ओटीटी प्लेटफॉर्म : बीस्ट इन मी

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Published By Anjali Singh
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“बीस्ट इन मी” एक अमेरिकन अपराध फिल्म है, जिसमें मानव मनोविज्ञान के बहुत क्लिष्ट पहलुओं को छुआ गया है। क्या वो आदमी अपराधी है, जो यह जानता या मानता ही नहीं कि उसका किया गया कर्म अपराध है? कोई कर्म समाज या किसी नियम के अंतर्गत ही तो अपराध होता है। यदि किसी को लगे ही नहीं कि उसके द्वारा किया गया कर्म अपराध होगा, तो उसका कितना दोष होगा? यदि कोई प्रेम वश आपको दुख मुक्त करने लिए कुछ करे, तो क्या उस अपराध में आप दोषमुक्त रह जाएंगे? 

एक लेखिका अपने पड़ोस में रहने आए एक व्यक्ति, जिसको सारा शहर उसकी पत्नी का हत्यारा मानता है, परंतु पत्नी की लाश न मिलने के कारण उसे कानूनन हत्यारा नहीं माना जा सका है, के बारे में एक पुस्तक लिखने का कॉन्ट्रैक्ट लेती है, जो उस आदमी से लिए गए इंटरव्यूज पर आधारित होगी। वह व्यक्ति सोचता है कि वह अपनी बातों और व्यक्तित्व से लेखिका को प्रभावित करके स्वयं को निर्दोष सिद्ध करवा लेगा। लेखिका सोचती है इस प्रकार सभी संबंधित लोगों और पुलिस/एफबीआई से बात करके उसे वास्तविकता का पता चल ही जाएगा। 

कहानी के और भी कई पात्र हैं, जैसे उस व्यक्ति का भाई, पिता, दूसरी जीवित पत्नी, लेखिका की महिला पत्नी, FBI के एजेंट्स इत्यादि और  सबकी अपनी-अपनी कहानियां हैं, जो उस व्यक्ति की कहानी से कहीं न कहीं जुड़ती हैं। वह व्यक्ति कातिल है या नहीं और कहानी किस तरह चलती है, इसके लिए आपको आठ एपिसोड्स देखने पड़ेंगे। 

अंत में लेखिका का प्रतिवेदन, जिसकी एकाध लाइन मैंने ऊपर उद्धृत की है, मनोविज्ञान का पाठ है। पात्रों में मुख्य पात्र यानी संभावित कातिल व्यक्ति के चरित्र को बहुत अच्छी तरह जिया है मैथ्यू रिस ने,लेखिका के रोल में क्लेयर डेंस ने अच्छा अभिनय किया है, परंतु उसके हाव-भाव भारतीयों से मेल नहीं खाते इसलिए कई बार समझ में नहीं आते। 

कहानी लेटस्टार्ट होती है, पर फिर गति पकड़ लेती है, संगीत बहुत सहायक है, हिंदी डबिंग अच्छी हुई है। कुछ भी हो पर साधारण परिस्थितियों का मनोवैज्ञानिक पक्ष दुरूह हो सकता है, यह बात “बीस्ट इन मी” बड़ी स्टाइल से कहती है। समीक्षक- ब्रज राज नारायण सक्सेना

 

 

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