सिद्धपीठ मां बाराही देवी मंदिर: आस्था, एकता और चमत्कारों का केंद्र, नीम का पेड़ और चुनरी की अनोखी परंपरा

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Published By Anjali Singh
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निर्मल सैनी/ अमृत विचारः लखनऊ के ग्रामीण क्षेत्र माल के अटेर गांव में स्थित मां बाराही देवी का सिद्धपीठ मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था, भक्ति और चमत्कारों का जीवंत प्रतीक है। यह मंदिर न केवल हिंदू श्रद्धालुओं के लिए विशेष आस्था का केंद्र है, बल्कि मुस्लिम समुदाय के लोग भी यहां माथा टेकने आते हैं जिससे यह धार्मिक सौहार्द और एकता की अनूठी मिसाल पेश करता है।

नीम का पेड़ और चुनरी की अनोखी परंपरा

मंदिर प्रांगण में स्थित एक प्राचीन नीम का पेड़ श्रद्धालुओं के विश्वास का केंद्र है। ऐसी मान्यता है कि यदि कोई भक्त सच्चे मन से मां बाराही देवी की पूजा-अर्चना कर इस पेड़ पर चुनरी बांधता है, तो देवी उसकी मनोकामनाएं अवश्य पूर्ण करती हैं। यह परंपरा विशेष रूप से महिलाओं के बीच लोकप्रिय है, जो अपनी समस्याओं से मुक्ति के लिए यहां चुनरी बांधती हैं।

ईंट से धन रखने की श्रद्धा

एक और विशिष्ट परंपरा इस मंदिर से जुड़ी है जिसे ईंट से धन रखना कहा जाता है। इसमें श्रद्धालु एक ईंट को देवी के चरणों से छुआ कर अपनी मनोकामना व्यक्त करते हैं। मान्यता है कि संतान प्राप्ति, रोजगार व व्यापार में सफलता, घर-परिवार की परेशानियों का समाधान जैसी इच्छाएं मां बाराही देवी के दरबार में पूरी होती हैं। यह परंपरा खासकर उन महिलाओं में प्रचलित है जो संतान प्राप्ति की कामना करती हैं।

आस्था की मिसाल: धर्म नहीं देखती मां

अटेर गांव का यह सिद्धपीठ धार्मिक एकता का प्रतीक है। मंदिर में केवल हिंदू ही नहीं, बल्कि मुस्लिम महिलाएं भी बड़ी संख्या में श्रद्धा से माथा टेकती हैं। इस बात से यह साबित होता है कि मां बाराही देवी का दरबार जाति, धर्म, समुदाय के भेदभाव से परे है।

धार्मिक आयोजन और सांस्कृतिक कार्यक्रम

मंदिर के संरक्षक रमेश सिंह चौहान के अनुसार यह मंदिर सैकड़ों वर्ष पुराना है और यहां हर महीने मेले का आयोजन होता है। सावन माह में संपूर्ण माह ॐ नमः शिवाय संकीर्तन होता है। नवरात्रि के अवसर पर श्रीराम कथा और यज्ञ का आयोजन होता है। मंदिर प्रांगण में विभिन्न सांस्कृतिक और भक्ति आधारित कार्यक्रम समय-समय पर आयोजित होते रहते हैं।

तीर्थस्थल और आस्था का केंद्र

हरदोई, सीतापुर, उन्नाव, बाराबंकी जैसे दूर-दराज जिलों से भी श्रद्धालु यहां दर्शन के लिए आते हैं। यहां हर वर्ष हजारों लोग मनोकामनाएं लेकर आते हैं और उनकी पूर्ति पर मां को चढ़ावा, चुनरी व ईंट समर्पित करते हैं।

 

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