संवेदनशील स्थानों पर असामाजिक काम करने वालों की तैनाती उचित नहीं: हाईकोर्ट

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Published By Sachin Sharma
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प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सीआईएसएफ के एक सदस्य के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही को रद्द करने की मांग को लेकर दाखिल याचिका पर विचार करते हुए कहा कि वर्तमान मामले में परिस्थितिजन्य साक्ष्य के आधार पर वस्तुनिष्ठ सामग्री उपलब्ध है, जो तस्करी गतिविधियों में सम्मिलित याची की गिरफ्तारी को उचित ठहराती है। 

याची के आतंक और भय के कारण उसके खिलाफ यूनिट का कोई अन्य सदस्य गवाही देने के लिए तैयार नहीं है। इसका यह अर्थ नहीं है कि याची निर्दोष है। याची का अपराध स्वयंसिद्ध है। अतः न्यायमूर्ति जे जे मुनीर की एकल पीठ ने हसनदीन की याचिका को खारिज कर दिया। याची ने वर्ष 1999 में सीआईएसएफ में कांस्टेबल के रूप में नियुक्ति प्राप्त की थी। वह चौथी बटालियन सरकारी, अफीम फैक्ट्री, गाज़ीपुर में कांस्टेबल जीडी यूनिट के रूप में तैनात था। 

गाजीपुर में उसकी पोस्टिंग के दौरान पुलिस स्टेशन जैतपुरा, वाराणसी द्वारा अन्य दस आरोपियों के साथ याची के खिलाफ एक प्राथमिकी दर्ज कराई गई थी, जिसमें आरोप लगाया गया कि याची अवैध रूप से अफीम का व्यापार करता है। कोर्ट ने मुख्य रूप से कहा कि ऐसे असामाजिक कार्य करने वाले को एक सदस्य के रूप में यूनिट में रखना न केवल यूनिट के लिए घातक है बल्कि उन प्रतिष्ठानों को भी अत्यधिक खतरे में डालता है जहां वह तैनात है। 

मालूम हो कि सीआईएसएफ एक केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल है इन्हें हवाई अड्डों बंदरगाहों,परमाणु ऊर्जा विभाग के इकाइयों, अंतरिक्ष विभागों, मेट्रो रेल, बिजली लौह उद्योग जैसे संवेदनशील स्थानों और स्टेशनों पर तैनात किया जाता है।

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