Kannauj: RTE में अंधेरनगरी; कक्षा एक के बच्चे को किया फेल, बिना फीस वाले बच्चों को बिठा रहे अलग, समाज कल्याण मंत्री के पास पहुंचीं शिकायतें

कन्नौज, अमृत विचार। शिक्षा का अधिकार अधिनियम (आरटीई) के तहत आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों का 25 फीसदी सीटों पर प्रवेश प्राइवेट स्कूलों में कराया जाता है। जनपद में निजी विद्यालयों की तूती बोलती है। इन पर अधिकारियों का भी आदेश फेल हो जाता है। कारण कुछ भी हों लेकिन नियम विरुद्ध कक्षा 1 के बच्चों को फेल कर दिया गया। साथ ही आरटीई के तहत प्रवेश पाए बच्चों को अलग बिठा दिया गया। इसकी शिकायतें समाज कल्याण मंत्री के पास पहुंची है। उन्होंने जांच के निर्देश दिए हैं।
सोमवार को सदर विधायक व समाज कल्याण राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) असीम अरुण ने बीएसए संदीप कुमार के साथ ऑनलाइन जूम मीटिंग की। निर्देश दिए कि आरटीई के तहत प्रवेशित बच्चों के साथ शिक्षा में भेदभाव न किया जाए।
कहा, उनके पास शहर के दो विद्यालयों सेंट जेवियर्स पुलिस लाइन के निकट और कन्नौज पब्लिक स्कूल मानपुर रोड की शिकायतें आईं हैं। राज्य मंत्री की ओर से जारी विज्ञप्ति में कहा गया है कि डबल इंजन की सरकार समाज के कमजोर वर्ग के बच्चों को भी गुणवत्तापरक आधुनिक शिक्षा प्रदान करने के लिए लगातार कार्य कर रही है। उन्होंने बैठक में बताया कि शिकायत मिल रही है कि सेंट जेवियर्स स्कूल में जिन बच्चों का प्रवेश आरटीई के तहत हुआ है उनको स्कूल से अलग बिल्डिंग (कमरे) में पढ़ाया जा रहा है। इसी तरह आरोप है कि कन्नौज पब्लिक स्कूल में आरटीई के तहत बच्चों का प्रवेश स्कूल में नहीं लिया जा रहा है। पिछले साल कक्षा एक में कुछ बच्चों को फेल किया गया है, जो प्रावधान में नहीं है। ऐसे बच्चों को अगली कक्षा में प्रवेश देकर उन पर विशेष ध्यान दिया जाए। शिकायतों को गंभीरता से लेते हुए मंत्री ने जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी को जांच के निर्देश दिए हैं।
सीबीएसई बोर्ड वाले स्कूलों के हैं कई नखरे
शहर में संचालित कई सीबीएसई बोर्ड से मान्यता प्राप्त विद्यालयों के नखरे तमाम हैं। आरटीई के तहत प्रवेश देने में छोटी-छोटी बात पर आनाकानी की जाती है। अभिभावकों व बच्चों को खूब परेशान किया जाता है। कभी प्रपत्र फर्जी बता दिए जाते हैं। इस वजह से जिलेभर में गरीब बच्चों के लिए आरक्षित 25 फीसदी सीटों में ज्यादातर खाली रह जाती हैं। बेसिक शिक्षा कार्यालय के मुताबिक करीब 7 हजार सीटों पर गरीब बच्चों को प्रवेश दिए जा सकते हैं। हालांकि उसके उलट 10 फीसदी बच्चों को मौका नहीं मिलता है।
सत्ता के साथ रहते हैं स्कूल संचालक
खास बात यह है कि जिन धन्नासेठों के निजी विद्यालय चल रहे हंम वह हमेशा सत्ता के साथ ही रहते हैं चाहे सरकार किसी की रही हो। चर्चा है कि वह सत्ता को फाइनेंस भी करते हैं इस वजह से उन पर शिकंजा नहीं कस पाता है। इसके अलावा भी अन्य कई कारण हैं जिस वजह से गरीब व पात्रों का हक हर साल मारा जाता है। बहरहाल, जिन स्कूलों की शिकायत हुई है उन पर कितनी कार्रवाई होगी यह आने वाला समय ही बताएगा।