देश की आजादी में ‘जय हिंद’ का नारा देने वाले सेनानी, उत्तराखंड के कुमाऊं से है इनका नाता
भारत में सर्वप्रथम 1921 में “जयहिन्द” नारे का उद्घोष करने वाले महान देशभक्त राम सिंह धौनी का जन्म 24 फरवरी सन् 1893 में अल्मोड़ा जिले के तल्ला सालम पट्टी में तल्ला बिनौला गांव में हुआ था। इनकी माता का नाम कुन्ती देवी तथा पिता का नाम हिम्मत सिंह धौनी था। राम सिंह धौनी बचपन से …
भारत में सर्वप्रथम 1921 में “जयहिन्द” नारे का उद्घोष करने वाले महान देशभक्त राम सिंह धौनी का जन्म 24 फरवरी सन् 1893 में अल्मोड़ा जिले के तल्ला सालम पट्टी में तल्ला बिनौला गांव में हुआ था। इनकी माता का नाम कुन्ती देवी तथा पिता का नाम हिम्मत सिंह धौनी था। राम सिंह धौनी बचपन से ही अति प्रतिभाशाली एवं परिश्रमी थे। सन् 1908 के जैती (सालम) से कक्षा चार की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद उन्होंने अल्मोड़ा टाउन स्कूल में कक्षा पांच में प्रवेश लिया तथा हाईस्कूल तक इसी विद्यालय में अध्ययन किया। मिडिल परीक्षा में सारे सूबे में प्रथम पास होने पर उन्हें पांच रुपये प्रतिमाह छात्रवृत्ति भी मिलने लगी।

भारतीय रियासतों में राजनीतिक आन्दोलनों के जन्मदाताओं में राम सिंह धौनी का नाम प्रमुख है। सन 1921 से 1922 तक धौनी जी द्वारा फतेहपुर में किए गए राजनीतिक कार्यों का विशेष महत्त्व है। उन्होंने पहली बार फतेहपुर में राष्ट्रीय भावनाओं के प्रचार-प्रसार के लिए सभाओं का गठन किया तथा नगर के प्रतिष्ठित लोगों एवं नवयुवकों को अपने साथ लिया, जिसमें डॉ. रामजीवन त्रिपाठी, कुमार नारायण सिंह, युधिष्ठिर प्रसाद सिंहानिया, गोपाल नेवटिया, रामेश्वर तथा मूंगी लाल आदि के नाम विशेष उल्लेखनीय हैं।
फतेहपुर में ही उन्होंने एक ‘साहित्य समिति’ की स्थापना की, जिसका कार्य लोगों में शिक्षा और एकता का प्रचार करना था। इस समिति के साप्ताहिक एवं पाक्षिक अधिवेशन हुआ करते थे। कभी-कभी कवि सम्मेलन भी हुआ करते थे। एक कवि सम्मेलन में धौनी जी ने अपनी कविता ‘सफाई की सफाई’ सुनाई थी। वह कविता लोगों को इतनी पसंद आई कि जनता के आग्रह पर धौनी जी को उसे नौ बार सुनाना पड़ा। धौनी जी ने ‘साहित्य समिति’ की ओर से ‘बधु’ नामक पाक्षिक पत्र निकलवाया तथा डॉ. रामजीवन त्रिपाठी उसके संपादक बनाए गए। इस पत्र में धौनी जी के देश भक्ति एवं राष्ट्र प्रेम संबंधी कई लेख एवं कविताएँ प्रकाशित हुई।
1912-13 के आसपास अल्मोड़ा में देश के कई महान पुरुषों का आगमन हुआ, जिनमें काका कालेलकर, आनंद स्वामी, पं. मदनमोहन मालवीय, विनय कुमार सरकार आदि प्रमुख थे. इन महापुरुषों के दर्शन एवं उपदेशों से रामसिंह के मन में देश भक्ति एवं राष्ट्रप्रेम की भावना गहरी होती गई. सन् 1912 ई. में स्वामी सत्यदेव जी अल्मोड़ा आए और उन्होंने यहाँ पर ‘शुद्ध साहित्य समिति’ की स्थापना की धौनी जी इस साहित्य समिति’ के स्थाई सदस्य बन गए. स्वामी जी के भाषणों तथा ‘शुद्ध साहित्य समिति’ के क्रियाकलापों ने उनके जीवन की दिशा बदल दी।

अब उनका समय हाईस्कूल की पढ़ाई के साथ-साथ श्रेष्ठ ग्रंथों के गहन अध्ययन तथा अखबारों एवं पत्र-पत्रिकाओं के पठन-पाठन में व्यतीत होने लगा. स्वामी सत्यदेव जी द्वारा अपने निवास स्थान नारायण तेवाड़ी देवाल में खोले गए समर स्कूल में भी धौनी जी का आना-जाना बना रहता था। धौनी जी ने हाईस्कूल के अपने सहपाठियों के सहयोग से एक छात्र सभा सम्मेलन का भी गठन किया जिसमें समाज सुधार, राष्ट्रप्रेम एवं हिन्दी भाषा की उन्नति विषयक चर्चाएं होती थीं। इन्हीं दिनों धौनी जी ने डॉ. हेमचन्द्र जोशी जी से बंगला भाषा भी सीखी।
