एक और सफलता

एक और सफलता

रक्षा क्षेत्र के आधुनिकीकरण में आत्मनिर्भर भारत एक सराहनीय पहल है। भारत उन कुछ देशों में से एक है जिसने चौथी पीढ़ी के लड़ाकू विमान, परमाणु पनडुब्बी,  सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल  प्रणाली, मुख्य युद्धक टैंक और स्वदेशी बैलिस्टिक मिसाइल रक्षा प्रणाली का डिजाइन निर्माण एवं उत्पादन किया है। 

शनिवार को भारतीय सेना ने  कहीं भी ले जाने और कहीं से भी दुश्मन के टैंक को निशाना बनाने में सक्षम स्वदेश निर्मित ‘मैन-पोर्टेबल एंटी-टैंक गाइडेड मिसाइल’ (एमपीएटीजीएम) हथियार प्रणाली का सफल परीक्षण किया, जिससे उसे सेना के शस्त्रागार में शामिल करने का मार्ग प्रशस्त हो गया है। यह प्रणाली अब अंतिम उपयोगकर्ता मूल्यांकन परीक्षणों के लिए तैयार है। इस हथियार प्रणाली को रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ)ने विकसित किया है। यानि डीआरडीओ ने एक और सफलता हासिल की है। 

वास्तव में सफल परीक्षण के लिए डीआरडीओ और भारतीय सेना की प्रशंसा की जानी चाहिए। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने  इसे आधुनिक प्रौद्योगिकी आधारित रक्षा प्रणाली के विकास में आत्म-निर्भरता हासिल करने की ओर महत्वपूर्ण कदम बताया। भारतीय रक्षा उद्योग कई अत्याधुनिक रक्षा सामान बनाता है और 85 से अधिक देशों को निर्यात करता है। 

यह वास्तव में गर्व की बात है कि स्वदेशी रूप से विकसित बख्तरबंद वाहन, सुपरसोनिक मिसाइल ब्रह्मोस, वायु रक्षा प्रणाली आकाश, स्वदेशी लड़ाकू विमान एलसीए तेजस और कई अन्य हथियार प्रणालियों ने कई मित्र विदेशी देशों की रुचि को आकर्षित किया है। 

उद्योग उत्साहित और सकारात्मक है कि सरकार, सशस्त्र बलों और उद्योग के सहयोगात्मक प्रयासों से भारत में तकनीकी रूप से उन्नत और प्रतिस्पर्धी रक्षा उद्योग पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण होगा। यह पारिस्थितिकी तंत्र हमारे अपने सशस्त्र बलों के साथ-साथ हमारे कई मित्र विदेशी देशों की सभी वर्तमान और भविष्य की आवश्यकताओं को पूरा करने में सक्षम होगा। युद्ध की प्रकृति और शैली बदल रही है।

 इसलिए रक्षा क्षेत्र में प्रौद्योगिकी के उपयोग से आधुनिक युद्ध तथा राष्ट्रीय सुरक्षा प्रभावित होती है। भारत इन प्रगतियों का प्रभावी ढंग से लाभ उठा सकता है। अब भारत की कई रक्षा और अंतरिक्ष क्षेत्र की कंपनियां, डिजाइन तैयार करने, कल-पुर्ज़ों के निर्माण और उनकी असेंबली और अपनी वैश्विक ज़रूरतों के मुताबिक सिस्टम से जोड़ने के मामले में अमेरिका की बड़ी कंपनियों के साथ मिलकर काम कर रही हैं। 

एक दशक पहले की तुलना में आज दोनों देशों के इकोसिस्टम तालमेल के लिए कहीं बेहतर स्थिति में हैं, ताकि वो इन व्यवस्थाओं को औद्योगिक सहयोग के नए स्तर तक ले जा सकें। रक्षा निर्माण में आत्मनिर्भरता व निर्यात को प्रोत्साहित करने के लिए किए जा रहे प्रयासों की सराहना की जानी चाहिए।

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