जीपीएस स्पूफिंग साइबर हमले का नया हथियार
सब कुछ बेहद चौंकाने वाला काफी हद तक डराने वाला भी था। नई दिल्ली के आसमान पर उड़ रहे विमानों की कॉकपिट में बैठे पायलटों को विमान की पोजीशन समझना मुश्किल हो रहा था। स्क्रीन पर मिल रहे संकेत अचरज में डालने वाले थे। विमान की पोजीशन लगातार बदलने के साथ ऊंचाई के आंकड़े भी बदल रहे थे। कुछ ऐसा लग रहा था कि जैसे सब कुछ कई अज्ञात शक्ति संचालित कर रही हो।
पायलटों को इंदिरा गांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट के रनवे की जगह खेत दिखाई दे रहे थे। यह भयावह स्थिति थी, जरा सी असावधानी किसी बड़े हादसे को दावत दे सकती थी। ऐसे में पायलटों को तुरंत जीपीएस आधारित ऑटो सिस्टम बंद करके विमान का मैनुअल कंट्रोल संभालना पड़ा। तब जाकर जान में जान आई। बीते दिनों देश की राजधानी में सर्वाधिक सुरक्षित और सतर्क निगरानी वाले हवाई क्षेत्र इंदिरा गांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर 800 से ज्यादा उड़ानों के अचानक बाधित होने के पीछे कुछ ऐसा ही घटा, लेकिन यह सब कुछ किसी तकनीकी खामी के कारण नहीं हुआ।
पता चला कि एक अत्याधुनिक साइबर हमला अंजाम दिया गया था। इसके लिए जीपीएस स्पूफिंग का इस्तेमाल करके ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम यानी जीपीएस के सिग्नलों से छेड़छाड़ की गई थी। दिल्ली के बाद ऐसी ही कुछ कारस्तानी मुंबई में भी सामने आई। इसके बाद मुंबई के पास एयर रूट्स में जीपीएस सिग्नल गड़बड़ी या सिग्नल खोने की चेतावनी जारी करनी पड़ी। पायलटों को विमान के नेविगेशन सिस्टम को गुमराह करने वाली स्थिति को लेकर सतर्क किया गया। जीपीएस स्पूफिंग के इस बड़े मामले की अब गहनता से जांच चल रही है। ‘स्पूफिंग’ शब्द का अर्थ होता है जालसाजी। जीपीएस स्पूफिंग में, वास्तविक जानकारी को ओवरराइड करके रिसीवर को नकली जानकारी भेजकर भ्रमित किया जाता है।-मनोज त्रिपाठी, कानपुर
जीपीएस स्पूफिंग एक धोखा देने वाली तकनीक है। इसमें नकली सैटेलाइट सिग्नल भेजे जाते हैं। ये सिग्नल जीपीएस रिसीवर को गलत स्थान, दिशा और समय की जानकारी देते हैं। इससे हवाई जहाज का नेविगेशन सिस्टम गड़बड़ हो जाता है। यह तकनीक जैमिंग में सिग्नल को पूरी तरह ब्लॉक किए जाने से अलग है। इसमें सिर्फ गलत जानकारी डाली जाती है, जिससे पायलट को लगता है कि उसका जहाज कहीं और उड़ रहा है।
इस तरह यह तकनीक विमान को रनवे से दूर किसी खुले मैदान में ले जा सकती है, उसे निश्चित संचालित मार्ग से हटाकर खतरे की ओर धकेल सकती है। यही नहीं, जीपीएस स्पूफिंग का इस्तेमाल करके मिसाइल को गलत लक्ष्य पर भेजा जा सकता है। ड्रोन को गलत जगह पर गिराया जा सकता है। यहां तक कि पूरे एयरस्पेस की दिशा ही बदली जा सकती है। यही कारण है कि आज की दुनिया में जीपीएस स्पूफिंग को साइबर युद्ध के खतरनाक हथियारों में गिना जा रहा है।
कुछ इस तरह काम करती यह तकनीक
जीपीएस स्पूफिंग एक प्रकार का साइबर हमला है। इसे अंजाम देने के लिए लक्ष्य के पास एक रेडियो ट्रांसमीटर लगाया जाता है, जो प्रसारित हो रहे वास्तविक जीपीएस सिग्नल में बाधा डालता है। हजारों मील दूर उपग्रहों के माध्यम से आने वाले जीपीएस सिग्नल अक्सर कमजोर होते हैं, ऐसे में एक मजबूत रेडियो ट्रांसमीटर का उपयोग करके कमजोर सिग्नलों को ओवरराइड कर दिया जाता है। इसके बाद एक नकली जीपीएस सिग्नल बनाया जाता है, जो असली सिग्नल की नकल करता है या उससे कहीं अधिक शक्तिशाली होता है।
