Bareilly: राष्ट्रपति की सलाह...दुविधा हो तो उन पशुओं के बारे में सोचना जिनके लिए शिक्षा की ग्रहण

Amrit Vichar Network
Published By Monis Khan
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बरेली, अमृत विचार। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू सोमवार को भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (आईवीआरआई) के 11वें दीक्षांत समारोह में बतौर मुख्य अतिथि पहुंचीं। दीक्षांत समारोह में 576 छात्र-छात्राओं को उपाधियां प्रदान की। यहां उन्होंने उपाधि हासिल करने वाले विद्यार्थियों को बधाई दी और कहा कि मुझे विश्वास है कि आपने पशु चिकित्सा क्षेत्र को चुना जिसके पीछे जरूर  "सर्वे भवन्तु सुखिनःसर्वे सन्तु निरामयाः की भावना रही होगी। भविष्य में जब भी दुविधा हो तो उन बेजुबान पशुओं के बारे में सोचना जिनके लिए शिक्षा ग्राहण की है। कार्यक्रम के दौरान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, राज्यपाल आनंदी बेन पटेल, केंद्रीय कृषि एवं कल्याण मंत्री शिवराज सिंह चौहान भी मौजूद रहे।

उन्होंने कहा कि पशुओ के प्लेग के नाम से जानी वाली रिंडरपेस्ट महामारी की रोकथाम के लिए 1889 में स्थापित इस संस्थान ने अपने 135 वर्ष की यात्रा में कई महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल कीं। यहां के वैज्ञानिकों के शोध कार्यों का प्रमाण इस संस्थान के नाम दर्ज अनेक पेटेंट, डिजाइन और कॉपीराइट हैं। इलाज से बेहतर रोकथाम की कहावत पशुओं के स्वास्थ्य के लिए भी लागू होती है। बीमारियों की रोकथाम में टीकाकरण की महत्वपूर्ण भूमिका है। ये इस संस्थान के लिए गर्व का विषय है कि राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम में अनेक टीके यहीं पर विकसित किए गए। "ईशा वास्यम इदं सर्वं" के जीवन मूल्यों पर आधारित हमारी संस्कृति सभी जीव जंतुओं में ईश्वर की उपस्थिति देखती है। पशुओं से हमारे देवताओं और ऋषि मुनियों का संवाद होता है, ये मान्यता भी उसी सच पर आधारित है। भगवान के कई अवतार भी इसी विशिष्ट श्रेणी में हैं। इस प्रसंग का उल्लेख इसलिए किया ताकि चिकित्सक या शोधकर्ता के रूप में काम करें तो बेजुबान पशुओं की कल्याण की भावना मन में हो। 

राष्ट्रपति ने कहा कि वह जिस परिवेश से आति हैं वो सहज रूप से प्रकृति के निकट है। मानव का वन और वन्य जीव जंतुओं के साथ सह अस्तित्व का रिश्ता है। सच में तो वन्यजीवों और मानव के बीच एक परिवार का रिश्ता है। जो विशिष्ट प्राणियों का संवर्धन होगा। अभी तो हम टेक्नोलॉजी और आधुनिक संस्कृति में जीवन जी रहे हैं। पूर्व में जब तकनीक विकसित नहीं हुई थी तब पशुओं के बिना हम काम नहीं कर सकते थे। खास तौर से किसान पशुओं के बिना आगे नहीं बढ़ सकता था। उन्होंने पशुओं के पशु शब्द उन्हें ठीक नहीं लगता, ये हम लोगों का जीवनधन हैं। उनके बिना हम जीवन के बारे में नहीं सोच सकते। 

राष्ट्रपति ने गिद्धों के विलुप्तीकरण पर भी चिंता जाहिर की। उन्होंने कहा कि गिद्धों के विलुप्त होने के पीछे पशु चिकित्सा में इस्तेमाल होने वाले रासायनिक दवाएं कारण रहीं। बहुत सारे कारणों में से ये भी एक कारण है। इन दवाओं पर प्रतिबंध लगाना गिद्धों के संरक्षण की दिशा में सरहानीय कदम है। वैज्ञानिकों ने इस दिशा में कदम उठाए इसके लिए वह सबको बधाई देती हैं। उन्होंने कहा कि और भी कई प्रजातियां या तो विलुप्त हो गई हैं या फिर विलुप्त होने की कगार पर हैं। भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान जैसे संस्थानों से उनकी अपील है कि वे जैव विविधता को बढ़ाने में अग्रणी भूमिका निभाएं और एक आदर्श प्रस्तुत करें।

