लवबर्ड: जीत जाएंगे हम, तू अगर संग है
कहते हैं कि प्यार की शुरुआत अक्सर सबसे आम पलों में छुपी होती है, लेकिन उसकी गहराई और असर वक्त के साथ हमारे जीवन को बदल देता है। हमारी पहली मुलाकात किसी रोमांटिक जगह पर नहीं, बल्कि एक बहुत साधारण-सी सुबह बुंदेलखंड यूनिवर्सिटी के गेट पर हुई थी। शैफाली अपनी क्लास के लिए भाग रही थी और मैं (शिव) अपने बीटेक की डिग्री लेने यूनिवर्सिटी पहुंचा था। अचानक भीड़ में शैफाली का बैग थोड़ा उलझा, और वह लड़खड़ा गई। मैंने तुरंत हाथ बढ़ाकर उसे संभाल लिया।
“आप ठीक हैं?” मैंने पूछा। शैफाली ने हल्की-सी शर्मीली मुस्कान के साथ कहा, “हां, बस दिन की शुरुआत थोड़ी नाटकीय हो गई।” हम दोनों अलग हो गए, पर उस एक पल ने दोनों के दिमाग में एक छोटी-सी जगह बना ली। अगले ही हफ्ते, किस्मत ने फिर करवट ली। शैफाली अपने कॉलेज की तरफ से साइंस प्रोजेक्ट की एक प्रदर्शनी में आई थी और मैं वहां पर एक जज पैनल के रूप में आया था। मैंने उसे देखा और मुस्कुरा दिया। “फिर मिल ही गए,” उसने कहा। “लगता है शहर छोटा है या किस्मत बड़ी,” शैफाली ने चुटकी ली।
इस बार बातचीत लंबी चली कला, काम, सपने, यात्राएं दोनों को पता ही नहीं चला कब दो अजनबी अपनी दुनिया एक-दूसरे के सामने खोलने लगे। मैं दिल्ली वापस लौट आया, परंतु फोन पर लंबी बातें चलने लगी धीरे-धीरे हम एक-दूसरे की दुनिया में सहज होने लगे। मुलाकातें तो कम होती थीं, परंतु शैफाली का केयरिंग नेचर, मुस्कान और सादापन मुझे उसकी तरफ खींचने लग गया। मैंने शैफाली को आजादी, सपने देखना और खुद पर भरोसा करना सिखाया। कई सालों की फोन पर बात और छोटी-छोटी मुलाकातों के बाद हमने तय किया कि यह कहानी सिर्फ ‘मुलाकात’ तक सीमित नहीं रहेगी, यह रिश्ता अब साझेदारी, विश्वास और प्यार की नई शुरुआत बनेगी।
प्यार तो हो गया परंतु करियर की उठापटक के बीच मैंने तय नहीं कर पा रहा था कि इसको आगे कैसे मुकाम दिया जाए? एक तरफ करियर को संवारने का समय था और उसी बीच मैं विदेश शिफ्ट हो गया। कभी-कभी तो ऐसा भी लगा की अब ये दूरी इस रिश्ते को यहीं पर ही न रोक दें। अब फोन पर बातें करना बहुत महंगा था, परंतु शैफाली अपने समर्पण के प्रति अपनी ट्यूशन और डांस क्लासेज से कमाए सारे पैसे सिर्फ मुझसे बात करने में खर्च कर देती। बातें कम हो रही थीं मिलना तो बिल्कुल मुश्किल था। विदेश में रहते हुए अकेले पन में शैफाली की फोन कॉल मुझे लिए रामबाण का काम करती। विदेश की चकाचौंध भी मुझे शैफाली के समर्पण और प्यार से अलग न कर पाई। जब ये प्रेम कहानी शादी की बात तक पहुंची, तो जिंदगी एक नए प्रश्नपत्र के साथ उनके सामने खड़ी थी।
घरवालों के सवाल, दोनों परिवारों के विचारों और हैसियत में जमीन आसमान का फर्क और समाज के करोड़ों प्रश्न दोनों के सामने मुंह फैलाए खड़े थे। घरवालों की तरफ से पहले तो पूर्ण मना था, परंतु दोनों ने हार नहीं मानी। दोनों अपनी सीमाओं में रहते हुए अपने अपने घरवालों को मनाने का पूर्ण प्रयास हर पल करते रहे। ये समय ऐसे गुजर रहा था कि मुझे तो आईएएस बनने की परीक्षा जैसा लग रहा था, परंतु शैफाली बहुत धैर्यवान थी। वो अपने फैसले पर अडिग थी। पूरे दो साल बीत गए तब जाकर घर वाले माने। फिर समाज के लोगों ने भी अड़ंगे लगाए और ये प्रेम की नाव भारी तूफान में हिचकोले लगाते-लगाते किनारे तक आ ही गई, फिर वो घड़ी आई, जिसका इन दोनों को लंबे समय से प्रतीक्षा थी। इस बीच पिछले दो सालों में दोनों कभी मिले नहीं, क्योंकि दूरियां लंबी थीं, परंतु दोनों के प्रेम ने ये जंग जीत ली।
जब विवाह मंडप पर दोनों ने एक-दुसरे को देखा, तो दोनों की आंखों में सालों की प्रतीक्षा, परिवार और समाज से विजय की चमक और चेहरे पर एक संतोषप्रद मुस्कान थी। उन्हें लगा की अब अंतिम मंजिल पर पहुंच गए, जो एक अगली लंबी यात्रा पर साथ चलने के लिए आगे ले जाएगी। आज भी सालों बाद जब दोनों उस समय को याद करते हैं, तो चेहरे पर एक मुस्कान के साथ ये पंक्तियां बरबस ही मुंह से निकल जाती हैं “जीत जाएंगे हम, तू अगर संग है।” ये पंक्तियां आज भी, उन्हें जीवन के विभिन्न मोड़ों पर आती हुई परीक्षाओं में हौसला देती है। इनकी कहानी इस बात को सिद्ध करती है की यदि प्रेम सच्चा हो और हृदय में धैर्य और एक-दुसरे पर विश्वास हो, तो चाहें कितनी भी बाधाएं आएं आप मंजिल पर पहुंचते अवश्य हैं। कभी-कभार शैफाली बोलती है “हम सच में यहां तक आ गए…विश्वास नहीं होता।” मैं हर बार उसका हाथ थाम कर कहता है “जब साथी सही हो और दोनों साथ चलें, तो सफर अपने आप सुंदर हो जाता है।”शिवमोहन और शैफाली, कानपुर
