BBAU के गले की फांस बनी डॉ. पंकज अरोड़ा की रिसर्च, 98 लाख किए खर्च पर कहां गया शोध विश्वविद्यालय को पता ही नहीं

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Published By Muskan Dixit
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केन्द्रीय सूचना आयुक्त ने 30 दिन में पूरी जानकारी देने का दिया आदेश

शबाहत हुसैन विजेता, लखनऊ, अमृत विचार: बाबा साहब भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय (बीबीएयू) के सहायक प्रोफ़ेसर डॉ. पंकज अरोड़ा को मिली शोध की जिम्मेदारी अब गले की फांस बनती जा रही है। विश्वविद्यालय छोड़कर गए डॉ. पंकज अरोड़ा जब बरेली के रुहेलखंड विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफ़ेसर बने तो यहां के जिम्मेदारों ने सोचा था कि शोध के नाम पर हुए घोटाले की आंच से बच जाएंगे लेकिन घोटाले का भूत किसी भी सूरत में जिम्मेदारों को बख्शने को तैयार नहीं दिखता।

केन्द्रीय सूचना आयुक्त आनंदी रामलिंगम ने बीबीएयू के इनवायरमेंटल माइक्रोबायोलाजी विभाग के केन्द्रीय सूचना अधिकारी प्रो. राजेश कुमार को आदेशित किया है कि 30 दिन के भीतर इस शोध से जुड़ी हर जानकारी उपलब्ध कराएं। आदेश में साफ लिखा है कि वह यह कहकर बच नहीं सकते कि उनके पास कोई रिकार्ड नहीं है।

उल्लेखनीय है कि समलिंगी स्वामी फेलोशिप 2016-17 के तहत विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने बाबा साहब भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय में तत्कालीन सहायक प्रोफ़ेसर डॉ. पंकज अरोड़ा को डेवलपमेंट ऑफ़ सम बायोरेमिडिशन टेक्नाेलाॅजीस फॉर बायोरेमीडिशन ऑफ़ हैवी मेटल्स एंड स्टडीज ऑफ़ वैक्टीरियल डायवर्सिटी फॉर इंडस्ट्रियल एप्लीकेशन के लिए 88 लाख रुपये की वित्तीय सहायता उपलब्ध कराई थी। यह धन किस्तों में मिला था और विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार के माध्यम से उपलब्ध कराया गया था। शोध के लिए जरूरी उपकरण खरीदने के लिए भी 10 लाख रुपये दिये गये थे।

शोध 5 साल में पूरा किया जाना था लेकिन शोध की समय सीमा समाप्त होते ही डॉ. पंकज अरोड़ा ने 2 साल का असाधारण अवकाश लिया और शोध पत्र जमा किये बगैर रुहेलखंड विश्वविद्यालय बरेली में एसोसिएट प्रोफ़ेसर के अस्थाई पद पर ज्वाइन करने के लिए चले गए। विश्वविद्यालय के जिम्मेदार इन्तजार करते रहे कि दो साल बाद वह वापस लौटेंगे तब उनसे शोध के कागजात तलब करेंगे लेकिन बरेली में उनकी नौकरी स्थाई हो गई और उन्होंने वापस लौटने से इनकार कर दिया।

30 दिन के भीतर देना होगा हर हाल में जवाब

'अमृत विचार' ने 2 जून से 5 जून तक शोध के नाम पर हुए 98 लाख रुपये के घोटाले की खबर प्रकाशित की तो विश्वविद्यालय की प्रवक्ता ने कहा कि इस मामले से विश्वविद्यालय का कोई लेना देना नहीं। अब केन्द्रीय सूचना आयोग ने विश्वविद्यालय को स्पष्ट कर दिया है कि 30 दिन के भीतर जवाब तो देना ही होगा। केन्द्रीय सूचना आयोग ने शोध के मामले में अकेले डॉ. पंकज को जिम्मेदार ठहरा देने और इस शोध के सम्बन्ध में मांगी गई हर जानकारी के जवाब में विश्वविद्यालय की ओर से रिकार्ड में जानकारी नहीं है कहने से काम नहीं चलेगा। आदेश में कहा गया है कि उन्हें 30 दिन में हर हाल में जवाब देना होगा।

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