हाईकोर्ट : पहले से दंडित कर्मचारी को दोबारा दंडित किए जाने का आदेश रद्द
लखनऊ, अमृत विचार : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सेवा नियमों में दोहरे दंड (डबल जियोपार्डी) के सिद्धांत को स्पष्ट करते हुए कहा कि किसी कर्मचारी को एक ही आरोपों और तथ्यों के आधार पर दोबारा सज़ा देना न केवल अवैध है, बल्कि प्राकृतिक न्याय की अवधारणा का भी घोर उल्लंघन है। उक्त आदेश न्यायमूर्ति मंजू रानी चौहान की एकलपीठ ने राजेन्द्र प्रसाद श्रीवास्तव द्वारा दाखिल याचिका स्वीकारते हुए वाराणसी विकास प्राधिकरण द्वारा जारी 12.07.2023 के दंडादेश तथा 13.12.2024 के अपील आदेश को पूर्णतः निरस्त कर दिया।
मामले के तथ्यों के अनुसार याची की प्रारंभिक नियुक्ति वर्ष 1986 में वाराणसी विकास प्राधिकरण में चतुर्थ वर्ग (सर्वे खलासी) के पद पर दैनिक वेतन पर हुई। लगभग 30 वर्षों की निरंतर सेवा के बाद याची जूनियर क्लर्क के पद पर पदोन्नत किए गए, उन्हें रिकॉर्ड सेक्शन के साथ स्टोर की अतिरिक्त जिम्मेदारी भी सौंपी गई थी। अभियोजन के अनुसार उन्होंने खरीद प्रक्रिया से संबंधित फाइल समय पर आगे नहीं बढ़ाई, लेकिन रिकॉर्ड से स्पष्ट हुआ कि फाइल 11 दिन तक स्टोर इंचार्ज के पास ही लंबित थी तथा याची/कर्मचारी को प्राप्त होते ही कार्यवाही तत्काल की गई। इस बीच स्टोर इंचार्ज ने याची पर लापरवाही और अक्षमता का आरोप लगाते हुए शिकायत कर दी। इस शिकायत पर 15.11.2022 को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया और बिना सुनवाई का अवसर दिए वेतन भी रोक दिया गया। याची ने उपाध्यक्ष के समक्ष मौखिक स्पष्टीकरण दिया, जिसे स्वीकार करते हुए 17.01.2023 को वेतन जारी करने और भविष्य में सावधानी बरतने की कठोर चेतावनी देकर मामला समाप्त कर दिया गया।
याची के अनुसार उसी दिन आश्चर्यजनक रूप से दोबारा प्रतिक्रिया देने या अभिलेख देखने का अवसर दिए बिना समान आरोप दोहराते हुए नया आरोपपत्र जारी कर दिया गया और अंततः पदावनति कर याची को पुनः चतुर्थ वर्ग पद पर भेज दिया गया। आरोप पत्र में याची पर दो आरोप लगाए गए, पहला- कार्य में लापरवाही एवं असावधानी और दूसरा- भवनों की सुरक्षा व्यवस्था से संबंधित आवश्यक सूचनाओं को प्रस्तुत करने में विलंब करना।
कोर्ट ने विशेष रूप से रेखांकित किया कि याची को जांच प्रतिवेदन प्रस्तुत करने या आपत्तियाँ दाखिल करने का कोई अवसर नहीं दिया गया। रिकॉर्ड से स्पष्ट है कि उपाध्यक्ष द्वारा मौखिक स्पष्टीकरण को स्वीकार करते हुए केवल कड़ी चेतावनी देकर वेतन जारी करने का आदेश दिया गया था, फिर भी उसी दिन समान आरोपों पर दोबारा विभागीय कार्यवाही शुरू कर दी गई। इस प्रकार वही आरोप दोहराकर याची के पीठ पीछे पूरी कार्यवाही करना मनमाना, गैर–कानूनी तथा विधि की दृष्टि से अवैध है। इन सभी तथ्यों को ध्यान में रखते हुए कोर्ट ने पदावनति को असंवैधानिक व अवैध ठहराया और दोनों विभागीय आदेशों को रद्द कर याचिका को स्वीकार कर लिया।
