हल्द्वानी: श्रीनाथ जी मैं अटल विहारी…अभी रात को दिल्ली निकलना है व्यवस्था कराइए

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Published By Bhupesh Kanaujia
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वरिष्ठ आरएसएस कार्यकर्ता वेद प्रकाश अग्रवाल ने बताया वर्ष 1955-56 का संस्मरण

हल्द्वानी, अमृत विचार। तब भाजपा नहीं थी, जनसंघ था और हम रामलीला मोहल्ले में पुराने लकड़ी के बने हुए मकान में रहा करते थे। वर्ष 1955-56 में स्याह काली सर्द रात…समय करीब 2 बजे अचानक दरवाजे पर दस्तक हुई और एक आवाज सुनाई दी श्रीनाथ जी…श्रीनाथ जी दरवाजा खोलिए। यह आवाज अटल विहारी वाजपेयी की लगी।

जब दरवाजा खोला तो सामने अटल विहारी वाजपेयी खड़े थे। पिता जी (श्रीनाथ अग्रवाल) उन्हें घर में अंदर लेकर आए तो अटल विहारी वाजपेयी ने कहा कि मुझे अभी दिल्ली निकलना है, बहुत जरूरी काम है मेरी दिल्ली जाने की व्यवस्था करवाइए। तब आज की तरह बसें और ट्रेन नहीं थीं।

मैं और मेरे पिता जी शिव शंकर अग्रवाल के ताऊ के घर रेलवे बाजार  पहुंचे। उनसे दिल्ली जाने के लिए वाहन के इंतजाम के बारे में पूछा। इस पर उन्होंने बताया कि आलू का एक ट्रक दिल्ली जा रहा है सुबह तक पहुंच जाएगा। ट्रक का ड्राइवर सरदार था। उसको बताया कि अटल विहारी वाजपेयी साथ में जाएंगे तो वह बड़ा खुश हो गया। बल्ले-बल्ले बादशाहो मैं अटल नूं दिल्ली ले जावूंगा। फिर हम तुरंत घर पहुंचे।

अटल जी से पूछा कि आप खाना खाएंगे लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया। फिर एक गिलास दूध पिया और  ट्रक की ओर चल दिए। आलू के ट्रक से दिल्ली रवाना कराया। यह संस्मरण वेद प्रकाश अग्रवाल ने सुनाया।

वह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के जिला संघ संचालक भी रह चुके हैं। वह बताते हैं कि भारत रत्न एवं पूर्व प्रधानमंत्री अटल विहारी वाजपेयी कई बार उनके घर पर आए। जनसंघ के अध्यक्ष मौलिक चंद शर्मा, पं. दीन दयाल उपाध्याय, लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, कलराज मिश्रा जैसे कई वरिष्ठ नेताओं का उनके घर आना जाना था। 

….जब मौलिक चंद शर्मा का बिस्तर कंधों पर लादकर पहुंचे अटल विहारी वाजपेयी
वेद प्रकाश अग्रवाल बताते हैं कि 1952-54 के बीच मौलिक चंद्र शर्मा जनसंघ के अध्यक्ष थे। एक बार वह हल्द्वानी आए तो साथ में अटल विहारी वाजपेयी भी थे। शर्मा हल्द्वानी स्टेशन पर उतरे तो पीछे अटल विहारी वाजपेयी भी उतरे और उनके कंधों पर शर्मा का बिस्तर बंद था। फिर बाजार से होते हुए अल्मोड़ा की रवाना हो गए।

 वह बताते हैं कि 25 जून 1975 को पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी लगा दी थी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ बैन कर दिया था। इमरजेंसी लगने के करीब एक सप्ताह बाद 3 जुलाई को पुलिस उनके घर पहुंच गई। वह संघी और जनसंघी को पकड़ कर जेल में डाल रही थी। रात करीब 12 बजे पुलिस उन्हें पकड़ने पहुंची तो इसकी भनक लग गई। वह पीछे के दरवाजे से भाग गए जबकि शिवशंकर अग्रवाल, सुधीर कांत खंडेलवाल, सूर्य प्रकाश अग्रवाल और दान सिंह बिष्ट गिरफ्तार हुए। बाद में छह-छह माह के अंतराल पर रिहा होते रहे।

उधर गांधी की हत्या हुई, इधर पिता को भी जेल भेज दिया
वह बताते हैं कि नाथूराम गोडसे ने 30 जनवरी 1948 को महात्मा गांधी की हत्या की थी। तब राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को बैन कर दिया गया और संघ कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारियां शुरू हो गईं। तब पुलिस ने उनके पिता श्रीनाथ अग्रवाल को भी गिरफ्तार किया और वह 6 माह तक बरेली के केंद्रीय कारागार में रहे। बाद में दूसरे सर संघ चालक माधवराव सदाशिव राव गोलवलकर ने संघ का संविधान लिखकर जमा किया और पुलिस भी महात्मा गांधी की हत्या में संघ का कनेक्शन नहीं जोड़ सकी। इसके बाद उनके पिता को जेल से बरी किया गया।

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