राष्ट्रपति ने उपाधि प्राप्त करने वाले सभी विद्यार्थियों समेत शिक्षकों, अभिभावकों को भी बधाई दी। उन्होंने लड़कियों की ज्यादा तादाद देखकर खुशी जाहिर की। अन्य चिकित्सा क्षेत्रों की तरह पशु चिकित्सा के क्षेत्र में लड़कियां भी आगे आ रही हैं, ये एक शुभ संकेत है। गांव में गायों की सेवा माताएं और बहने करती हैं। उनका जुड़ाव गायों और पशुओं से ज्यादा है। लिहाजा इस क्षेत्र में बेटियों का जुड़ाव उन्हें बहुत अच्छा लगा। उन्होंने बधाई दी कि आपने बेजुबान पशुओं की चिकित्सा को अपने करियर के रूप में चुना। उन्हें विश्वास है कि इस चुनाव के पीछे "सर्वे भवन्तु सुखिनःसर्वे सन्तु निरामयाः की भावना रही होगी।" 

राष्ट्रपति ने कहा कि  मेरी सलाह है कि आपके सामने जब भी दुविधा का क्षण हो तब आप उन बेजुबान पशुओं के बारे में सोचिए जिनके कल्याण के लिए शिक्षा ग्रहण की है, आपको सही मार्ग जरूर दिखाई देगा। उन्होंने विद्यार्थियों को उद्यमिता की तरफ कदम बढ़ाने के लिए भी कहा। 

राष्ट्रपति ने कहा कि आज दुनिया भर में वन हेल्थ की अवधारणा तेजी से बढ़ रही है। इस अवधारणा के तहत माना जाता है कि मानव और घरेलु, जंगली जानवर, वनस्पति आदि सभी एक दूसरे पर आश्रित हैं। हमें अपनी परंपरा और इस अवधारण का अनुसरण करते हुए पशु कल्याण के लिए प्रयास करना चाहिए। एक प्रमुख पशु चिकित्सा संस्थान के रूप में आईवीआरआई इस क्षेत्र में विशेष रूप जूनोटिक बीमारियों की रोकथाम और नियंत्रण में अपनी भूमिका निभा सकता है।

हाल की कोरोना महामारी ने मानव को आगाह किया है कि उपयोग पर उपभोग आधारित संस्कृति न केवल मानव जाति बल्कि अन्य जीव जंतुओं को अकल्पनीय क्षति पहुंचा सकती है। पशु कल्याण के लिए नियमित रूप से पशु आरोग्य मेलों का आयोजन होना चाहिए। इस मेलों के तहत गांव-गांव कैंप लगाने से पशुओं के साथ-साथ समाज भी स्वस्थ रहेगा। वह खुद किसान परिवार से आती हैं,मगर आज गांव में घरों के अंदर घरेलू पशु देखने को नहीं मिलते जो हमे खेती में मदद करते हैं। केंचुआ खत्म होने से जमीन बंजर हो गई। इनके संरक्षण से हम किस तरह जमीन को उपजाऊ बना सकें इसके बारे में सोचना चाहिए।

टेक्नोलॉजी और अन्य क्षेत्रों की तरह पशु चिकित्सा क्षेत्र में भी क्रांतिकारी परिवर्तन लाने की क्षमता है। टेक्नोलॉजी के प्रयोग से देश भर के पशु चिकित्सकों को सशक्त बनाया जा सकता है। इसमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसी तकनीक के प्रयोग से ये क्रांतिकारी बदलाव संभव हैं। आधुनिकतिम टेक्नोलॉजी का उपयोग करके आईवीआरआई जैसे संस्थानों को पशु रोगों के निदान और उनको पोषण उपलब्ध कराने के लिए स्वदेशी और सस्ते उपाय ढूंढने चाहिए। साथ ही उन दवाओं के विकल्प तलाशने चाहिए जिनके साइड इफेक्ट न केवल पशुओं बल्कि मनुष्यों और पर्यावरण को भी प्रभावित करते हैं।

 

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