शाहजहांपुर: सरकार NCERT किताबें चलाने पर दे रही जोर, अधिकांश दुकानों से कोर्स गायब

शाहजहांपुर: सरकार NCERT किताबें चलाने पर दे रही जोर, अधिकांश दुकानों से कोर्स गायब

बंडा, अमृत विचार। शिक्षा का मौलिक अधिकार हर किसी को है, गरीब-अमीर सभी को समान रूप से शिक्षा का अवसर मिले, इसी नीति के तहत सरकार ने एनसीईआरटी का पाठ्यक्रम लागू करने का निर्देश स्कूलों के प्रबंधन को दे रखा है, पर सरकार का यह निर्देश केवल कागजों तक सिमटकर रह गया है। दुकानों से एनसीईआरटी का कोर्स गायब है। 

स्कूल प्रबंधन के मनमुताबिक महंगे दामों पर बच्चों को कोर्स पकड़ाया जा रहा है। वहीं अभिभावक बच्चों के भविष्य को लेकर चुप हैं, लेकिन दबी जुबान अपना दर्द भी बयां कर रहे हैं।

नए शैक्षिक सत्र की शुरूआत हो चुकी है और इसी के साथ ही प्रत्येक वर्ष की तरह इस बार भी अभिवावकों की जेब पर डाका डाले जाने का काम शुरू हो गया है। अभिभावकों के पास नए कोर्स के लिए फोन जाने शुरू हो गए हैं। बच्चों के एडमिशन से लेकर उनकी ड्रेस और पाठ्यक्रम के लिए स्कूल प्रबंधन की ओर से अभिवावकों से फोन पर लगातार संपर्क करके नए सत्र का कोर्स लेने के लिए कहा जा रहा है। पहले से ही इंग्लिश मीडियम स्कूलों की फीस अभिभावकों की जेब पर भारी पड़ रही है। 

दूसरी ओर प्रत्येक वर्ष नए कोर्स की शुरूआत के साथ ही बदलता पाठ्यक्रम अभिभावकों के लिए भारी पड़ रहा है। अभिभावकों पर अतिरिक्त बोझ न पड़े, इसलिए सरकार ने एनसीईआरटी का पाठ्यक्रम लागू किया था लेकिन एनसीईआरटी की किताबें अभिभावकों को ढूंढ़ने से भी नहीं मिल पा रही है। तब फिर स्कूल प्रबंधन वैकल्पिक कोर्स के तहत अपने मन का कोर्स लाने की सलाह दे देता है, इसके लिए भी अभिभावकों को एक निश्चित दुकान पर पहुंचना पड़ता है, तब कहीं जाकर कोर्स मिल पाता है।  

चलता है कमीशनखोरी का मोटा खेल
एनसीईआरटी की किताबे निजी प्रकाशकों के मुकाबले सस्ते दर पर मिल जाती है लेकिन इनमें  न तो दुकानदारों को ज्यादा फायदा दिखता है और न ही स्कूलों के प्रबंध तंत्र को। इसलिए वर्तमान समय में एनसीईआरटी कि किताबें कोई भी स्कूल प्रबंधन पढ़ाने को तैयार नहीं है। हर साल स्कूलों की ओर से ऐसे प्रकाशनों की किताबें स्कूलों में चलाई जाती हैं जिन्हें कोई अभिभावक बाजार में न ढूंढ सके। 

फिर इन पाठ्यक्रमों में मनमाना मुनाफा वसूलते हैं, जिसका मोटा कमीशन स्कूलों को भी जाता है। बच्चों के एडमिशन के दौरान अभिवावकों को स्कूलों की अपनी निजी दुकानों का पता बता दिया जाता है जिससे किताबों पर भी कमाई की जा सके। फिलहाल इंग्लिश मीडियम स्कूलों की मनमाने के चलते हर साल अभिभावकों की जेबों पर बोझ पड़ रहा है।

ड्रेस के लिए भी निर्धारित हैं दुकानें
कॉपी-किताबों के साथ ही ड्रेस में मुनाफा कमाने की ललक भी दिखाई देती है, बच्चों की ड्रेस भी उन्हीं दुकानों पर मिलती है, जिन दुकानों पर स्कूलों का पहले से ही कमीशन तय होता है, इसलिए ड्रेस निश्चित दुकानों के अलावा अन्य दुकानों पर नहीं मिलती हैं।

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