हल्द्वानी: शरद पूर्णिमा आज, जानिए क्या है चांद की रोशनी में खीर रखने के कारण

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Published By Bhupesh Kanaujia
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हल्द्वानी, अमृत विचार। शरद पूर्णिमा (कोजागरी) आज है, लेकिन इसके लिए 17 अक्टूबर गुरुवार को शरद पूर्णिमा उपवास, स्नान और दान रखा जाएगा। ज्योतिषाचार्य डॉ. मंजू जोशी के अनुसार शरद पूर्णिमा को कोजागरी पूर्णिमा भी कहा जाता है। शरद पूर्णिमा पर इस बार शुभ योग, हर्षण योग, सर्वार्थ सिद्धि जैसे विशेष योग बन रहे हैं। 

हिंदू पंचांग के अनुसार अश्विन माह की पूर्णिमा तिथि को शरद पूर्णिमा कहते हैं, जिसके उच्चारण से ही शरद ऋतु के आगमन का सकेंत मिलता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार इस दिन चंद्रदेव सोलह कलाओं से परिपूर्ण होते हैं। उपनिषदों के अनुसार 16 कलाओं से युक्त व्यक्ति ईश्वर तुल्य होता है, जो व्यक्ति मन और मस्तिष्क से अलग रह कर बोध करने लगता है वही 16 कलाओं में गति कर सकता है।

चंद्रमा की सोलह कलाएं- अमृत, मनदा, पुष्प, पुष्टि, तुष्टि, ध्रुति, शाशनी, चंद्रिका, कांति, ज्योत्सना, श्री, प्रीति, अंगदा, पूर्ण, पूर्णामृत और स्वरूपवस्थित हैं। शरद पूर्णिमा को समुद्र मंथन से महालक्ष्मी और अमृत कलश, शरद धन्वंतरी देवता प्रकट हुए थे। मां लक्ष्मी के प्राकट्य के बाद उनका भगवान विष्णु से पुनः विवाह हुआ था। हिन्दू धर्मानुसार शरद पूर्णिमा से कार्तिक पूर्णिमा तक प्रतिदिन सायंकाल आकाशदीप प्रज्वलित करने का प्रचलन है। मान्यता है कि शरद पूर्णिमा से आकाशदीप जलाने और दीपदान करने से दुख, दारिद्र्य दूर होते है।

शरद पूर्णिमा पर शुभ योग
शरद पूर्णिमा पर शुभ योग, हर्षण योग, सर्वार्थ सिद्धि जैसे विशेष योग बन रहे हैं।

तिथि और शुभ मुहूर्त- 
पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ 16 अक्टूबर 2024 दिन बुधवार रात्रि 8:45 से 17 अक्टूबर 2024 दिन गुरुवार सायंकाल 4:58 तक। 
17 अक्टूबर 2024 अभिजीत मुहूर्त 11:43 से 12:29 ।

पूजा विधि एवं उपाय
नित्य कर्म से निवृत्त होकर घर को स्वच्छ करने के उपरांत घर में गंगाजल का छिड़काव करें व गंगाजल से स्नान करें। शरद पूर्णिमा के अवसर पर नदी में स्नान करना भी शुभ माना जाता है। उपवास का संकल्प लें। पूजा गृह में दीप प्रज्वलित करें। चौकी पर लाल या पीला वस्त्र बिछाकर भगवान विष्णु, देवी लक्ष्मी और श्रीकृष्ण की मूर्ति स्थापित करें। रोली, कुमकुम, अक्षत, पीले पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, भेंट अर्पित करें। अखंड ज्योति जलाएं। भगवान विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें, श्रीकृष्ण मधुराष्टकम का पाठ भी कर सकते हैं सत्यनारायण की कथा पढ़ें। 

शरद पूर्णिमा पर खीर बनाने का वैज्ञानिक कारण
वैज्ञानिकों के मतानुसार शरद पूर्णिमा पर चंद्रमा पृथ्वी के सबसे नजदीक होता है। जिस कारण इसकी किरणों में कई लवण और विटामिन आ जाते हैं। वहीं पृथ्वी से नजदीक होने के कारण ही खाद्य पदार्थ इसकी चांदनी को अवशोषित करते है। लवण और विटामिन से संपूर्ण ये किरणें हर खाद्य पदार्थ को स्वास्थ्यवर्धक बनाती हैं। दूध में लैक्टिक एसिड और अमृत तत्व होते हैं। चांद की किरणों से ये तत्व अधिक मात्रा में शक्ति का समावेश करते हैं। चावल में स्टार्च इस प्रक्रिया को आसान बना देता है। चांदी में एंटी-बैक्टेरियल तत्व होते हैं जो भोजन को पौष्टिकता प्रदान करने के साथ रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते हैं।

इसके अलावा माना जाता है कि इस रात देवी लक्ष्मी पृथ्वी पर विचरण करती हैं और जो लोग इस दिन पूजा पाठ करते हैं, उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इस दिन चन्द्रमा अपने सम्पूर्ण रूप में होता है और उसकी किरणों में विशेष औषधीय गुण होते हैं। मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की रात को चन्द्रमा की किरणें अमृतमयी होती हैं, जो स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होती हैं। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार, शरद पूर्णिमा की रात को चंद्रमा की किरणों में अमृत समान औषधीय गुण होते हैं. इसलिए शरद पूर्णिमा की रात को खीर को खुले आसमान के नीचे चांदनी में रखा जाता है, इसके बाद इस खीर का सेवन करने की परंपरा है, जो स्वास्थ्य के लिए लाभकारी मानी जाती खीर को माता लक्ष्मी का प्रसाद भी माना जाता है। इस दिन माता लक्ष्मी की पूजा के दौरान खीर का भोग लगाया जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, इस साल शरद पूर्णिमा पर चांद की रोशनी में खीर रखने का समय रात में 8 बजकर 40 मिनट से है।

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