Chinnaswamy stampede report: कर्नाटक HC ने लगाई सरकार को फटकार, कहा- चिंता निराधार... कोई राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा नहीं, प्रतिवादियों के साथ साझा करें रिपोर्ट

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Published By Muskan Dixit
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बेंगलुरु। कर्नाटक उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि वह चिन्नास्वामी स्टेडियम में चार जून को हुई भगदड़ पर सीलबंद लिफाफे में सौंपी गई स्थिति रिपोर्ट की एक प्रति कर्नाटक राज्य क्रिकेट संघ (केएससीए), रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु (आरसीबी) और डीएनए एंटरटेनमेंट नेटवर्क्स को उपलब्ध कराए। अदालत ने रिपोर्ट को गोपनीय रखने के राज्य सरकार के तर्क को खारिज कर दिया और कहा कि उच्चतम न्यायालय केवल उन्हीं मामलों में सीलबंद लिफाफे में जानकारी रखने की अनुमति देता है जो राष्ट्रीय सुरक्षा, सार्वजनिक हित या गोपनीयता अधिकारों से संबंधित हों और इस मामले में ये मानक लागू नहीं होते। 

कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश वी कामेश्वर राव और न्यायमूर्ति सी एम जोशी की खंडपीठ ने सोमवार को यह टिप्पणी की। पीठ इस बारे में सुनवाई कर रही थी कि भगदड़ पर स्वत: संज्ञान लेकर दर्ज जनहित याचिका में शामिल पक्षों को रिपोर्ट की प्रति दी जानी चाहिए या नहीं। बेंगलुरु में स्थित चिन्नास्वामी स्टेडियम में चार जून को आरसीबी आईपीएल में पहली बार खिताब जीतने का जश्न मना रही थी उस दौरान ही स्टेडियम के बाहर यह भगदड़ मच गई थी। राज्य सरकार ने तर्क दिया था कि रिपोर्ट साझा करने से न्यायिक आयोग और मजिस्ट्रेट जांच प्रभावित हो सकती है। 

राज्य सरकार के इस तर्क को खारिज करते हुए पीठ ने कहा कि यह चिंता निराधार है और इसमें जनहित का कोई औचित्य नहीं है। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि सेवानिवृत्त न्यायाधीशों और अखिल भारतीय सेवाओं के वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा जांच की जा रही है, और उनके स्थिति रिपोर्ट की सामग्री से प्रभावित होने की संभावना नहीं है। अदालत ने दोहराया कि भगदड़ के कारणों का पता लगाने, जवाबदेही का आकलन करने और भविष्य के लिए निवारक उपाय सुझाने के लिए स्वतः संज्ञान कार्यवाही शुरू की गई थी। 

पीठ ने कहा कि प्रमुख पक्षों से सहयोग की अपेक्षा करते हुए उनसे रिपोर्ट छिपाना अनुचित होगा। न्यायाधीशों ने कहा, "यदि सीलबंद लिफाफा खोला जाए और रिपोर्ट प्रतिवादियों के साथ साझा की जाए, तो वे अदालत को घटनाओं के क्रम, योगदान देने वाले कारकों और इस बात को बेहतर ढंग से समझने में मदद कर सकते हैं कि इस त्रासदी को टाला जा सकता था या नहीं।" 

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