हाईस्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए धौनी जी इलाहाबाद चले गए और वहां उन्होंने इविन क्रिश्चियन कालेज में प्रवेश लिया। सन 1917 में उन्होंने एफए तथा 1919 ई० में बीए की परीक्षा उत्तीर्ण की। बीए की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद वे सालम लौट आए। कहा जाता है कि इस क्षेत्र में रामसिंह धौनी ही बीए पास करने वाले पहले व्यक्ति थे। यही कारण था कि जब धौनी जी बीए पास करके लौटे, तो सालम की जनता ढोल-नगाड़ों से उनका स्वागत एवं जय-जयकार करते हए उन्हें अल्मोड़ा से सालम तक पालकी में ले गई थी।
विद्यार्थी जीवन से ही राजनीतिक घटना-चक्र के प्रति रामसिंह धौनी जी की गहरी रुचि थी। इलाहाबाद में विद्याध्ययन के दौरान फिलाडेलफिया छात्रावास में रहते हुए, वे अपने साथियों के साथ राष्ट्रीय समस्याओं पर, विभिन्न विचार-गोष्ठियों में विचार-विमर्श किया करते थे। कालेज की हिन्दी साहित्य सभा में वे नियमित रूप से जाया करते थे। हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग से भी वे सम्बद्ध थे। उनका अधिकांश समय हिंदी-अंग्रेजी के समाचार-पत्रों को पढ़ने, सभाओं एवं विचार गोष्ठियों में भाग लेने तथा छात्रों में राष्ट्रीय भावना का प्रचार करने में बीतता था।
होम रूल लीग का सदस्य बनकर वे देश के स्वतंत्रता आन्दोलन से सीधे जुड़ गये थे। धौनी जी में देशभक्ति एव स्वाभिमान की भावना इतनी प्रबल थी कि उन्होंने विद्यार्थी जीवन में ही सरकारी नौकरी न करने का पक्का निश्चय कर लिया था तथा अन्त तक उसका निर्वाह भी किया। 1919 में उनके बीए पास करने के उपरांत तत्कालीन कुमाऊँ कमिश्नर बिढम (सन् 1914-1924 ई०) ने उन्हें नायब तहसीलदार के पद पर कार्य करने को कहा परन्तु धौनी जी ने अपनी निर्धनता के बावजूद उसे ठुकरा दिया, जिससे उनके निर्धन पिता को गहरा आघात भी लगा।
सन् 1920 इ० में धौनी जी राजस्थान चले गए और वहां बीकानेर के राजा के सूरतगढ़ स्कूल में 80)रु० मासिक वेतन पर एक वर्ष तक कार्य किया. वहां से धौनी जी फतेहपुर चले गये तथा रामचन्द्र नेवटिया हाईस्कूल में सहायक अध्यापक तथा प्रधा. नाध्यापक के पदों पर कार्य किया। जब 1921 में सारे भारतवर्ष में कांग्रेस कमेटियां बनाई जाने लगी, तो धौनी जी ही पहले व्यक्ति थे जिन्होंने फतेहपुर में कांग्रेस कमेटी की स्थापना कर वहां आजादी का बिगुल बजा दिया। फतेहपुर में ही धौनी जी ने युवक सभा की भी स्थापना की जिसके वे स्वयं संरक्षक थे। युवक सभा के सदस्यों का मुख्य कार्य अछूत बस्तियों के लोगों में शिक्षा, सफाई तथा नशाबंदी का प्रचार -प्रसार करना था।
श्री गोपाल नेवटिया तथा श्री मदनलाल जालान युवक सभा के संचालक थे। धौनी जी ने फतेहपुर (जयपुर) हाईस्कूल के छात्रों के शारीरिक, मानसिक तथा आत्मिक विकास के लिए छात्र सभा की स्थापना भी की, जिसके संचालक वे स्वयं थे तथा पाँच रुपये वार्षिक आर्थिक सहायता भी देते थे। इस बीच फतेहपुर में उन्होंने कई जनसभाओं में भाषण दिए तथा देश को आजाद करने का आह्वान किया। धौनी जी ने अपने स्कूल में फुटबॉल को विदेशी खेल समझ कर बंद करवा दिया तथा उसके स्थान पर कबड्डी एवं अन्य देशी खेलों को प्रारंभ करवाया। यह लेख पुरवासी पत्रिका से साभार लिया गया है, जिसके लेखक डॉ. शेर सिंह बिष्ट हैं।
