैं। अतः ट्रिब्यूनल को निर्धारित धनराशि और उस पर अर्जित ब्याज तुरंत याचियों को देने का निर्देश दिया गया।