कासगंज में विकसित होने लगी कछुए की कॉलोनी, शुरू हुआ सर्वे 

कासगंज में विकसित होने लगी कछुए की कॉलोनी, शुरू हुआ सर्वे 

गजेंद्र चौहान, कासगंज। संरक्षण के अभाव में जीव जंतुओं की कई प्रजातियां धीमे-धीमे विलुप्त होती जा रही हैं। ऐसे में कुछ जिम्मेदारों ने गंभीरता दिखाई है। डब्ल्यू डब्ल्यू एफ( वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड ) एवं वन विभाग ने संयुक्त रूप से प्रयास करते हुए कासगंज में कछुआ कॉलोनी विकसित करने का काम शुरू कर दिया है।

उत्तर प्रदेश के हस्तिनापुर, शाहजहांपुर, और अलीगढ़ के बाद अब कासगंज में ही कछुआ कॉलोनी विकसित की जा रही है। कासगंज की है कॉलोनी सबसे आधुनिक रहेगी और इसके बाद अन्य जिलों में भी यहां किए गए प्रयासों से सीख लेकर कार्य किया जाएगा। फिलहाल सर्वे भी शुरू कर दिया गया है।

कछुआ कॉलोनी विकसित करने का प्रयास काफी लंबे समय से किया जा रहा था। गंगा किनारे कछुआ के अंडे किसानों की अनदेखी के कारण नष्ट हो जाते थे। किसान गंगा नदी के किनारे खेती करते हैं और पालेज लगाते हैं। इस दौरान कृषि यंत्र का प्रयोग करते हैं तो उन्हें कछुओं के अंडों का ध्यान नहीं रहता। यही कारण रहा है कि धीमे-धीमे कछुए की प्रजाति नष्ट होती जा रही है, क्योंकि कछुआ सदैव नदी और नहरों के किनारे ही पाया जाता है। 

नहरों में तो कछुआ अपनी क्रांतिक अवस्था के बाद पहुंचता है, लेकिन मुख्य रूप से उसका जन्म नदी किनारे बालू में होता है। कछुए की प्रजाति अंडे से विकसित होती है। एक बार में कई अंडे देते हैं, लेकिन इन अंडों की पहचान किसान नहीं कर पाते और वे अपने कृषि कार्य के दौरान इन अंडों को नष्ट कर देते हैं। वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड की टीम ने एक सर्वे के दौरान काफी समय पहले पाया कि किसानों को यदि जागरुक कर दिया जाए तो विलुप्त होती है कछुए की प्रजाति बचाई जा सकती है।

 इसके लिए उत्तर प्रदेश के चार जिलों का चयन किया गया। जिसमें शाहजहांपुर, हस्तिनापुर, अलीगढ़ और कासगंज शामिल हैं। इन जिलों में कछुआ की कॉलोनी बनाई जा रही है। हस्तिनापुर और शाहजहांपुर में कॉलोनी विकसित भी की जा चुकी है।

कासगंज में इसकी स्थापना का काम शुरू हो गया है। साथ ही किसानों को जागरूक किया जा रहा है और उन्हें प्रशिक्षण देने के अलावा कछुआ का सर्वे किया जा रहा है कि किस-किस क्षेत्र में कछुए कितने-कितने अंडे दे रहे हैं और इन अंडे को कहां किस तरह संरक्षित किया जाना है। फिलहाल कॉलोनी विकसित करने का काम गंगा नदी किनारे गांव दतलाना के समीप किया जा रहा है।

हर परिवार का अलग होगा घर
वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड की टीम गंगा नदी किनारे सर्वे कर रही है और देख रही है कि कितने अंडे कहां-कहां हैं। कितनी संख्या में कछुआ को बचाया जा सकता है। इसी के आधार पर छोटे-छोटे घर बनाए जाएंगे। हर परिवार का अपना अलग घर होगा। जितने परिवार होंगे, उन परिवारों की अलग-अलग निगरानी रहेगी और इनके संरक्षण के लिए दिन-रात कर्मचारियों की तैनाती रहेगी।

इस तरह बनेगी कॉलोनी विशेषज्ञों का कहना है कि कछुए की प्रजाति धीमे-धीमे इसलिए विलुप्त हो रही है कि बालू में अंडे देने वाले कछुए को तापमान भी संतुलित नहीं मिल पा रहा है। तापमान को संतुलित करने के लिए कॉलोनी में पूरे इंतजाम किए जाएंगे। जीव जंतु इन अंडों को नुकसान न पहुंचाएं, इसके लिए प्रत्येक परिवार के घर पर बांस की जाली का सुरक्षा चक्र रहेगा।

कॉलोनी में जन्मेंगे, तालाब में पलेंगें और गंगा में बढ़ेंगे
डब्ल्यू डब्ल्यू की टीम का प्लान काफी बेहतर है, क्योंकि जो कॉलोनी बनाई जा रही है उसमें अंडों से निकलकर कछुए जन्म लेंगे। मई, जून तक इन अंडों से कछुए निकल आएंगे। उसके बाद कछुआ के बच्चों को एक तालाब में छोड़ जाएगा। जिसमें वे पलेंगें, क्योंकि नदी में इनको छोड़ गया तो बह जाएंगे और परिवार से बिछड़ जाएंगे, लेकिन जब यह विकसित हो जाएंगे तो आगामी सर्दी के मौसम के नवंबर माह में गंगा नदी में छोड़ दिया जाएगा और अपने परिवार के साथ वह यहां अपना जीवन जिएंगे।

नदी को नया जीवन देते हैं कछुए
विशेषज्ञों का कहना है कि कछुए नदियों को नया जीवन देते हैं। यह नदियों में प्राकृतिक रूप से प्रदूषण करने वाले वाली वस्तुओं को नष्ट कर देते हैं और इन्हीं के कारण नदियां अविरल रहती हैं। इनका पानी स्वच्छ रहता है। कछुआ नदी मित्र होते हैं।

कछुए की कॉलोनी विकसित की जा रही है। काम शुरू हो गया है। सर्वे भी शुरू हो गया है। इन दिनों कछुआ के अंडे तलाशे जा रहे हैं। मई, जून तक अंडों से बच्चे निकल आएंगे। फिर एक तालाब में इन बच्चों को छोड़ा जाएगा। जब यह विकसित हो जाएंगे तो उन्हें गंगा नदी में छोड़ दिया जाएगा। कछुआ नदी मित्र हैं---राजेश बाजपेई, सीनियर कोऑर्डिनेटर डब्ल्यूडब्ल्यूएफ।

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