कुतबखाना पुल: लोकार्पण तो हुआ मगर राजनीति भी…जानिए पहचान अब भी क्यों है अधूरी

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Published By Monis Khan
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बरेली, अमृत विचार। कुतुबखाना पुल, जिसे शहर में महादेव पुल के नाम से भी जाना जाने लगा है। वह आज भी अपने नामकरण के औपचारिक पत्थर का इंतजार कर रहा है। उद्घाटन के डेढ़ साल बाद भी पुल का नामकरण नहीं किया जा सका है और शहर के लोग इसे अलग-अलग नामों से जानते हैं।

बरेली स्मार्ट सिटी लिमिटेड की ओर से 104 करोड़ रुपये से अधिक की लागत से कोतवाली के गेट से लेकर कोहाड़ापीर पुल तक बने बहुउपयोगी पुल का लोकार्पण 13 मार्च 2024 को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बरेली कॉलेज मैदान से किया था। पुल कैंट और सदर विधानसभा क्षेत्रों की सीमा पर स्थित है, इसलिए उद्घाटन का श्रेय लेने को लेकर राजनीतिक रस्साकशी देखने को मिली। लोकार्पण वाले दिन अलग-अलग जगहों पर नारियल फोड़े गए, मंच सजा, भाषण हुए, लेकिन जिस शिलापट पर पुल का नाम, लागत और लोकार्पण की तिथि अंकित होनी थी, वह पत्थर आज तक नहीं लगाया जा सका। परिणामस्वरूप, कोतवाली की ओर से चढ़ते समय पुल के किनारे बना शिलापट स्थापित करने को बनाया गया प्लेटफार्म खाली पड़ा है।

आलम यह है कि पुल के नामकरण को लेकर चली खींचतान अब तक थमी नहीं है। स्थानीय लोगों का कहना है कि कैंट और सदर के जनप्रतिनिधि अपने-अपने प्रभाव क्षेत्र का हवाला देकर नामकरण पर सहमति नहीं बना पा रहे हैं। किसी का धार्मिक पहचान पर जोर है तो कोई ऐतिहासिक नाम चाहता है। इधर, प्रशासनिक स्तर पर भी फाइलें आगे-पीछे होती रहीं। लेकिन, नामकरण नहीं हो सका। नगर आयुक्त संजीव कुमार मौर्य ने बताया कि नाम तय होने के बाद ही शिलापट लगाया जा सकता है। इसको लेकर प्रस्ताव तैयार कर लिया है। जल्द ही शिलापट लगा नजर आएगा।

पहले भी इस तरह के विवाद आ चुके सामने
शहर में पुल और फ्लाईओवर के नामकरण और श्रेय की राजनीति कोई नई नहीं है। इससे पहले भी श्यामंगज फ्लाईओवर, मिनी बाईपास के कुछ हिस्सों और चौपुला फ्लाईओवर के नाम को लेकर विवाद सामने आ चुके हैं। तब प्रशासनिक हस्तक्षेप से समाधान निकला और शिलापट लगे। कुतुबखाना पुल के मामले में भी शहरवासी यही उम्मीद कर रहे हैं कि जल्द कोई बीच का रास्ता निकलेगा।

जनता बोली, काम पूरा तो पहचान भी हो
स्थानीय लोगों की भी मांग है कि पुल का नाम तय कर शिलापट लगाया जाए ताकि सरकारी रिकॉर्ड भी पूर्ण हों और जनता का असमंजस। फिलहाल, खाली शिलापट शहर की राजनीति की खामोश कहानी बयां कर रहा है। एक ऐसा पुल, जिस पर से रोज हजारों वाहन गुजरते हैं, लेकिन जिसकी पहचान अब भी अधूरी है।

मेयर ने महादेव सेतु नाम का रखा था प्रस्ताव
मेयर उमेश गौतम ने पुल के उद्घाटन से पहने ही इसका नाम महादेव सेतु रखे जाने का प्रस्ताव किया था। इसे बोर्ड की बैठक में सर्वसम्मति से मंजूरी मिली। इसके लिए निर्णय स्मार्ट सिटी लिमिटेड को लेना है, क्योंकि स्मार्ट सिटी लिमिटेड के बजट से ही पुल का निर्माण कराया गया है। इस बीच तमाम सुझाव आए। किसी ने अटल सेतु तो किसी ने अन्य दूसरों नाम का प्रस्ताव दिया। इस कारण शिलापट का अधूरा रहा।

कुतुबखाना पुल एक नजर में
निर्माण एजेंसी : स्मार्ट सिटी प्राइवेट लिमिटेड
लागत : 104 करोड़ से अधिक
लोकार्पण : 13 मार्च 2024, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ
स्थान : कैंट और सदर विधानसभा सीमा
स्थिति : शिलापट खाली, नामकरण लंबित

 

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