शपथ ग्रहण में विदेशी अतिथि

शपथ ग्रहण में विदेशी अतिथि

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाले केंद्रीय मंत्रिमंडल के शपथ ग्रहण समारोह में पड़ोसी देशों और हिंद महासागर क्षेत्र के प्रमुख नेताओं का शामिल होना चीन और पाकिस्तान जैसे विरोधी पड़ोसियों को कड़ा संदेश दे गया। शपथ ग्रहण समारोह में हिस्सा लेने के लिए नेताओं की यात्रा, भारत की ‘पड़ोसी पहले’ नीति और ‘सागर’ दृष्टिकोण को प्रदान की गई सर्वोच्च प्राथमिकता के अनुरूप है। 

समारोह में श्रीलंका, मालदीव के राष्ट्रपति, सेशेल्स के उपराष्ट्रपति, बांग्लादेश, मॉरीशस, नेपाल और भूटान के प्रधानमंत्री शामिल हुए। विदेशी नेताओं में मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू की यात्रा महत्वपूर्ण मानी जा रही है, क्योंकि यह भारत और मालदीव के बीच संबंधों में जारी तनाव के समय हुई है। चीन समर्थक माने जाने वाले मुइज्जू के राष्ट्रपति के रूप में पदभार संभालने के बाद से भारत और मालदीव के बीच संबंध तनावपूर्ण बने हुए हैं। 

उधर भारत द्वारा चीन और पाकिस्तान को शपथ ग्रहण में न बुलाना हमारी स्पष्ट विदेश नीति और कूटनीति की ओर इशारा करता है। चीन और पाकिस्तान के साथ भारत के द्विपक्षीय संबंध विवादास्पद मुद्दों से ग्रस्त रहे हैं, जिनमें पाकिस्तान से उत्पन्न आतंकवाद चिंता का एक प्रमुख विषय है।

चीन ‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स’ नीति के तहत भारतीय महासागर क्षेत्र में बुनियादी ढांचे के प्रोजेक्ट को आक्रामक रूप से बढ़ा रहा है और तेजी से नौसैनिक ठिकानों और बंदरगाहों का निर्माण कर रहा है। अपनी इस नीति के जरिए चीन पड़ोसी देशों पर हावी होने की कोशिश कर रहा है। 

गौरतलब है पड़ोसी देशों को प्राथमिकता देना भारत की विदेश नीति का केंद्रीय सिद्धांत रहा है। पड़ोसी देशों के साथ सहयोग हिंद महासागर क्षेत्र में चीनी प्रभाव का मुकाबला करने में भारत के रणनीतिक हितों की पूर्ति करता है। समुद्री सुरक्षा को सशक्त करने के लिए मालदीव, श्रीलंका और बांग्लादेश जैसे पड़ोसी देशों के साथ प्रभावी सहयोग आवश्यक है। साथ ही मिशन ‘सागर’ हिंद महासागर क्षेत्र के लिए भारत की रणनीतिक पहल है।

इसे 2015 में शुरु किया गया था। सागर के माध्यम से भारत अपने समुद्री पड़ोसियों के साथ आर्थिक और सुरक्षा सहयोग को मज़बूत करने और उनकी समुद्री सुरक्षा क्षमताओं के निर्माण में सहायता करना चाहता है। इसके अलावा भारत अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करना चाहता है और हिंद महासागर क्षेत्र में समावेशी, सहयोगी तथा अंतर्राष्ट्रीय कानून का सम्मान करना सुनिश्चित करता है। 

चीन के साथ संबंधों को देखते हुए नरेंद्र मोदी अपने तीसरे कार्यकाल में भी चीन के स्वच्छंद कारनामों पर अंकुश लगाने की दिशा में काम करेंगे। साफ है कि नरेंद्र मोदी इस कार्यकाल में भी चीन को रोकने की दिशा में पड़ोसी देशों के साथ भारत के संबंधों को प्रगाढ़ करेंगे।

ये भी पढे़ं-शिक्षा क्षेत्र में सुधार