World AIDS Day: प्रदेश में एचआईवी के 1.95 लाख मरीज, 1.31 लाख से अधिक मरीज दवा के सहारे जी रहे सामान्य जीवन
पंकज द्विवेदी, लखनऊ, अमृत विचार : प्रदेश में एचआईवी और एड्स को लेकर स्वास्थ्य विभाग की ताजा रिपोर्ट ने फिर गंभीर तस्वीर सामने रखी है। प्रदेश में 1,31,734 एचआईवी मरीज एआरटी सेवाओं पर जीवित हैं। राज्य में अनुमानित एचआईवी से संक्रमित (पीएलएचआईवी) की संख्या 1,95,429 होने से संक्रमण की वास्तविक व्यापकता का अंदाजा लगाया जा सकता है। चिकित्सकों का मानना है कि एचआईवी के प्रति जागरुकता बढ़ने की वजह से मरीजों की संख्या बढ़ी है। सरकार की ओर से कई तरह के जागरुकता अभियान चलाए जा रहें हैं, इससे लोग संकोच छोड़ जांच के लिए आ रहे हैं। ये जानकारी किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय (केजीएमयू) में एंटी-रेस्ट्रोवायरल थेरेपी सेंटर (एआरटी) प्रभारी डॉ. डी. हिमांशू ने रविवार को दी।
डॉ. हिमांशू ने बताया विश्व एड्स दिवस 1988 के बाद से प्रत्येक वर्ष 1 दिसंबर को मनाया जाता है। 2030 तक एचआईवी की महामारी को समाप्त करने के लक्ष्य और इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए जागरूकता व समाज को शिक्षित करने पर जोर दिया जा रहा है। रिपोर्ट ये भी बताती है कि 146 मरीज सेकंड लाइन एआरटी और 20 मरीज थर्ड लाइन एआरटी पर इलाज ले रहे हैं। जनवरी से अक्टूबर के बीच 80 एएनसी परीक्षण और अप्रैल से अक्टूबर में 114 टीबी के साथ एचआईवी के मरीज हैं। प्रदेश के 75 जिलों में 61 एआरटी सेंटर, 26 लिंक एआरटी सेंटर, 27 सीएससी, 35 सीडी-4 लैब्स और 4 वायरल लोड टेस्टिंग सेंटर इस समय बड़ी संख्या में मरीजों को इलाज मुहैया करा रहे हैं।
लखनऊ में एक वर्ष में 536 मरीज बढ़े
केजीएमयू के एआरटी सेंटर से 4658 मरीज उपचार ले रहें हैं। एक वर्ष पहले ये आंकड़ा 4122 था। इनमें 275 बच्चे शामिल हैं। संक्रमित सिरिंज से नशीली दवाएं लेने के दौरान संक्रमित 352, असुरक्षित यौन संबंध 140, 20 ट्रांसजेंडर और 4 महिला सेक्स वर्कर शामिल हैं।
युवा अधिक चपेट में, ज्यादा चिन्हित हो रहे मामले
डॉ. हिमांशू ने बताया कि 2030 तक एचआईवी की महामारी को समाप्त करने के लक्ष्य और इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए जागरूकता व समाज को शिक्षित करने पर जोर दिया जा रहा है। एचआईवी की चपेट में 25 से 35 साल की उम्र के युवाओं की संख्या अधिक है। जागरुकता का ही नतीजा है कि केजीएमयू के एआरटी सेंटर में कोविड से पहले तक 2500 मरीज पंजीकृत थे। अब यह संख्या बढ़कर 4658 हो गई है। गर्भावस्था की शुरुआत में ही जांच कराने से एचआईवी की पुष्टि होने से गर्भस्थ को वायरस से बचाया जा सकता।
दवा काम न करने पर इंजेक्शन कारगर
डॉ. हिमांशू के मुताबिक एचआई के मरीजों को एआरटी सेंटर से निशुल्क दवाएं दी जा रही हैं। यह दवाएं टैबलेट के रूप में हैं। बीमारी गंभीर होने की स्थिति में जब यह दवाएं अपना असर नहीं कर पाती हैं। तब इंजेक्शन से वायरस को काबू किया जाता है। यह इंजेक्शन तीन व छह माह के अंतराल में लगाए जाते हैं। हालांकि, जिले में ऐसे मरीजों की संख्या नहीं है।
