संपादकीय : संघर्ष से उत्कर्ष
उत्तराखंड राज्य के 25 वर्ष पूरे होने पर समूचे राज्यवासियों को बधाई। बीते पच्चीस वर्षों के दौरान राज्य के कर्मठ लोगों ने जो सामूहिक उपलब्धियां हासिल की हैं, वे इस माह 25 वर्ष पूरे करने वाले अन्य दो राज्यों झारखंड तथा छत्तीसगढ़ के लिए भी अनुकरणीय हैं। आधारभूत ढांचे, उद्योग, विनिर्माण, पर्यटन, शिक्षा, स्वास्थ्य और महिला सशक्तिकरण के साथ सुशासन के मामले में भी पर्वतीय राज्य ने जो उल्लेखनीय प्रगति की है वह संघर्ष से उत्कर्ष तक की गाथा है।
राज्य स्थापना दिवस पर प्रधानमंत्री द्वारा 8,260 करोड़ रुपये से अधिक की परियोजनाओं की सौगात मिलने के बाद, मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व में उत्तराखंड का बहुआयामी विकास और तीव्र होना तय है। विशेष रूप से पेयजल, सिंचाई और विद्युत उत्पादन से जुड़ी बहुउद्देशीय परियोजनाएं भविष्य के लिए अत्यंत लाभकारी होंगी। राज्य गठन के समय उत्तराखंड के लगभग 65 प्रतिशत घरों में ही बिजली थी, आज 99 प्रतिशत घरों में है। सड़क नेटवर्क 84 प्रतिशत तक पहुंच गया है।
अविभाजित उत्तर प्रदेश में गरीबी दर 41 प्रतिशत थी, जो अब 23 प्रतिशत है, जबकि उत्तराखंड में गरीबी दर केवल 9 प्रतिशत के करीब है। राज्य की प्रति व्यक्ति वार्षिक आय 15 हजार रुपये से बढ़कर 2 लाख 27 हजार रुपये यानी राष्ट्रीय औसत से लगभग दोगुनी हो गई। राज्य की जीडीपी 14,501 करोड़ रुपये से बढ़कर 4 लाख 29 हजार करोड़ रुपये हो चुकी है। सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स इंडेक्स में अग्रणी उत्तराखंड देश में जीवन प्रत्याशा 71 वर्ष तक पहुंच गई है, जबकि उत्तर प्रदेश में यह 67 वर्ष तक भी नहीं।
राज्य गठन के समय यहां एक मेडिकल कॉलेज था। आज मेडिकल विश्वविद्यालय समेत पांच सरकारी मेडिकल कॉलेज हैं। शिक्षा संस्थानों और विश्वविद्यालयों की संख्या में भी व्यापक वृद्धि हुई है। उत्तराखंड अब ऐसा राज्य बनने जा रहा है, जहां जल्द ही 23 खेल अकादमियां होंगी। हालांकि इस तेज विकास यात्रा के बीच उत्तराखंड के सामने कुछ गंभीर चुनौतियां भी हैं। राज्य गठन के समय उस पर लगभग 4,000 करोड़ रुपये का ऋ ण था, जो आज बढ़कर 80,000 करोड़ रुपये हो गया है। रिवर्स पलायन के दावों के बावजूद, पलायन अब भी बड़ी समस्या है।
पहाड़ी और तराई क्षेत्रों के बीच आय की असमानता बनी हुई है और कई गांव आज भी सड़कों से नहीं जुड़े हैं। राज्य की कल्पना शहीदों और आंदोलनकारियों ने इसलिए की थी ताकि पहाड़ों में रोजगार आए, पलायन रुके और पर्यावरण सुरक्षित रहे। उत्तराखंड अभी भी प्राकृतिक चुनौतियों से जूझ रहा है, इसलिए अब संतुलित विकास की आवश्यकता है, जिसमें पहाड़ों के पर्यावरण, संस्कृति और रोजगार को समान प्राथमिकता दी जाए।
1955 में मसूरी नगर पालिका परिषद से शुरू हुई अलग राज्य की मांग ने 1994 में निर्णायक रूप लिया। 2 सितंबर 1994 का दिन इतिहास का दर्दनाक अध्याय बना, जब छह आंदोलनकारियों ने शहादत दी। शहादत रंग लाई, 9 नवंबर 2000 वह दिन था, जब पूरे उत्तराखंड का सपना साकार हुआ। आज राज्य स्थापना दिवस पर उत्सव मनाने के साथ, उन शहीदों और उनके सपनों को स्मरण करने का भी दिन है।
