कैंपस में पहला दिन: कॉलेज जाने के उत्साह में नहीं आई नींद
वर्ष 1980 में जब मैंने अपनी इंटर की परीक्षा उत्तीर्ण की, तब कॉलेज में प्रवेश की उम्मींद मन में हिलोरे मान रहीं थीं। स्कूल से कॉलेज जाने का उत्साह क्या होता है, उस वक्त एकाएक मैने अनुभव किया। मन में यह सवाल भी था कि किसी महाविद्यालय में प्रवेश लिया जाए?
ऐसे में उस वक्त शहर के सभी युवाओं के मन में हमारे शहर कानपुर के क्राइस्ट चर्च कॉलेज जाना, वहां पढ़ना एक सपना हुआ करता था। मैं भी उसी सपने को पूरा करने के लिए प्रयास करने लगा। चुनौती कठिन थी, क्योंकि उस वक्त इस कॉलेज में प्रवेश पाना ही बड़ी उपलब्धि मानी जाती थी।
खैर! मैंने कॉलेज में प्रवेश के नियम समझे। चुंकि मैं 12 वीं कक्षा तक वालीबॉल में राष्ट्रीय व एक जूनियर राष्ट्रीय प्रतियोगिता का उत्तर प्रदेश का प्रतिनिधि कर चुका था। इस तरह से मेरे इस प्रोफाइल के चलते मेरा एडमिशन कॉलेज में हो गया था। कॉलेज में प्रवेश की सूचना जैसे ही मुझे मिली मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। यह खुशी इस कदर थी कि कॉलेज जाने के एक दिन पहले की पूरी रात मैं सो नहीं सका। पूरी रात कॉलेज के पहले दिन के विचार मेरे मन में आते रहे।
कॉलेज जाने के लिए सुबह जल्दी से तैयार होकर तय समय से लगभग आधे घंटे पहले ही मैं कॉलेज पहुंच गया। कॉलेज में मेरी ही तरह और भी छात्र-छात्राएं पहले से ही उपस्थित थे। संयोग से मुझे सबसे आगे बैठने का मौका मिला। कॉलेज के पहले ही दिन जब प्रोफेसर क्लास में आए तो उन्होंने सबका अभिवादन किया।
एक-एक कर सबका परिचय हुआ। जब मेरा परिचय पूछा गया तो मैंने अपनी खिलाड़ी पृष्ठभुमि को सबसे पहले बताया। मेरी बात जब तक पूरी होती, तब तक प्रोफेसर व क्लास में मौजूद सभी ने तालिायां बजाकर मेरा अभिवादन किया। यह पल मेरे जीवन के सबसे सुखद पलों में से एक था।
कॉलेज के पहले दिन ही मुझे ऐसा अनुभव हुआ कि अब मैं जीवन के व्यस्क और जिम्मेदार नागरिक की भूमिका में आ खड़ा हुआ हूं। क्लास में एक के बाद एक कक्षाएं संचालित होती रहीं। पहले दिन का कॉलेज खत्म हो गया।
बावजूद किसी को भी घर जाने का मन नहीं हो रहा था। ऐसे में क्लास में ही सभी ने दोस्ती भरे माहौल में एक दूसरे से बातचीत की। उस दिन बने दोस्तों में कुछ आज भी मेरे साथ हैं। वह दोस्ती आज भी सुख और दुख के पलों में जिंदा हैं। -सुशील शर्मा चेयरमैन, इंडस्ट्री कमेटी, मर्चेंट चेंबर ऑफ उत्तर प्रदेश, कानपुर।
