अलाइनमेंट और बैलेंसिंग में देरी पड़ सकती है भारी

Amrit Vichar Network
Published By Anjali Singh
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अधिकांश कार मालिक नियमित सर्विसिंग करवा लेते हैं, लेकिन वाहन की पूरी देखभाल के लिए केवल नॉर्मल सर्विस पर्याप्त नहीं होती। कई महत्वपूर्ण मेंटेनेंस प्रक्रियाएं ऐसी हैं जो सर्विस पैकेज में शामिल नहीं होतीं और अलग से करवानी पड़ती हैं। इन्हीं में से दो प्रमुख सेवाएं हैं—व्हील अलाइनमेंट और व्हील बैलेंसिंग।

विशेषज्ञों के अनुसार, इन दोनों प्रक्रियाओं की अनदेखी करने पर कार के टायर, सस्पेंशन सिस्टम और यहां तक कि इंजन पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। इसके बावजूद बड़ी संख्या में लोगों को यह नहीं पता होता कि इन्हें कब और कितने किलोमीटर बाद कराना चाहिए। ऐसे में यह जानना महत्वपूर्ण है कि आखिर कार में व्हील अलाइनमेंट और बैलेंसिंग कब करवानी चाहिए और किन संकेतों को देखते ही तुरंत यह सेवा लेनी चाहिए। 

आइए आपको बताते हैं इसके बारे में - जानकारों का कहना है कि व्हील अलाइनमेंट का मतलब कार के पहियों के एंगल को सही मापदंडों पर सेट करना होता है ताकि वाहन सीधी दिशा में चले और ड्राइविंग सुगम रहे। अलाइनमेंट बिगड़ने पर कार अपने आप बाईं या दाईं ओर खिंचने लगती है, जिससे हाईवे पर ड्राइविंग जोखिमपूर्ण हो जाती है। इसके साथ ही टायर भी असमान रूप से घिसने लगते हैं, जो लंबे समय में अतिरिक्त खर्च बढ़ाते हैं। दूसरी ओर, व्हील बैलेंसिंग में पहियों के वजन को बराबर किया जाता है। किसी पहिए में वजन असंतुलित होने पर स्टीयरिंग में कंपन महसूस होने लगता है, विशेष रूप से 60–80 किमी प्रति घंटे की स्पीड के बाद। यदि बैलेंसिंग समय पर न कराई जाए तो सस्पेंशन पार्ट्स जल्दी खराब होते हैं और कार की हाई-स्पीड स्थिरता प्रभावित होती है।

कब करानी चाहिए व्हील अलाइनमेंट और बैलेंसिंग

विशेषज्ञों के मुताबिक, कार मालिकों को हर 8,000 से 10,000 किलोमीटर के बीच व्हील अलाइनमेंट और बैलेंसिंग करानी चाहिए। इसके अलावा टायर बदलने के समय, लंबी यात्रा से पहले, या अगर वाहन अचानक किसी गड्ढे में जोर से गिर जाए, तब भी तुरंत अलाइनमेंट-बैलेंसिंग चेक करानी चाहिए। यदि कार एक तरफ खिंचने लगे या स्टीयरिंग में कंपन महसूस होने लगे, तो इसे और भी देर नहीं करनी चाहिए।

व्हील अलाइनमेंट और बैलेंसिंग के नुकसान

अलाइनमेंट और बैलेंसिंग में देरी करने पर कई तरह के नुकसान सामने आ सकते हैं। सबसे बड़ा नुकसान टायर की उम्र घटने के रूप में देखने को मिलता है। असमान घिसावट के कारण टायर अपेक्षा से पहले खराब हो जाते हैं, जिससे कार मालिक को अतिरिक्त खर्च करना पड़ता है। इसके अलावा, खराब अलाइनमेंट की वजह से इंजन पर अधिक दबाव पड़ता है और माइलेज कम हो सकता है। बैलेंसिंग खराब होने पर कार डगमगाने लगती है, जो सेफ्टी के लिहाज से खतरनाक है।

खर्चा

लागत की बात करें तो व्हील अलाइनमेंट और बैलेंसिंग दोनों सेवाएं बेहद किफायती हैं। बाजार में व्हील अलाइनमेंट का खर्च सामान्यतः 300 से 800 रुपये, जबकि व्हील बैलेंसिंग 300 से 600 रुपये तक होता है। यह मामूली खर्च आपको भविष्य में होने वाले महंगे रिपेयर से बचा सकता है।

ऑटो विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि समय पर व्हील अलाइनमेंट और बैलेंसिंग कराना किसी भी कार की देखभाल का बेहद जरूरी हिस्सा है। यह न केवल वाहन के प्रदर्शन और सुरक्षा को बेहतर बनाता है, बल्कि टायर और सस्पेंशन की लाइफ भी बढ़ाता है। इसलिए कार मालिकों को इस महत्वपूर्ण मेंटेनेंस को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए।