डेलापीर तालाब: अब NGT में लड़ाई लड़ने की तैयारी! वाद दायर करेगी 11 वकीलों की न्यू विजन वेलफेयर सोसाइटी
वकीलों ने केस में बताए कई झोल, नगर निगम की भूमिका पर भी उठाए सवाल

बरेली, अमृत विचार : डेलापीर तालाब की 3924.85 मीटर जमीन के बैनामे को निरस्त कराने की लड़ाई एनजीटी में लड़ने के लिए न्यू विजन वेलफेयर नाम की 11 वकीलों की सोसाइटी ने कमर कसी है। सोसाइटी की ओर से इस प्रकरण में हाईकोर्ट में नगर निगम के केस हारने से लेकर 11 महीने बाद बैनामा होने तक तमाम झोल बताए जा रहे हैं। इसी आधार पर इस मामले में शासन में शिकायत के साथ एनजीटी में वाद दायर करने की तैयारी शुरू कर दी गई है।
फिलहाल सोसाइटी में शामिल वकील करीब 70 साल पहले से लेकर अब तक नगर पालिका, नगर निगम, हाईकोर्ट और एडीएम फाइनेंस की ओर से जारी आदेशों के साथ दूसरे दस्तावेजों का अध्ययन कर फाइल तैयार कर रहे हैं। पिछले 15 सालों में डेलापीर तालाब की दुर्दशा पर अखबारों में छपी खबरों की कतरनें भी जुटाई गई हैं ताकि इन्हें एनजीटी में प्रस्तुत कर तालाब को बचाने के लिए अपना पक्ष मजबूती से रखा जा सके। सोसाइटी के सचिव देवेश कुमार गंगवार के मुताबिक कुछ साल पहले तालाबों को यथास्थिति में लाने के लिए सपोर्ट इंडिया वेलफेयर सोसाइटी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी।
हाईकोर्ट ने सपोर्ट इंडिया वेलफेयर सोसाइटी बनाम उप्र सरकार व अन्य नाम से इस केस में सुनवाई के बाद सभी जिलों के अधिकारियों को वर्ष 1951-52 से रिकॉर्ड में दर्ज तालाबों को सूचीबद्ध कर यथास्थिति में लाने का आदेश दिया था लेकिन बरेली के अफसरों ने तालाबों को बचाने के लिए कुछ नहीं किया। डेलापीर तालाब खसरा 133 का पुराना नंबर 120 राजस्व अभिलेखों में वर्ष 1951-52 में जलमग्न तालाब के रूप में ही दर्ज है। इसका स्वरूप भी यथास्थिति में नहीं लाया जा सका।
नगर निगम की भूमिका पर सवाल... दुकानों का केस जीते, करोड़ों की जमीन का केस हार गए
डेलापीर तालाब की जमीन पर चौराहे के पास कई दुकानें बनी थीं। शराब की दुकान भी चल रही थी। यह केस भी कोर्ट में गया। नगर निगम ने कड़ी पैरवी कर केस जीता और दुकानों को ढहाकर कब्जा भी ले लिया, लेकिन तालाब की बेशकीमती 3924.85 वर्ग मीटर की भूमि का केस हार गया। न्यू विजन वेलफेयर सोसाइटी के पदाधिकारियों का कहना है कि तालाब की जमीन के केस में मजबूत पैरवी की ही नहीं गई। यही वजह है कि नगर निगम इलाहाबाद हाईकोर्ट में केस हार गया। जब सुप्रीम कोर्ट में अर्जी लगाई तो भी इतनी कमजोर पैरवी हुई कि पहली तारीख में ही अर्जी निरस्त हो गई।
तालाब राज्य सरकार की संपत्ति फिर भी नहीं बनाया पक्षकार
तत्कालीन एडीएम फाइनेंस मनोज कुमार पांडेय ने 11 जनवरी, 2021 को शासनादेशों का हवाला देते हुए ऐसी संपत्तियों के अवैध अध्यासन, निर्माण और हस्तांतरण काे रोकने का आदेश जारी किया था और तालाब की भूमि को राज्य सरकार की संपत्ति बताया था।
यह आदेश उन्होंने हाईकोर्ट में दायर रिट याचिका 65626/2012 जानकी देवी जूनियर हाईस्कूल बनाम नगर निगम बरेली में प्रतिवादी रामभरोसे लाल धर्मार्थ ट्रस्ट की ओर से प्रस्तुत प्रार्थनापत्र पर सुनवाई कर जारी किया था। वकील देवेश गंगवार के अनुसार तालाब कहीं भी हो, राज्य सरकार की ही संपत्ति होता है। इस प्रकरण में नगर निगम को राज्य सरकार को पक्षकार बनाना चाहिए था लेकिन उसने नहीं बनाया।
18 साल पुराने एग्रीमेंट पर किया गया बैनामा
प्रकरण में अहम यह बात सामने आई है कि 2006 में 1 करोड़ 17 लाख 35 हजार में भूमि को लेकर जो एग्रीमेंट हुआ था, उसी एग्रीमेंट पर केस जीतने के 18 साल बाद उतनी ही रकम पर भूमि का बैनामा हुआ है।
ये वकील हैं न्यू विजन वेलफेयर सोसाइटी में
डेलापीर तालाब को मूल स्वरूप में लाने की लड़ाई लड़ने वाली न्यू विजन वेलफेयर सोसाइटी में अध्यक्ष जनार्दन पांडेय, सचिव देवेश गंगवार, राजीव मिश्रा, राजेश शर्मा, संजीव शर्मा, ऋषभ राठौर सहित 11 वकील हैं।
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