किताब उत्सव : विभाजन की स्मृतियों से लेकर रंगमंच के इतिहास पर हुई चर्चा

Amrit Vichar Network
Published By Monis Khan
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बरेली, अमृत विचार। राजकमल प्रकाशन द्वारा विंडरमेयर थिएटर में आयोजित पांच दिवसीय किताब उत्सव के तीसरा दिन शुक्रवार साहित्य, इतिहास और रंगमंच के अद्भुत संगम के रूप में यादगार बन गया। इस दिन ‘स्मृति और दंश: विभाजन, निरंतरता और तीसरी पीढ़ी’, ‘मंच-प्रवेश’ और ‘बॉन: यादों में बसा शहर’ जैसी तीन चर्चित पुस्तकों का लोकार्पण किया गया। दिनभर चले सत्रों में विभाजन की स्मृतियों से लेकर रंगमंच के इतिहास और लेखिका इस्मत चुगताई के जीवन पर गहन चर्चाएं हुईं।

कार्यक्रम की शुरुआत लेखक सुहेल वहीद की यात्रा संस्मरण पुस्तक ‘बॉन: यादों में बसा शहर’ के लोकार्पण से हुई। इस अवसर पर राजेश शर्मा ने उनसे संवाद किया। सुहेल वहीद ने बताया कि यह पुस्तक जर्मनी के शहर बॉन से जुड़े उनके अनुभवों की गहराई को दर्शाती है। राजेश शर्मा ने इसे एक संस्कृति का दस्तावेज़ बताया। लोकार्पण कथाकार हृषीकेश सुलभ, राजेश शर्मा और अमोध महेश्वरी के हाथों संपन्न हुआ। दूसरे सत्र में बलवंत कौर की पुस्तक ‘स्मृति और दंश’ का विमोचन हुआ। उन्होंने कहा कि हम आज भी जाति, धर्म और सम्प्रदाय के स्तर पर विभाजनों में जी रहे हैं। यह कृति विभाजन और 1984 के दंगों की पीड़ा को तीन पीढ़ियों की दृष्टि से प्रस्तुत करती है।

अगले सत्र में ऋषिकेश सुलभ ने अपने उपन्यास ‘दातापीर’ से पाठ किया। प्रभात सिंह ने कहा कि यह रचना समाज में छिपे अंधेरों और अनदेखे जीवन संघर्षों को उजागर करती है। इसके बाद ‘मंच-प्रवेश’ पुस्तक का लोकार्पण हुआ, जिसे प्रसिद्ध रंग निर्देशक फ़ैसल अलकाज़ी ने लिखा है। पुस्तक भारतीय रंगमंच के दो प्रमुख परिवारों – अलकाज़ी और पद्मसी – की रंगयात्रा को जीवंत करती है। दिन का समापन ‘इस्मत का शहर: बरेली’ विषय पर हुई चर्चा से हुआ। डॉ. ब्रजेश्वर सिंह, खालिद जावेद और सम्युन खान ने इस्मत चुगताई के लेखन और व्यक्तित्व पर विचार साझा किए। डॉ. सिंह ने कहा कि इस्मत जैसे लिखती थीं, वैसे ही दिखती थीं सच्ची, बेबाक और निर्भीक। कार्यक्रम के अंत में रंगकर्मी पप्पू वर्मा ने सुकेश साहनी की कहानी ‘पुल’ का पाठ किया। चौथे दिन कई नई पुस्तकों के विमोचन और नाट्य पाठ की तैयारियां पूरी कर ली गई हैं।

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