सुप्रीम कोर्ट ने बांके बिहारी जी महाराज मंदिर के दर्शन का समय बदलने पर जारी किये नोटिस

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Published By Deepak Mishra
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नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को मथुरा में बांके बिहारी जी महाराज मंदिर के दर्शन के समय में बदलाव और देहरी पूजा को बंद करने को चुनौती देने वाली एक याचिका पर उत्तर प्रदेश राज्य और न्यायालय द्वारा गठित उच्च-स्तरीय समिति से जवाब मांगा।

मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत, न्यायाधीश जॉयमाल्या बागची और न्यायाधीश विपुल पंचोली की पीठ ठाकुर श्री बांके बिहारी जी महाराज मंदिर की प्रबंधन समिति द्वारा दायर एक रिट याचिका पर सुनवाई कर रही थी। प्रतिवादियों को जारी किये गये नोटिस का जवाब सात जनवरी, 2026 तक देना है।

यह याचिका शयन भोग सेवा के गोपेश गोस्वामी के साथ रजत गोस्वामी के माध्यम से मंदिर की प्रबंधन समिति द्वारा दायर की गई है। इसमें वृंदावन (मथुरा) की उच्च-स्तरीय मंदिर प्रबंधन समिति द्वारा लिए गए उन फैसलों पर सवाल उठाया गया है जो मंदिर के दर्शन के समय में बदलाव और पारंपरिक देहरी पूजा को बंद करने से संबंधित हैं। 

उच्चतम न्यायालय ने अगस्त में मंदिर का प्रशासन इलाहाबाद उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश अशोक कुमार की अध्यक्षता वाली एक उच्च-स्तरीय समिति की देखरेख में सौंप दिया था। याचिका में बदले हुए दर्शन के समय के मुद्दे पर तर्क दिया गया है कि यह निर्णय उच्चतम न्यायालय के आठ अगस्त के आदेश के विपरीत है, जिसमें यह स्पष्ट किया गया था कि उच्च-स्तरीय समिति का पूजा, सेवा और प्रसाद वितरण सहित मंदिर के आंतरिक कामकाज में कोई हस्तक्षेप नहीं होगा।
 
याचिका में देहरी पूजा के विषय में दावा किया गया है कि यह एक आवश्यक धार्मिक प्रथा है जो पारंपरिक रूप से तब की जाती है जब मंदिर सुबह, दोपहर और रात के शुरुआती घंटों के दौरान आम जनता के लिए बंद रहता है। देहरी को देवता के चरणों के रूप में माना जाता है, जहाँ भक्त इत्र (खुशबू), फूल और प्रार्थना अर्पित करते हैं। 

याचिका में तर्क दिया गया है कि इस अनुष्ठान को बंद करना मनमाना, अन्यायपूर्ण और संविधान के अनुच्छेद 25 और 26(बी) का उल्लंघन है, क्योंकि यह आवश्यक धार्मिक प्रथाओं और गोस्वामियों के अधिकारों में हस्तक्षेप करता है। याचिकाकर्ताओं ने कार किराए पर लेने के लिए उच्च-स्तरीय समिति द्वारा कथित रूप से मंदिर के धन के उपयोग और समिति में गोस्वामियों की नियुक्ति के लिए अपनाई गई प्रक्रिया पर भी आपत्ति जताई है। 

याचिका में तर्क दिया गया है कि अध्यक्ष ने नियुक्ति करते समय बहुमत की सहमति के नियम को दरकिनार कर दिया, जबकि बार-बार यह मांग की गयी है कि नियुक्ति 13 जून, 2025 के एक प्रस्ताव के अनुसार या एक स्वतंत्र चुनाव प्रक्रिया के माध्यम से किया जाना चाहिए। यह आरोप लगाया गया है कि एक व्यक्ति को छोड़कर, नियुक्त सदस्य गोस्वामियों को बहुमत की सहमति से नहीं चुना गया था। 

गौरतलब है कि उच्चतम न्यायालय ने आठ अगस्त को उत्तर प्रदेश श्री बांके बिहारी जी मंदिर ट्रस्ट अध्यादेश, 2025 के तहत गठित समिति के संचालन को निलंबित करते हुए, बांके बिहारी जी महाराज मंदिर के दिन-प्रतिदिन के कामकाज की देखरेख के लिए न्यायमूर्ति अशोक कुमार की अध्यक्षता में उच्च-स्तरीय समिति का गठन किया था। 

न्यायालय ने अध्यादेश की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाले मामले को इलाहाबाद उच्च न्यायालय को सौंप दिया था और निर्देश दिया था कि मामला तय होने तक उच्चतम न्यायालय द्वारा गठित समिति मंदिर का प्रबंधन करेगी। यह रिट याचिका एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड तनवी दुबे के माध्यम से दायर की गई है। याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान और तनवी दुबे पेश हुए। 

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