UP: रामपुर के वायलिन की धुन पर झूम रहे देश-दुनिया के संगीत प्रेमी

Amrit Vichar Network
Published By Monis Khan
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रामपुर, अमृत विचार। रामपुर के वायलिन की धुन पर विदेशी झूम रहे हैं। रामपुर में बना वायलिन देश ही नहीं विदेश में भी धूम मचा रहा है। वायलिन कश्मीर और हिमाचल से फर्र की लकड़ी, कोलकाता से गज बो, तार, खूंटी, प्ले पीस, फिंगर बोर्ड, एंड पिन और साउंड के लिए जर्मनी की प्लाईवुड से वायलिन तैयार होते हैं।

रामपुरी वायलिन का इतिहास करीब 77 साल पुराना है। संगीत और काष्ठशिल्प के शौकीन अमीरुद्दीन और हसीनुद्दीन दोनों सगे भाइयों का हुनर देश दुनिया में सैकड़ों लोगों को रोजगार दे रहा है। कारीगर मुन्ना बताते हैं कि रामपुरी वायलिन का मुकाबला चायनीज वायलिन से है। कम कीमत के बावजूद चायना मार्केट को यहां का वायलिन टक्कर दे रहा है। चाइनीज वायलिन के मुकाबले रामपुरी वायलिन अधिक पसंद किया जाता है। 

क्योंकि, रामपुर में तैयार होने वाला वायलिन मजबूत होने के साथ-साथ साफ धुन निकालता है। चाइना के सापेक्ष रामपुर का वायलिन महंगा है लेकिन, संगीतकार रामपुरी वायलिन को खरीदने में दिलचस्पी दिखाते हैं। रामपुरी वायलिन की कीमत 2500 रुपये प्रति वायलिन से शुरू होती है यह कारखाने का रेट है। बाजार में वायलिन की कोई फिक्स कीमत नहीं है। क्रिसमस पर वायलिन के खूब आर्डर आए थे। इसके लिए नए साल के लिए भी वायलिन तैयार किए जा रहे हैं।

चर्च और स्कूलों में रहती है वायलिन की मांग
वायलिन की मांग दक्षिण भारत और गोवा के गिरजाघरों में काफी रहता है। इसके अलावा स्कूलों वायलिन बजाना सीखने के लिए छात्र-छात्राएं वायलिन काफी खरीदते हैं। फिल्म मोहब्बतें के गीत हम को हमीं से चुरा लो से युवाओं में वायलिन का क्रेज काफी बढ़ गया था। रामपुर में बनने वाले एक वायलिन को करीब आधा दर्जन कारीगर शेप देते हैं। रामपुर में पुराना गंज घेर तोगां मोड़ समेत लगभग 10 जगह वायलिन बनाने का काम होता है।

इन जगहों के लिए होती है रामपुरी वायलिन की सप्लाई
कोलकाता, दिल्ली, तमिलनाडु और पंजाब, कोलकाता, तमिलनाडु, दिल्ली से श्रीलंका, बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफ्रीका को एक्सपोर्ट होता है। वायलिन कारोबारी ग्यासउद्दीन ने बताया कि वायलिन भले ही रामपुर में बनता है, लेकिन इसके लिए कच्चा माल कोलकाता समेत दूसरी जगहों से आता है। साउंड के लिए जो लकड़ी इस्तेमाल होती है, वह जर्मन की है। जो दिल्ली और गाजियाबाद से मंगवायी जाती है। इसके अलावा गज बो, तार, खूंटी, फिंगरबोर्ड, एंडपिन आदि कोलकाता से मंगवायी जाती हैं। जबकि, फर्र की लकड़ी हिमाचल और कश्मीर से खरीदी जाती है। भारतीय लकड़ी में उतनी अच्छी साउंड नहीं निकलती है।

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