इस कस्बे को महात्मा गांधी ने कहा था भारत का स्विट्ज़रलैंड , इसी जगह लिखी थी उन्होंने अपनी पुस्तक “अनासक्ति योग”

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हल्द्वानी, अमृत विचार। उत्तराखंड का छोटा सा कस्बा कौसानी एक रमणीय स्थल है। हिमालय की गोद में बसा यह कस्बा होने को तो छोटा सा है मगर यहां का इतिहास काफी बड़ा है दरअसल बागेश्वर जिले के अंतर्गत आने वाला यह कस्बा “बापू” महात्मा गांधी की याद से जुड़ा है। इसी जगह से महात्मा गांधी …

हल्द्वानी, अमृत विचार। उत्तराखंड का छोटा सा कस्बा कौसानी एक रमणीय स्थल है। हिमालय की गोद में बसा यह कस्बा होने को तो छोटा सा है मगर यहां का इतिहास काफी बड़ा है दरअसल बागेश्वर जिले के अंतर्गत आने वाला यह कस्बा “बापू” महात्मा गांधी की याद से जुड़ा है।

इसी जगह से महात्मा गांधी ने कौसानी से पूरे कुमाऊं में आजादी की अलख जगाई। यहां बापू 1929 में आए और तकरीबन 14 दिन रुके। आंदोलन को धार देते हुए कुमाऊं यात्रा में छुआछूत जैसी कुरीति पर भी प्रहार किया। यही कारण रहा कि 22 दिवसीय यात्रा में आंदोलन के लिए दान में मिले 24 हजार रुपये भी गांधीजी ने हरिजन कोष में दे दिए। गांधी जी ने कौसानी के प्राकृतिक सौंदर्य से अभिभूत होकर कहा कि कौसानी भारत का स्विट्ज़रलैंड है।

अपने कौसानी प्रवास पर उन्होंने अनासक्ति योग पुस्तक की प्रस्तावना लिखी। 22 जून 1929 को वह कौसानी से पैदल और डोली के सहारे बागेश्वर मुख्यालय पहुंचे, जहां स्वराज भवन की नींव रखी। एक दिन रुकने के बाद फिर कौसानी के लिए प्रस्थान कर गए। इस पहली यात्रा में महात्मा गांधी ने 26 स्थानों पर भाषण दिए। सभी में स्वदेशी, स्वावलंबन, आत्मशुद्धि, खादी प्रचार व समाज में व्याप्त कुरीतियों को त्यागने पर जोर दिया। कुमाऊं भ्रमण में उनके साथ प्रमुख रूप से बद्री दत्त पांडे, पं.गोविंद बल्लभ पंत, हीरा बल्लभ पांडे, मोहन सिंह मेहता, विक्टर मोहन जोशी, रुद्रदत्त भट्ट भी मौजूद रहे।

आश्रम के बाहर लगी बापू की मूर्ति

जब बापू को भा गया बागेश्वरी चरखा

बागेश्वर प्रवास के दौरान जीत सिंह टंगडिया ने बापू को स्वनिर्मित चरखा भेंट किया। इस चरखे की विशेषता थी कि वह कम समय में ज्यादा ऊन कात लेता था। वर्धा पहुंचने के बाद बापू ने विक्टर मोहन जोशी को पत्र लिखकर एक और चरखा मंगवाया, जिसे नाम दिया बागेश्वरी चरखा। जीत सिंह ने बाद में उस चरखे में और बदलाव किया, जो कताई के साथ ही बटाई भी कर लेता था। 1934 में तो उन्होंने घर में चरखा आश्रम की ही स्थापना कर दी।

 

अनासक्ति आश्रम में आज भी होती है प्राथना सभा

गांधीजी के अल्प निवास से प्रसिद्ध हुआ यह स्थान अब गांधीजी के जीवन की झांकियों और उनके जीवन दर्शन के लिए जाना जाता है। यहां रुकने की भी व्यवस्था है। आश्रमवासियों को कुछ नियमों का पालन करना होता है, जैसे प्रार्थना सभा में अनिवार्य उपस्थिति, मद्य-मांस आदि का पूर्णतयः निषेध इत्यादि। यहां आने वाले लोग भी प्रार्थना सभा में शामिल हो सकते हैं जो कि एक नियत समय पर होती है।

तो इस वजह से पड़ा ये नाम..

आश्रम का नाम अनासक्ति रखा गया। जिसका अर्थ है कार्यों के परिणामों से अलगाव। क्योंकि गांधी जी ने यहां रहते हुए जो पुस्तक लिखी उसे नाम दिया गया अनासक्ति योग जिस के बाद इस आश्रम का नाम अनासक्ति आश्रम पड़ा। आश्रम के बाहर गांधी के तीन बंदरों की मूर्तियां हैं जो आज भी उनकी तीन सीखों की याद दिलाती है।

आश्रम में है तस्वीरों का संग्रह

अनासक्ति आश्रम में महात्मा गांधी के जीवन काल से जुड़ी 150 दुर्लभ तस्वीरें उपलब्ध हैं। इन चित्रों में 1887 से 1891 के दौरान इंग्लैंड में बैरिस्टर की पढ़ाई के दौरान से लेकर उनकी अस्थियों के विसर्जन तक की यादें जुड़ी हैं। आश्रम में महात्मा गांधी और उनकी धर्मपत्नी कस्तूरबा गांधी की एक तस्वीर भी मौजूद है। आश्रम के संग्रहालय में प्रवेश करते ही बायीं दीवार पर टंगा यह दुर्लभ चित्र है, जिसे दक्षिण अफ्रीका में खींचा गया था।

अनासक्ति आश्रम

बापू की वंशावली की भी मिलती है जानकारी

अनासक्ति आश्रम में महात्मा गांधी की वंशावली के बारे में भी जानकारी मौजूद है। संग्रहालय में मौजूद एक चित्र में उनकी वंशावली को लेकर विस्तार से जानकारी दी गई है, जिसकी सहायता से लोगों को बापू की कई पीढ़ियों की जानकारी मिलती है।

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