सुवा नृत्य: ग्रामीण संस्कृति की धड़कन और परंपरा का रंग

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Published By Anjali Singh
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भारत विविधताओं और परंपराओं से भरा देश है, जहां हर प्रदेश अपनी अनूठी सांस्कृतिक पहचान के लिए जाना जाता है। कई परंपराएं समय के साथ धुंधली पड़ गई हैं, तो कई आज भी उतनी ही जीवंत और प्रभावशाली हैं। इन्हीं जीवंत परंपराओं में से एक है छत्तीसगढ़ का प्रसिद्ध सुवा नृत्य, जो ग्रामीण जीवन, आस्था और उत्सव का सुंदर संगम है। ‘सुवा’ का अर्थ होता है- तोता और इसी नाम पर आधारित यह लोकनृत्य लोकभावना को बड़े ही सहज रूप में अभिव्यक्त करता है।

छत्तीसगढ़ के गांवों में यह नृत्य प्राचीन काल से महिलाओं और युवतियों के समूह द्वारा किया जाता है। नृत्य की तैयारी भी कम रोचक नहीं होती है। महिलाएं बांस की बनी छोटी टोकरी में धान भरकर उसके ऊपर मिट्टी से बनाई गई तोते की प्रतिमा रखती हैं। यही टोकरी पूरे नृत्य का केंद्र बन जाती है।

रंग-बिरंगे परिधानों में सजी महिलाएं इस टोकरी को अपने संग लेकर गोल घेरा बनाती हैं और ताल के साथ धीमे-धीमे झूमते हुए सुवा नृत्य प्रस्तुत करती हैं। ड्रम या अन्य वाद्यों का प्रयोग कम ही होता है। इसका असली सौंदर्य महिलाओं की तालबद्ध ताली और सामूहिक सुर में गाए गए लोकगीतों में है।

प्राचीन मान्यता के अनुसार, जब महिलाएं सुवा नृत्य करते हुए किसानों के घर-घर जाती थीं, तो गांववासी उन्हें उपहारस्वरूप अनाज या पैसा देते थे। यह सिर्फ उपहार नहीं, बल्कि सम्मान और आस्था का प्रतीक था। संकलित धन और अनाज का उपयोग वे अपने सामूहिक उत्सव गौरा-गौरी विवाह में करती थीं।

इस प्रकार, सुवा नृत्य न केवल मनोरंजन का माध्यम रहा है, बल्कि सामाजिक जुड़ाव और सामुदायिक सहयोग की भी सुंदर परंपरा है। धान की फसल कटने के बाद महिलाएं यह नृत्य करती हैं, मानो प्रकृति के प्रति कृतज्ञता व्यक्त कर रही हों। गीतों में उनकी भावनाएं, गांव का दैनिक जीवन, फसलों की खुशहाली और आपसी सौहार्द का चित्रण बहुत सहजता से झलकता है। यही कारण है कि यह नृत्य ग्रामीण जीवन की सरलता, सुंदरता और सामूहिकता का सजीव रूप माना जाता है।

आज भी सुवा नृत्य छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक पहचान का अभिन्न हिस्सा है। यह केवल एक नृत्य नहीं, बल्कि पीढ़ियों को जोड़ने वाली धरोहर है, जो महिलाओं को अभिव्यक्ति, सहभागिता और सांस्कृतिक गर्व का मंच प्रदान करती है। ऐसे लोकनृत्य हमें हमारी जड़ों से जुड़े रहने की प्रेरणा देते हैं। इसलिए इस समृद्ध परंपरा को संरक्षित करना और आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाना हम सभी का दायित्व है।