Lok Sabha Election 2024: भाजपा ने मनोवैज्ञानिक बढ़त बनाई, 400 पार के नारे ने बदला विमर्श...
कानपुर में भाजपा ने मनोवैज्ञानिक बढ़त बनाई 400 पार के नारे ने बदला विमर्श
कानपुर, अमृत विचार। मतदाता संवाद और मतदाताओं के व्यवहार की पड़ताल में यह बात साफ निकलकर सामने आई कि भाजपा ने चुनाव शुरू होने से पहले ही ‘अबकी बार 400 पार’ का नारा गढ़कर मनोवैज्ञानिक बढ़त बना ली है। भाजपा नीत गठबंधन की साइकोलॉजिकल इलेक्शन वार की यह रणनीति जमीन पर नजर भी आती है।
चाय-पान की दुकान हो या मार्निंग वॉकर का समूह चर्चा भाजपा गठबंधन को 400 सीटें मिलेंगी या नहीं, इसी बात पर ज्यादा है। प्रधानमंत्री मोदी ने भाजपा के लिए 370 सीट और राजग गठबंधन के लिए 400 पार की बात करके लोगों के दिमाग में जीत और हार की चर्चा का विमर्श ही बदल दिया है। सारी बहस जैसे बात जीत के नंबर पर जा टिकी है।
मतदाता को प्रभावित करने के लिए धारणा की नींव पर माहौल का महल
कहते हैं कि प्रेम, युद्ध और राजनीति में सब जायज़ है। शायद इसी के चलते आज चुनाव भी मनोवैज्ञानिक युद्ध की तरह लड़े जा रहे हैं। वोटर को प्रभावित करने में सारा खेल धारणा का हो गया है। धारणा की नींव पर ही माहौल का महल खड़ा किया जा रहा है।
टीवी पर प्राइम टाइम में आने वाली बहसें इसमें महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रही हैं। मतदाता मनोविज्ञान पर काम करने वाले विवेक द्विवेदी कहते हैं कि जिस तरह युद्ध जीतने के लिए छद्म प्रयास किए जाते हैं आज उसी तरह भ्रमपूर्ण वातावरण बनाकर मतदाता को मनोवैज्ञानिक रूप से प्रभावित किया जा रहा है। सोशल मीडिया इस काम में बड़ा हथियार बन गया है।
20 प्रतिशत : लोग परिवारवादी या वंशवादी राजनीति को उचित नहीं मानते हैं, लेकिन बातचीत में डायनेस्टी लीडर्स की लोकप्रियता से प्रभावित नजर आते हैं।
38 प्रतिशत : मतदाता अपना मत चुनने से पहले दिमाग में जाति, धर्म, समुदाय, फायदा, प्रत्याशी से रिश्ते का ध्यान रखते हैं ।
34 प्रतिशत : लोगों में करिश्माई नेता के प्रति आकर्षण सबसे ज्यादा है। प्रत्याशी की पर्सनालिटी में भी इस बात को देखकर वोट देने का फैसला करते हैं।
08 प्रतिशत : लोगों की उलझन है कि पार्टी पसंद है लेकिन उम्मीदवार नहीं। ऐसे लोग प्रत्याशी की पहचान में खुद को तलाशते हैं। वो उनके जैसा हो, या उनके बीच से निकला हो।
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