बरेली: खेत न मिट्टी...सब्जी-फलों की खेती से सालाना 80 लाख का कारोबार

पीलीभीत रोड पर अपने तीन मंजिला घर में हाइड्रोपोनिक खेती की शुरुआत कर रामवीर कई राज्यों में फैला चुके हैं अपना कारोबार

बरेली: खेत न मिट्टी...सब्जी-फलों की खेती से सालाना 80 लाख का कारोबार

महिपाल गंगवार, बरेली। न खेत है न मिट्टी, फिर भी फल और सब्जियां उगाई जा रही हैं। पीलीभीत रोड पर पासपोर्ट ऑफिस के पास रहने वाले रामवीर सिंह ने अपने तीन मंजिला घर को ही अपना खेत बना रखा है। घर के कोने-कोने में सब्जियों और फलों की फसलों की हरियाली दिखाई दे रही है। इजराइल की हाइड्रोपोनिक तकनीक पर करीब आठ साल पहले शुरू की गई इस खेती की बदौलत उनका सालाना कारोबार 80 लाख तक पहुंच गया है। रामवीर की यह उपलब्धि इतनी बड़ी मिसाल बन गई है कि विदेशों से भी लोग उसे देखने पहुंचते हैं।

रामवीर के घर में हर तरफ सब्जियों और फलों का अंबार उनके जुनून की कहानी बयां कर रहा है। घर का छज्जा पालक, धनिया और फूल गोभी से भरा हुआ है तो बालकनी में स्ट्रॉबेरी, ब्लैकबेरी और शिमला मिर्च की फसल लहलहा रही है। करीब दो सौ वर्ग गज में बने उनके तीन मंजिला घर में 12 हजार से ज्यादा पौधे लगे हुए हैं। घर पर हाइड्रोपोनिक खेती का प्रयोग सफल होने के बाद रामवीर ने बड़ा बाईपास के पास दो एकड़ का एक फार्म भी बना लिया। वहां भी उन्होंने हाइड्रोपोनिक तकनीक के जरिए करीब 18 हजार पौधे लगा रखे हैं। रामवीर के मुताबिक इजराइल की हाइड्रोपोनिक तकनीक का उपयोग अब देश के बड़े शहरों में भी गति पकड़ रहा है।

रामवीर के मुताबिक पिछले बरसों में गुजरात, पुणे, मध्यप्रदेश, इंदौर समेत देश के कई राज्यों में उनकी साझेदारी में हाइड्रोपोनिक तकनीक से खेती के लिए फार्म खोले गए हैं। सोशल मीडिया से उनकी इस खेती की जानकारी मिलने के बाद लोग अब विदेश से भी उसे देखने पहुंचते हैं। बरेली में उनके फार्म हाउस पर दो साल में तीन लोग विदेश से आ चुके हैं।

दोस्त के चाचा को कैंसर, फिर दुबई की सैर, रामवीर को ले गई अद्भुत खेती की ओर
रामवीर सिंह बताते हैं कि उनके एक दोस्त के चाचा 2012 में कैंसर होने के बाद इलाज के लिए अस्पताल गए तो डॉक्टरों ने अनुमान जताया कि फलों और सब्जियों में केमिकल इसका कारण हो सकता है। इसके बाद 2016 में वह दोस्तों के साथ दुबई गए तो वहां हाइड्रोपोनिक सिस्टम देखा जिसमें बिना मिट्टी शुद्ध और पोषणयुक्त खेती की जा रही थी। यह देखते ही उन्हें अपने दोस्त के चाचा को कैंसर होने की घटना याद आई और उन्होंने भी इसकी शुरुआत करने का फैसला कर लिया। भारत लौटने के बाद रामवीर हाइड्रोपोनिक खेती के बारे में और जानकारी जुटाने में लग गए। सोशल मीडिया की मदद लेने के साथ उन्होंने कई राज्यों का भ्रमण किया और फिर दिल्ली के इंडियन एग्रीकल्चर रिसर्च इंस्टीट्यूट में विशेषज्ञों से भी मिले। इसके बाद अपने घर पर ही पूरा सिस्टम तैयार किया और खेती शुरू कर दी।

बाजार नहीं मिला तो खोले रेस्टोरेंट
रामवीर का कहना है कि हाइड्रोपोनिक तकनीक से खेती में एक ही दिक्कत उनके सामने आई, वह यह कि उगाई गई सब्जियों-फलों का स्थानीय स्तर पर उपयुक्त बाजार उन्हें नहीं मिला। इसका तोड़ भी उन्होंने निकाला। जहां-जहां फार्म और रिजॉर्ट खोले गए, वहां-वहां रेस्टोरेंट भी चालू कर दिए। इनमें आने वाले लोगों को केमिकल रहित फल और सब्जी खिलाते हैं।

पाइप में उगाए जाते हैं पौधे
हाइड्रोपोनिक खेती पाइपों के जरिए होती है। पाइप में ऊपर छेद कर पौधे लगाए जाते हैं। पाइप में पानी होता है जिसमें पौधों की जड़ें डूबी रहती हैं। पानी में ही पौधों की जरूरत के मुताबिक पोषक तत्व घोल दिए जाते हैं। यह तकनीक गाजर, मूली, शिमला मिर्च, मटर, स्ट्रॉबेरी, ब्लैकबेरी, ब्लूबेरी, तरबूज, खरबूज, अनन्नास, अजवाइन, तुलसी, टमाटर, भिंडी जैसे छोटे पौधों वाली फसलों के लिए उपयुक्त है।

हानिकारक केमिकल से मुक्त
इस खेती में हानिकारक पेस्टीसाइड या खाद का प्रयोग नहीं होता। पौधे को जरूरी प्रकाश छत से मिलता है। नाइट्रोजन, फास्फोरस, कैल्शियम, मैग्नीशियम, सल्फर, पोटेशियम, कॉपर, जिंक आदि 16 पोषक तत्वों को पानी में मिलाकर पौधों तक पहुंचाया जाता है। रामवीर ने बताया कि शिमला मिर्च, ब्रोकली और फूलगोभी के लिए वह जर्मन कंपनी के न्यूट्रिएंट्स इस्तेमाल करते हैं।

पानी की 90 प्रतिशत बचत
हाइड्रोपोनिक खेती के जरिए पानी की 90 प्रतिशत तक बचत की जा सकती है। परंपरागत खेती की तुलना में कम जगह में ज्यादा पौधे उगाए जा सकते हैं। पोषक तत्व बर्बाद नहीं होते। पानी में इस्तेमाल किए जाने से पोषक तत्व पौधों को आसानी से मिल जाते हैं। इस तकनीक से पौधे मौसम, जानवर या किसी और बाहरी जैविक या अजैविक कारणों से प्रभावित नहीं होते।

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