जॉब का पहला दिन : शुरू हुआ जीवन का एक नया अध्याय

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Published By Anjali Singh
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जीवन के कतिपय अनुभव ऐसी मधुर स्मृतियों में परिणत हो जाते हैं, जो आगे चलकर हमारे व्यक्तित्व, आत्मविश्वास और पेशेवर पहचान को गहराई से प्रभावित करती हैं। वर्षों के सतत अध्ययन, तैयारी, लंबी प्रतीक्षा और कठिन संघर्ष के बाद जब किसी प्रतिष्ठित महाविद्यालय में नियुक्ति मिलती है, तो मन में एक साथ कई भावनाएं उमड़ती हैं। उत्साह, संकोच, जिम्मेदारी और भविष्य को लेकर एक अनोखी सी आशा आपको चहुंओर से घेर लेती हैं। शाहजहांपुर के एक प्रतिष्ठित महाविद्यालय में मेरा पहला दिन भी बिल्कुल ऐसा ही था। भावनाओं का सुंदर संगम, नए माहौल का स्पर्श और सीखने के असीमित अवसरों का आरंभ।

यद्यपि सुबह से ही मन में हल्की-सी घबराहट थी, किंतु उस घबराहट पर मेरी उत्सुकता भारी पड़ रही थी। मैंने अलमारी से सलीकेदार औपचारिक पोशाक चुनी, आईने में एक नजर खुद को देखा और मन ही मन कहा, “आज से जीवन का एक नया अध्याय शुरू हो रहा है।” महाविद्यालय पहुंचने तक मन में कई सवाल थे- कैसा वातावरण होगा? सहकर्मी कैसे होंगे? विद्यार्थी कैसा व्यवहार करेंगे? और सबसे महत्वपूर्ण यह कि क्या मैं अपनी भूमिका को उतनी ही कुशलता से निभा पाऊंगा, जितनी अपेक्षा संस्था मुझसे करती है? इन सब चिंताओं के बावजूद मेरे भीतर एक सकारात्मक ऊर्जा थी, जो कदमों को आगे बढ़ाते हुए आश्वस्त कर रही थी कि सब कुछ अच्छा होगा।

महाविद्यालय के मुख्य द्वार पर कदम रखते ही परिसर की साफ-सुथरी हरियाली, बेमिसाल स्वच्छता, भवनों की सादगीपूर्ण भव्यता और विद्यार्थियों की हलचल ने मेरे मन में एक अद्भुत रोमांच एवं आत्मीयता का भाव जगा दिया। ऐसा लग रहा था मानो यह जगह मेरे इंतजार में ही थी। कुछ छात्र बड़ी विनम्रता से मुस्कुराकर मेरा अभिवादन कर चुके थे। यह छोटा-सा व्यवहार मेरे भीतर के तनाव को थोड़ा कम कर गया। प्रशासनिक भवन के अंदर स्टाफ रूम तक पहुंचने पर वहां पहले से उपस्थित शिक्षकों ने बड़े स्नेह से मेरा स्वागत किया। 

खास बात तो यह थी कि मेरे विभाग में उस समय कोई शिक्षक कार्यरत नहीं था, लिहाजा मुझे नियुक्ति के साथ ही विभाग का विभागाध्यक्ष बनने का सुअवसर प्राप्त हुआ। साथी शिक्षकों से परिचय भी एक आत्मीय संवाद की तरह था। हर कोई अपने अनुभव साझा करने को उत्सुक और मुझे सहज महसूस कराने को तत्पर। वातावरण में न तो औपचारिकता का बोझ था और न ही प्रतिस्पर्धा की कठोरता, था तो बस एक सहयोगी भाव, जो किसी भी नए व्यक्ति के लिए सबसे बड़ी ताकत होता है।

कुछ देर बाद मैंने महाविद्यालय के विभिन्न विभागों, पुस्तकालय, प्रयोगशालाओं और प्रशासनिक इकाइयों का अवलोकन किया। पुस्तकालय के विशाल संग्रह को देखकर मन भीतर तक प्रसन्न हो उठा। पुस्तकें हमेशा से मेरी सबसे प्रिय साथी रही हैं और ऐसे समृद्ध पुस्तकालय का होना मेरे लिए किसी सौभाग्य से कम नहीं था। वहीं प्रयोगशाला में आधुनिक उपकरणों और सुव्यवस्थित व्यवस्था ने यह भरोसा दिलाया कि यहां विद्यार्थियों के लिए सीखने का संसार वास्तव में विशाल है।
फिर आया वह क्षण, जिसका सबसे अधिक इंतजार था-पहली कक्षा लेने का। 

