जॉब का पहला दिन: मरीजों का उपचार कर खुद को गौरवान्वित महसूस किया

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Published By Anjali Singh
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वर्ष 2010 मेरे जीवन में एक नए अध्याय की शुरुआत लेकर आया। एलएलआरएम मेडिकल कॉलेज, मेरठ से मेडिकल की पढ़ाई पूरी करने के बाद मुझे शासन से नियुक्ति पत्र मिला और मेरी पहली तैनाती शाहजहांपुर जिले के तिलहर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) में बतौर मेडिकल अफसर हुई। यह मेरी नौकरी का पहला दिन था। एक ऐसा दिन जो आज भी स्मृतियों में उतना ही ताजा है। जब मैं सीएचसी के परिसर में प्रवेश कर रहा था, तभी ओपीडी के बाहर मरीजों की भारी भीड़ देखकर क्षणभर के लिए मन कुछ संकोच से भर गया। कॉलेज में पढ़ाई के दौरान मरीजों को संभालने का अनुभव था, लेकिन इतनी बड़ी संख्या एकदम से सामने आना मेरे लिए बिल्कुल नया था। ऐसे में मन खुद से कई सवाल पूछ रहा था- क्या मैं यह जिम्मेदारी निभा पाऊंगा? क्या मैं इन लोगों के लिए कुछ सार्थक कर सकूंगा? इन्हीं विचारों के बीच चिकित्सा अधीक्षक, डॉ. संजय अग्रवाल से मिला। उन्होंने मुस्कुराकर मेरा स्वागत किया, कागजी औपचारिकताएं पूरी कराईं और मुझे शुभकामनाएं दीं। उनके आत्मीय व्यवहार ने भीतर एक भरोसा सा भर दिया। इसके बाद मैं सीधे ओपीडी के अपने कक्ष में पहुंच गया और दिनभर मरीजों को देखने में व्यस्त हो गया।

पहले ही दिन 45 मरीजों की जांच की- किसी को बुखार था, किसी को त्वचा संबंधी परेशानी, कोई पुरानी बीमारी लेकर आया, तो कोई छोटी-सी समस्या के साथ। मैंने दवाइयों के साथ-साथ उन्हें उनके रोगों के प्रति जागरूक करने का भी प्रयास किया। इलाज के साथ जानकारी देना हमेशा से मेरी प्राथमिकता रही, क्योंकि जागरूकता ही बीमारी को जड़ से मिटाने का पहला कदम है। 2 बजे के आसपास ओपीडी समाप्त होने पर टीकाकरण से संबंधित एक विभागीय बैठक में भी शामिल हुआ। यह मेरे लिए पहली सरकारी चिकित्सकीय बैठक थी, जिसने आने वाले समय के प्रशासनिक कार्यों की जिम्मेदारी का भी एहसास कराया। जब शाम को घर लौटा, तो मन गहरे संतोष से भरा हुआ था। उस दिन एक अलग ही अनुभव जहन में हिलोरे मार रहा था और उस वक्त हेडमास्टर के पद पर शिक्षा विभाग में सेवाएं दे रहे मेरे पिता रफीक अहमद अंसारी की एक बात याद आई कि “डॉक्टर बनने के बाद सरकारी सेवा ही करना, क्योंकि सरकारी अस्पतालों में ऐसे मरीज आते हैं, जो कि आर्थिक रुप से कमजोर होते हैं। इनका इलाज करने से उन्हें नई जिंदगी देने के साथ ही तुम्हें भी एक सकारात्मक ऊर्जा मिलेगी।” उस दिन मुझे पहली बार महसूस हुआ कि वे कितने सही थे।
 
सरकारी अस्पताल में एक-एक मरीज की मुस्कान, उनकी दुआएं और उनका भरोसा- यही असल कमाई है। इसी भाव के साथ 2010 में शुरू हुआ मेरा सेवाकार्य आज भी उसी समर्पण के साथ जारी है। वर्तमान में मैं बरेली के सीएमओ कार्यालय में अपनी सेवाएं दे रहा हूं। इन पंद्रह वर्षों में बहुत कुछ बदला समय, स्थान, पद और कार्यशैली, लेकिन मरीजों की सेवा का भाव और चिकित्सा के प्रति समर्पण आज भी उतना ही अडिग है। यही सेवा मुझे हर दिन नई ऊर्जा देती है और डॉक्टर बनने के वास्तविक उद्देश्य को जीवित रखती है।- डॉ. लईक अहमद अंसारी, डिप्टी सीएमओ बरेली।