इसके माध्यम से जीपीएस रिसीवर को नकली या झूठे जीपीएस सिग्नल भेजे जाते हैं, जिससे रिसीवर इन नकली सिग्नलों को वास्तविक मान बैठता है और यह मानने के लिए मजबूर हो जाता है कि वह किसी गलत स्थान पर है या समय गलत है। रिसीवर को आमतौर पर इस हेराफेरी का जल्दी पता भी नहीं चल पाता है। हाल के दिनों में आसमान में उड़ान भरते पायलट्स को जीपीएस स्पूफिंग की इसी बड़ी मुसीबत से दो-चार होना पड़ा है।
आखिर क्या हुआ था दिल्ली के आसमान पर
दिल्ली के ऊपर से उड़ान भरने वाले विमानों ने स्पूफिंग की घटनाओं की सूचना दी थी। एयर इंडिया के एक पायलट ने मीडिया को बताया कि नवंबर के पहले सप्ताह में दिल्ली से आने और जाने वाले सभी छह दिनों में उन्हें स्पूफिंग का सामना करना पड़ा। एक अन्य पायलट ने कहा कि उनके कॉकपिट सिस्टम ने एक गलत इलाके की चेतावनी जारी की, जो आगे बाधाओं का सुझाव देती थी, जहां कोई भी मौजूद नहीं था। कई अन्य पायलटों को भी एयरपोर्ट से उड़ान भरते समय ऐसी ही चेतावनियों का सामना करना पड़ा। ये घटनाएं दिल्ली के 60 समुद्री मील के भीतर के विमानों द्वारा रिपोर्ट की गईं।
कहां किया जा सकता है इस्तेमाल
- विमानों, जलपोतों या ड्रोन के नेविगेशन सिस्टम को भ्रमित करना।
- संवेदनशील जानकारी तक पहुंच प्राप्त करना या निगरानी प्रणाली को धोखा देना।
- कीमती कार्गो शिपमेंट चोरी करने के लिए परिवहन के दौरान उनकी ट्रैकिंग जानकारी को बदलना।
- आतंकवादी गतिविधियों में इस्तेमाल करके महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे या सैन्य अभियानों को बाधित करना।
- स्मार्टफोन ऐप्स और स्थान डेटा में हस्तक्षेप करना, नेटवर्क सिस्टम और जीपीएस डेटा पर निर्भर महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे पर साइबर हमले करना।
स्वदेशी नेविगेशन सिस्टम 'नाविक' दुनिया में सबसे सुरक्षित व उन्नत
जीपीएस दुनियाभर में इस्तेमाल होने वाली वैश्विक नेविगेशन सैटेलाइट प्रणालियों (जीएनएसएस) में से एक है। स्थान की जानकारी देने के अलावा इसका उपयोग सटीक समय बताने के लिए भी किया जाता है। दुनिया के कई देश अब अत्याधुनिक एन्क्रिप्टेड जीपीएस सिस्टम विकसित कर रहे हैं। अमेरिका ने तो अपने नागरिक जीपीएस को भी 'चिमेरा' नामक नए एन्क्रिप्टेड सिग्नल से लैस करना शुरू कर दिया है ताकि स्पूफिंग के हमलों को रोका जा सके, लेकिन भारत के पास दुनिया का सबसे सुरक्षित और उन्नत स्वदेशी नेविगेशन सिस्टम ‘नाविक’ है, जो जीपीएस की तुलना मंु काफी सटीक और सुरक्षित माना जाता है। नाविक के सिग्नल एन्क्रिप्टेड हैं और इन्हें स्पूफ करना लगभग असंभव जैसा है। भारतीय वैज्ञानिकों ने नाविक को इस तरह विकसित किया है कि यह पूरे भारतीय क्षेत्र में जीपीएस से कहीं अधिक विश्वसनीय है। माना जा रहा कि यदि नाविक आधारित एप्रोच सिस्टम दिल्ली एयरपोर्ट पर लागू होता, तो स्पूफिंग की घटनाएं नहीं होतीं।
देश की सीमा और विमानन सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा
जीपीएस स्पूफिंग भारत की विमानन सुरक्षा, सीमा सुरक्षा और राष्ट्रीय संप्रभुता के लिए गंभीर खतरा है, क्योंकि इस तकनीक के इस्तेमाल में कम लागत लगती है और यह बेहद प्रभावी भी है। देश के सीमावर्ती इलाकों में इस तरह की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। पाकिस्तान और म्यांमार से लगती देश की सीमाओं के पास जीपीएस स्पूफिंग की घटनाएं देखी जाती रही हैं। इसी वर्ष सरकार ने संसद में जानकारी दी थी कि नवंबर 2023 से फरवरी 2025 के बीच देश के सीमावर्ती क्षेत्रों में 465 जीपीएस हस्तक्षेप की घटनाएं दर्ज की गई थीं। समस्या जटिल है, लेकिन इससे पार पाना असंभव नहीं है। तकनीकी नवाचार, सतर्कता, राजनयिक समन्वय और रणनीतिक प्रतिरोध के जरिए भारत इस उभरते इलेक्ट्रॉनिक युद्ध क्षेत्र में न सिर्फ अपने हवाई क्षेत्र बल्कि सीमा को सुरक्षित कर सकता है।