हाथ में चाक और उपस्थिति रजिस्टर लिए जब मैं कक्षा में पहुंचा, तो लगभग अस्सी छात्रों की निगाहें मेरी ओर उठीं। यह क्षण अत्यंत भावुक और चुनौतीपूर्ण था। उनके लिए मैं एक नया शिक्षक था और मेरे लिए वे भविष्य के निर्माण की जिम्मेदारी। मैंने मुस्कुराते हुए अभिवादन किया और छात्रों की आंखों में सम्मान के साथ-साथ उत्सुकता की चमक महसूस की। मैंने अपना संक्षिप्त परिचय दिया और उनसे भी अपने बारे में बताने को कहा। विद्यार्थियों की प्रतिक्रियाएं सुनकर यह समझ आ गया कि कक्षा में विविध पृष्ठभूमि, अलग-अलग विचार और सीखने की भिन्न गति वाले छात्र मौजूद हैं और इन्हीं के बीच मैं आने वाले दिनों में अपनी शिक्षण-यात्रा को आकार दूंगा।

व्याख्यान के दौरान छात्रों की उत्सुकता, प्रश्न पूछने की सहजता और ध्यान से सुनने का स्वभाव देखकर मन का सारा तनाव समाप्त हो गया। यह अनुभव किसी औपचारिक पाठ्य प्रस्तुति जैसा नहीं, बल्कि एक संवाद जैसा था, जहां ज्ञान का आदान-प्रदान दोनों तरफ से हो रहा था। कक्षा के अंत में जब छात्रों ने तालियों के साथ मेरा स्वागत किया, तो हृदय गर्व और कृतज्ञता से भर उठा। यही वह पल था, जिसने मुझे एहसास दिलाया कि शिक्षक की भूमिका केवल विषय पढ़ाने तक सीमित नहीं होती, बल्कि वह छात्रों के जीवन में प्रेरणा, मार्गदर्शन और सकारात्मक ऊर्जा का स्रोत भी बनती है।

पहली कक्षा के बाद विभाग में लौटते हुए कई शिक्षकों ने उत्सुकता से पूछा- ‘पहले दिन का अनुभव कैसा रहा?’ उनकी आत्मीयता ने दिन को और भी सुखद बना दिया। चाय की गरमा-गरम चुस्की के साथ जब हम शिक्षण-प्रक्रिया, विभागीय गतिविधियों और छात्रों की संभावनाओं पर बातचीत कर रहे थे, तब महसूस हुआ कि यह महाविद्यालय केवल एक संस्था नहीं, बल्कि एक जीवंत परिवार है, जिसे ज्ञान, सहयोग और सामूहिक प्रयत्नों ने एक सूत्र में बांध रखा है। दोपहर में मुझे प्राचार्य महोदय के साथ बैठक में शामिल होने का अवसर मिला। वहां वार्षिक गतिविधियों की रूपरेखा, अनुसंधान परियोजनाएं, छात्रों के अतिरिक्त विकास की योजनाएँ तथा नई शिक्षण तकनीकों पर चर्चा के साथ ही साथ मुझे कई नई जिम्मेदारियां सौंपी गईं। यह देखकर मन अति प्रसन्न हुआ कि संस्था केवल औपचारिक शिक्षण तक सीमित नहीं, बल्कि विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास के प्रति सजग और प्रतिबद्ध है। इस बैठक में मेरा सुझाव भी सुना गया, जिससे मेरा आत्मविश्वास और बढ़ गया।

दिन के अंत में जब मैं परिसर से बाहर निकला, तब पूरे दिन की स्मृतियां मेरे मन में चलचित्र की तरह चल रही थीं। सुबह की घबराहट अब एक मधुर गर्व में बदल चुकी थी। यह अनुभूति अद्भुत थी कि अब मैं भी एक ऐसे महाविद्यालय का हिस्सा हूं, जो समाज को दिशा देता है, भविष्य गढ़ता है और ज्ञान को पीढ़ी दर पीढ़ी आगे ले जाता है। महाविद्यालय में नौकरी का पहला दिन मुझे न केवल शिक्षक रूप से समृद्ध कर गया, बल्कि मुझे यह भी समझा गया कि शिक्षण केवल एक कार्य नहीं, बल्कि एक साधना है, जिसमें निरंतर सीखना, संवेदनशील होना और हर दिन बेहतर बनने का प्रयास शामिल है। यह पहला दिन मेरे लिए आत्मविश्वास का आधार बना, जिसने आगे आने वाले दिनों में मुझे उत्साह और समर्पण के साथ अपनी जिम्मेदारियां निभाने के लिए प्रेरित किया। महाविद्यालय का वह पहला दिन आज भी स्मृतियों में उज्जवल है और हमेशा रहेगा, एक प्रेरणा की तरह, एक विश्वास की तरह और एक नए आरंभ की तरह।

शिशिर शुक्ला
विभागाध्यक्ष
भौतिकी विभाग
स्वामी शुकदेवानंद महाविद्यालय
मुमुक्षु आश्रम, शाहजहांपुर