Nepal Protest: नेपाली गृह मंत्री ने दिया इस्तीफा, पुलिस से झड़प में 19 प्रदर्शनकारियों की मौत, 300 से अधिक लोग घायल

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Published By Muskan Dixit
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काठमांडू, अमृत विचार। नेपाल में सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगाए जाने के विरोध में राजधानी काठमांडू और कुछ अन्य इलाकों में सोमवार को युवाओं ने हिंसक प्रदर्शन किया, जिसके दौरान कम से कम 19 लोगों की मौत हो गई, जबकि 300 से अधिक लोग घायल हो गए। अधिकारियों ने यह जानकारी दी। नेपाल के गृह मंत्री रमेश लेखक ने देश में मौजूदा हालात को लेकर अपने पद से इस्तीफा दे दिया। हालात बिगड़ने के बाद नेपाली सेना को राजधानी काठमांडू में तैनात किया गया।

सेना के जवानों ने नए बानेश्वोर में संसद परिसर के आसपास के रास्तों पर नियंत्रण कर लिया है। इससे पहले, काठमांडू में ‘जेन ज़ी’ के बैनर तले स्कूली छात्रों समेत हजारों युवा संसद भवन के सामने इकट्ठा हुए और प्रतिबंध को तुरंत हटाने की मांग करते हुए सरकार विरोधी नारे लगाए। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार युवाओं का प्रदर्शन उस समय हिंसक हो गया जब कुछ प्रदर्शनकारी संसद परिसर में घुस गए, जिसके बाद पुलिस को भीड़ को तितर-बितर करने के लिए लाठीचार्ज, आंसू गैस के गोले और रबर की गोलियों का इस्तेमाल करना पड़ा।

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नेपाल पुलिस के प्रवक्ता विनोद घिमिरे ने कहा कि काठमांडू के विभिन्न हिस्सों में रैली के दौरान हिंसक झड़पों में 17 लोगों की मौत हो गई जबकि पूर्वी नेपाल के सुनसरी जिले में पुलिस की गोलीबारी में दो प्रदर्शनकारियों की भी मौत हो गई। ये प्रदर्शन पोखरा, बुटवल, भैरहवा, भरतपुर, इटाहरी और दामक जैसे क्षेत्रों में भी हुए। नेपाली कांग्रेस के सूत्रों ने बताया कि गठबंधन सरकार में नेपाली कांग्रेस पार्टी का प्रतिनिधित्व करने वाले गृह मंत्री लेखक ने नैतिक आधार पर इस्तीफा दे दिया है।

लेखक ने शाम को प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली को उनके आवास, बालुवाटर में आयोजित कैबिनेट बैठक में अपना इस्तीफा सौंप दिया। अस्पताल के अधिकारियों के हवाले से 'काठमांडू पोस्ट' अखबार ने बताया कि नेशनल ट्रॉमा सेंटर में आठ लोगों की मौत हुई। एवरेस्ट अस्पताल में तीन, सिविल अस्पताल में तीन, काठमांडू मेडिकल कॉलेज में दो और त्रिभुवन टीचिंग अस्पताल में एक व्यक्ति की मौत हुई।

द हिमालयन टाइम्स अखबार के अनुसार, सिविल अस्पताल और ट्रॉमा सेंटर सहित कई अस्पतालों में मरीजों के लिए जगह की कमी है और वे उन्हें दूसरे अस्पतालों में रेफर करना शुरू कर दिया है। हिंसा के बाद, स्थानीय प्रशासन ने राजधानी के कई हिस्सों में कर्फ्यू लगा दिया। काठमांडू के अलावा, ललितपुर जिले, पोखरा, बुटवल और सुनसरी जिले के इटाहरी में भी कर्फ्यू लगा दिया गया।

मुख्य जिला अधिकारी छबि लाल रिजाल ने एक नोटिस में कहा, ‘‘प्रतिबंधित क्षेत्र में लोगों के आवागमन, प्रदर्शन, बैठक, सभा या धरना-प्रदर्शन की अनुमति नहीं होगी।’’ स्थानीय प्रशासन ने बाद में ये प्रतिबंधात्मक आदेश राष्ट्रपति भवन, उपराष्ट्रपति आवास और प्रधानमंत्री कार्यालय के आसपास के विभिन्न क्षेत्रों में भी लागू कर दिए। नेपाल सरकार ने अनिवार्य पंजीकरण प्रक्रिया का पालन नहीं करने पर चार सितंबर को फेसबुक, व्हाट्सऐप और एक्स सहित 26 सोशल मीडिया मंचों पर प्रतिबंध लगा दिया था।

सरकार ने अपना रुख स्पष्ट किया है कि सोशल मीडिया मंचों पर प्रतिबंध उन्हें विनियमित करने के लिए लगाया गया है, लेकिन आम जनता में धारणा यह है कि इससे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला होगा और सेंसरशिप की नौबत आ सकती है। नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने देश में अपंजीकृत सोशल मीडिया मंचों पर प्रतिबंध लगाने के अपने सरकार के फैसले का समर्थन करते हुए रविवार को कहा कि “राष्ट्र को कमजोर किए जाने के प्रयास कभी बर्दाश्त नहीं किए जाएंगे।” 

गृह मंत्री रमेश लेखक ने दिया इस्तीफा  

काठमांडू में प्रदर्शनकारी संघीय संसद परिसर में घुस गये। प्रदर्शनकारियों ने पुलिस बैरिकेड तोड़कर और गेट फांदकर संघीय संसद परिसर में धावा बोल दिया। प्रदर्शनकारियों ने पहले शांतिपूर्ण रहने की बात कही थी, पर मौके पर हालात बिगड़ गये। पुलिस ने उन्हें तितर-बितर करने के लिए आंसू गैस और पानी की बौछारों का इस्तेमाल किया, लेकिन बाद में उनको गोली चला कर प्रदर्शनकारियों को वहां से भगाना पड़ा। देश में बढ़े तनाव के बीच गृह मंत्री रमेश लेखक ने घटनाक्रम की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुये कांग्रेस की बैठक में ही अपना इस्तीफा देने का ऐलान कर दिया और मीटिंग छोड़ कर चले गये। घायलों में जेनरेशन ज़ेड के प्रदर्शनकारी, सुरक्षाकर्मी और पत्रकार शामिल हैं। 

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रजिस्ट्रेशन करने पर बंद की सोशल मीडिया साइट्स 

नेपाल सरकार ने सभी सोशल मीडिया साइट्स को नेपाल सरकार के अधीन पंजीकरण कराने के लिए सात दिन का वक्त दिया था। बताया जा रहा है कि इस अंतराल में जो कंपनियां पंजीकरण कराने से रह गईं। उनके खिलाफ ही प्रतिबंध लगाया गया है। हालांकि ये फैसला अदालत के एक निर्देश पर लिया गया है। जिसमें सरकार से कहा गया था कि वह ऑन्लाइन प्लेटफॉर्म्स का पंजीकरण कराना सुनिश्चित करे। लेकिन इस प्रतिबंध के बहाने युवाओं का गुस्सा भड़क गया और वे सरकार के खिलाफ सड़कों पर उतर आए हैं।

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