ALERT: बेरोजगारी को जटिल बना रही भर्ती प्रक्रिया में देरी, लखनऊ विश्वविद्यालय के रिसर्च में हुए बड़े खुलासे
सरकारी नौकरियों की भर्ती में देरी और बेरोजगारी पर गणितीय दृष्टिकोण
लखनऊ, अमृत विचार: देश में सरकारी नौकरी पाना युवाओं का सपना रहा है। नौकरी की सुरक्षा, स्थायी वेतन और सामाजिक प्रतिष्ठा के कारण लाखों छात्र-छात्राएं हर साल प्रतियोगी परीक्षाओं में शामिल होते हैं। लेकिन इस सपने तक पहुंचने का रास्ता अक्सर लंबा और कठिन होता है। लखनऊ विश्वविद्यालय और अन्य संस्थानों के गणितज्ञों ने एक शोधपत्र में खुलासा किया है कि भर्ती प्रक्रिया में देरी बेरोजगारी को और अधिक जटिल बना देती है।
यह अध्ययन एआईपी कॉन्फ्रेंस प्रोसीडिंग में प्रकाशित हुआ है। लखनऊ विश्वविद्यालय के गणित विभाग के प्रो. पंकज माथुर, प्रो. हरेंद्र वर्मा, नेहा माथुर और विष्णु नारायण मिश्रा ने यह अध्ययन किया है। निजी कंपनियां कैंपस प्लेसमेंट या त्वरित भर्ती के माध्यम से योग्य उम्मीदवारों को तुरंत अवसर देती हैं। इसके विपरीत सरकारी भर्ती एजेंसियां जैसे संघ लोक सेवा आयोग और एसएससी कई बार वर्षों तक परिणाम घोषित नहीं कर पातीं। उदाहरण के लिए, पीसीएस-2016 का अंतिम परिणाम 24 महीने बाद आया, जबकि इसी दौरान पीसीएस-2017 और पीसीएस-2018 की परीक्षाएं भी हो चुकी थीं। वहीं एसएससी सीजीएल-2017 का परिणाम 20 महीने तक लंबित रहा, जिससे आगे की परीक्षाएं प्रभावित हुईं। इस देरी से न केवल उम्मीदवारों का भविष्य अधर में लटकता है, बल्कि रिक्त पद भी लंबे समय तक खाली रहते हैं।
गणितीय मॉडल का विश्लेषण
शोधकर्ताओं ने एक गैर-रेखीय गणितीय मॉडल तैयार किया, जिसमें बेरोजगारों की संख्या, नियोजित व्यक्तियों की संख्या, रिक्त पदों की संख्या और विज्ञापित पदों की संख्या को समय के साथ परखा गया।
शोध के परिणाम
यदि भर्ती प्रक्रिया में कोई देरी नहीं होती, तो अधिकतम उम्मीदवार समय पर नौकरी पा जाते हैं और बेरोजगारी की स्थिति स्थिर रहती। जैसे ही भर्ती में विलंब होता है, स्थिति अस्थिर और “अराजक” हो जाती है।
संख्यात्मक सिमुलेशन
शोध में दो उदाहरणों के लिए अलग-अलग पैरामीटर लेकर गणना की गई। दोनों ही स्थितियों में पाया गया कि यदि भर्ती में देरी होती है तो बेरोजगारी का स्तर बढ़ जाता है और रिक्त पद लंबे समय तक खाली रहते हैं। गणितीय सिमुलेशन से यह भी स्पष्ट हुआ कि समय पर भर्ती होने पर बेरोजगारी घटती है और रिक्त पद भर जाते हैं।
