प्रकृति का मंत्रोच्चार, आत्मा की यात्रा का पड़ाव
यात्राएं अक्सर शरीर को थकाती हैं, लेकिन कुछ स्थान ऐसे होते हैं, जो उत्साह और उमंग भरने के साथ आत्मा को छू लेते हैं। नैमिषारण्य की यात्रा मेरे लिए कुछ ऐसा ही अनुभव लेकर आई। सुबह की नरम धूप और हल्की ठंडी हवा के बीच जब मैं नैमिष की ओर बढ़ रहा था, तो मन एक अजीब शांति से भरता जा रहा था। रास्ते में जब लोगों ने बताया कि नैमिष वह तपोभूमि है, जहां देवी-देवताओं और ऋ षियों ने युगों तक साधना की। इसके बाद तो हवा के हर झोंके में आध्यात्मिकता का स्पंदन महसूस होने लगा। समीप पहुंचते ही ऐसा लगा जैसे यह भूमि अपने हर कण में इतिहास, अध्यात्म और पवित्रता समेटे है। -- शिवेंद्र सिंह बघेल, शिक्षक
नैमिष पहुंचकर सबसे पहला दर्शन चक्रतीर्थ का हुआ। गोल घेरे में बने इस पवित्र सरोवर को देखते ही मन श्रद्धानवत हो गया। पानी बिल्कुल स्थिर था, लेकिन उसमें किसी अनदेखी लय की अनुभूति हो रही थी। जैसे समय की गति थमकर ध्यान में बैठ गई हो। जब मैंने अपने हाथ में जल उठाया, तो भीतर एक अजीब ऊर्जा महसूस हुई। मान्यता है कि ब्रह्माजी के चक्र से यह गोल कुंड बना था। चक्रतीर्थ से आगे बढ़ते हुए मैं हनुमानगढ़ी पहुंचा। यह मंदिर थोड़ी ऊंचाई पर स्थित है। मंदिर में बजती घंटियों की मधुर ध्वनि एक अलग ही संसार रच रही थीं। भक्तों की श्रद्धा, हवा में बिखरी चंदन की खुशबू और दीयों की लौ का तेज...सब मिलकर ऐसा माहौल बना रहे थे, जिसे शब्दों में बांध पाना कठिन है। मैं काफी देर सिर झुकाए खड़ा रहा, इस दौरान लगा मानो कोई अदृश्य शक्ति सिर को स्पर्श कर रही हो।
नैमिषारण्य केवल मंदिरों का समूह नहीं, बल्कि एक पूरी तपस्थली है। यहां के जंगलों में चलते समय ऐसा महसूस होता है कि प्रकृति स्वयं मंत्रोच्चार कर रही हो। लंबे-लंबे वृक्षों की छाया के नीचे चलते हुए मुझे लगा कि मैं किसी प्राचीन कथा का हिस्सा बन गया हूं। पक्षियों का कलरव और पत्तियों की सरसराहट का संगीत अनोखी शांति बिखेरता लगा। थोड़ा आगे बढ़कर मैंने व्यास गद्दी, दधीचि ऋषि आश्रम और अन्य पवित्र स्थलों के दर्शन किए। हर जगह एक अलग इतिहास, एक अलग भावना और एक अलग प्रकार का सुकून मिला। ऋ षियों के तप और कथाओं की ऊर्जा इस स्थान पर जीवित प्रतीत हुई। शाम होने को थी और सूरज की किरणें चक्रतीर्थ के जल पर सोना बिखेर रही थीं। किनारे बैठकर डूबते सूरज को देखते हुए महसूस हुआ कि नैमिषारण्य धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि आत्मा की यात्रा का पड़ाव है। यहां आकर मन अपने आप ही विनम्र, शांत और निर्मल हो जाता है।
धार्मिक महत्व
नैमिषारण्य हिंदू धर्म की सबसे प्राचीन और पवित्र तपोभूमि में से एक है। माना जाता है कि यहां 88,000 ऋ षियों ने सत्य और धर्म की रक्षा हेतु दीर्घकालीन यज्ञ किया था। पुराणों में वर्णित अधिकांश कथाएं, विशेषकर वेद-व्यास और सूत जी द्वारा सुनाई गई कई महापुराणों की रचना, इसी पवित्र भूमि पर हुई। यह स्थान देवताओं, ऋ षियों और साधकों की ऊर्जा से पूर्ण है। मान्यता है कि यहां की यात्रा जीवन के पापों को क्षीण करके मन को आध्यात्मिक शक्ति देती है और साधक को सत्य, शांति तथा मोक्ष के मार्ग के करीब लाती है।
इसलिए प्रसिद्ध है चक्रतीर्थ
चक्रतीर्थ नैमिषारण्य का सबसे पवित्र केंद्र माना जाता है। मान्यता है कि जब देवताओं ने सुरक्षित तपोभूमि की तलाश की, तब भगवान विष्णु ने अपना चक्र घुमाया और जहां वह गिरा, वहीं यह तीर्थ बना। इसके जल को अत्यंत पवित्र और कल्याणकारी माना जाता है। कहते हैं कि यहां स्नान करने से न केवल पापों का नाश होता है, बल्कि मन और आत्मा की शुद्धि होती है। पुराणों में इसे धरती का सबसे शुभ तीर्थ बताया गया है।
दधीचि ऋ षि से जुड़ा इतिहास
मान्यता है कि नैमिषारण्य में दधीचि ऋ षि ने देवताओं के लिए अपना शरीर अर्पित किया था। असुरों से रक्षा हेतु भगवान इंद्र को वज्र बनाने के लिए दधीचि की अस्थियों की आवश्यकता पड़ी और उन्होंने नि:स्वार्थ भाव से अपना शरीर त्यागकर धर्म की रक्षा की। नैमिष की धरती दधीचि के इसी दिव्य तप, त्याग और साहस को संजोए हुए है, जहां आने से व्यक्ति त्याग, करुणा और धर्म की शक्ति को गहराई से महसूस करता है।
