हौसला हो तो छू लो आसमान

Amrit Vichar Network
Published By Anjali Singh
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तामकीन फातिमा के हौसलों की उड़ान एक जीवंत प्रमाण है कि सपने, मेहनत और शिक्षा की ताकत से कोई भी ऊंचाई हासिल की जा सकती है। उनकी यात्रा, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एसमयू) की कक्षाओं से शुरू होकर रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) की प्रयोगशालाओं तक पहुंचना, युवाओं को कई महत्वपूर्ण संदेश देती है। तामकीन की सफलता साबित करती है कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी जैसे पुरुष प्रधान क्षेत्रों में महिलाएं न केवल प्रवेश कर सकती हैं, बल्कि शीर्ष पर विराजमान हो सकती हैं।

यूजीसी-नेट (जेआरएफ) में ऑल इंडिया रैंक 2, इसरो इंटर्नशिप और डीआरडीओ में वैज्ञानिक ‘बी’ के पद पर चयन, ये सब उनकी प्रतिभा का प्रमाण हैं। यह ‘आत्मनिर्भर भारत’ के दौर में महिलाओं की बढ़ती भूमिका को रेखांकित करता है, जहां वे राष्ट्रीय सुरक्षा और तकनीकी नवाचार में योगदान दे रही हैं।

तामकीन फातिमा एक उभरती हुई भारतीय वैज्ञानिक हैं, जिन्होंने हाल ही में रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) में वैज्ञानिक ‘बी’ के पद पर चयनित होकर देशभर में प्रेरणा का स्रोत बन गई हैं। वे अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) की पूर्व छात्रा हैं और उनकी यह उपलब्धि न केवल व्यक्तिगत सफलता है, बल्कि एसमयू की शिक्षा प्रणाली और महिलाओं की विज्ञान के क्षेत्र में बढ़ती भूमिका का प्रतीक भी है। 

प्रेरणा और प्रभाव

तामकीन की यात्रा युवाओं, खासकर महिलाओं के लिए प्रेरणादायक है। एएमयू के फैकल्टी सदस्यों ने उनकी सफलता पर गर्व व्यक्त किया, “यह न केवल उनकी व्यक्तिगत उपलब्धि है, बल्कि संस्थागत गौरव भी है, जो एएमयू की उस विरासत को दर्शाता है, जो तकनीकी विशेषज्ञ और विद्वानों को जन्म देती है, जो भारत के विकास और रक्षा में योगदान देते हैं।” उनकी कहानी यह संदेश देती है कि शिक्षा, दृढ़ संकल्प और राष्ट्रसेवा की भावना से देश के सबसे प्रतिष्ठित अवसरों के द्वार खुल सकते हैं। वे ‘आत्मनिर्भर भारत’ मिशन के तहत भारत की तकनीकी संप्रभुता और रणनीतिक शक्ति में योगदान देने वाली महिलाओं की बढ़ती संख्या का प्रतीक हैं।

भविष्य की योजनाएं   

डीआरडीओ में शामिल होकर तामकीन ने विज्ञान और प्रौद्योगिकी के माध्यम से राष्ट्रसेवा का संकल्प लिया है। वे भारत की रक्षा अनुसंधान में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए उत्सुक हैं, जो उन्हें देश की वैज्ञानिक शक्ति का केंद्र बनाता है। उनकी यात्रा एएमयू के कक्षाओं से डीआरडीओ की प्रयोगशालाओं तक पहुंची है और यह केवल शुरुआत मानी जा रही है। तामकीन फातिमा की कहानी साबित करती है कि मेहनत और शिक्षा से कोई सपना असंभव नहीं। तामकीन की उड़ान उन लाखों युवाओं के लिए मिसाल है, जो सोचते हैं कि ‘मेरा बैकग्राउंड’ या ‘मेरा जेंडर’ बाधा बनेगा। वह कहती हैं, “हौसला हो तो आसमान छू लो।” 

रूफिया खान, शिक्षिका