प्रो. राय ने रेखांकन से किया भारतीय विरासत को जीवंत 

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Published By Anjali Singh
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प्रो. हरीश चन्द्र राय के यथार्थवादी शैली में गतिशील रेखांकन इतने सजीव दिखते हैं कि ऐसा लगता है कि अभी बोल पड़ेंगे। प्रो. हरीश के रेखांकन अजंता, एलोरा, राजपूत और मुगल शैलियों पर आधारित हैं। उन्होंने रेखांकन और चित्रों के माध्यम से भारतीय विरासत की आत्मा को जीवंत किया है। वह न केवल शानदार चित्रकार और मूर्तिकार थे, बल्कि एक अच्छे शिक्षक भी थे। शिमला से पहले उन्होंने बरेली कॉलेज में भी अपनी सेवाएं दी थीं। वह ताउम्र कला और रंगों की दुनिया में सितारे की तरह चमकते रहे। उन्होंने कला क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य किया। वह हिमाचल में आर्ट्स कॉलेज के फाउंडर प्रिंसिपल भी रहे। हिमाचल सरकार ने उनकी कला को सराहा और राज्य संग्रहालय शिमला में हरिश चंद्र कला दीर्घा की स्थापना की। भले ही आज वे हमारे बीच नहीं हैं, मगर उनकी कलाकृतियां कलाप्रेमियों के दिलों में हैं।- रामराज मिश्रा, बरेली

27 मई वर्ष 1923 को बरेली के मोहल्ला मलूकपुर में हरीश चन्द्र राय का जन्म हुआ था। उन्होंने लखनऊ स्थित आर्ट्स कॉलेज से स्नातक किया था। वे लंबे समय तक वह बरेली कॉलेज में हिंदी-कला के शिक्षक रहे। उन्होंने बरेली कॉलेज में सोसाइटी ऑफ आर्ट्स का गठन किया। इसी सोसाइटी के माध्यम से एक रेखांक केंद्रित पुस्तक क्रिएशन ऑफ आर्ट्स 1952 में प्रकाशित हुई थी। बड़े बाजार की एक इलेक्ट्रिक प्रेस से इसका मुद्रण बीएस वर्मा ने किया था। हरीश चंद्र ने शिमला में 1961 से 1979 तक सेवाएं दीं। वह पोर्ट्रेट, सीनरी आदि बनाने में ऑयल, वाटर कलकर, पेस्टिल कलर का इस्तेमाल करते थे। उन्होंने 96 वर्ष तक निरंतर कला का सर्जन किया। हिमाचल सरकार ने वर्ष 2001 में उन्हें अचीवमेंट पुरस्कार से भी नवाजा। आजादी से पहले उन्होंने ब्रिटिस सेना में आर्टिस्ट के रूप में सेवाएं दी थीं।

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का तैयार किया था लाइव स्कैच  

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जब उपराष्ट्रपति थे, तब वह वर्ष 1955 में बरेली कॉलेज के दीक्षांत समारोह में आए थे। वहां हरीश चंद्र राय ने उनका लाइव पेंसिल स्कैच बनाया था, जिस पर डॉ. सर्वपल्ली के हस्ताक्षर भी हैं। हरीश चंद्र राय प्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरु शिवानंद के शिष्य थे। उन्होंने अपने गुरु का भी पेंसिल स्कैच तैयार किया था, जिस पर उनके गुरु के हस्ताक्षर हैं। उनके रेखांकन यथार्थवादी शैली में हैं। उन्होंने हस्त मुद्राएं, पैर की मुद्राओं का रेखांकन किया। भाव-भंगिमा को व्यक्त करने के लिए उन्होंने वन लाइन स्कैच बनाए। मुगल, पहाड़ी और राजस्थानी शैली के एक चश्म (आंख) , चेहरे भी बनाए, ताकि मुखाकृतियों का अध्ययन बारीकि से किया जा सके। जमीन पर बैठे और खड़े लोगों के चित्र अलग-अलग मुद्राओं में बनाए हैं। शिमला में रहते हुए उन्होंने पहाड़, जंगल और पर्वत के प्राकृतिक दृश्यों को भी उकेरा, जिसमें उन्होंने फोटोग्राफी का सहारा नहीं लिया। जैसे आंखों की बनावट, साफ सुथरे नाक-नक्श, अंगुलियों के लचीलापन है, जो श्रेष्ठ रेखांकन में विशेषषाएं होती हैं, वह सभी उसमें विद्यमान हैं।  

दिग्गज चित्रकारों का मिला सानिध्य

हरीश चंद्र राय के कला गुरु एवं प्रसिद्ध चित्रकार एके हलदर, श्रीधर मजूमदार, एलएम सेन रहे, जिनके सानिध्य में उन्होंने काम किया। उनकी पुत्री एवं रंगकर्मी अमला राय ने बताया कि 2023 में पिता के जन्मशताब्दी वर्ष पर शिमला में कला उत्सव का आयोजन किया था। अब हर साल पिता की स्मृति में कला उत्सव का आयोजन होता है। पिता के कला पक्ष के संदर्भ में उन्होंने बताया कि पिताजी का ध्यान स्कैचिंग पर ज्यादा रहता था। वह अभ्यास के लिए अपने छात्रों को भी यही सीख देते थे। जीवन भर वह कला में ही रमे रहे। 30 अक्टूबर 2018 को मुंबई में उनका निधन हुआ था।

प्रारंभिक लेखांकन का अनमोल संग्रह 

'प्रो. हरीश चंद्र राय के रेखांकन' पुस्तक के संपादक बरेली निवासी हरिशंकर शर्मा कहते हैं कि पुराने कलाकारों की कलाकृतियां तो मिल जाती हैं, मगर आरंभिक कार्य दुर्लभ होते हैं। यह पुस्तक उनकी प्रारंभिक रेखांकन का अनमोल संग्रह है, जो कला जगत के लिए महत्वूपर्ण है। यह पुस्तक हरीश चंद्र राय की बेटी अमला राय को समर्पित है।

 

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