यूट्यूबर बताकर भरण-पोषण याचिका खारिज करना अनुचित : हाईकोर्ट
प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पत्नी के भरण-पोषण आवेदन को खारिज करने वाले परिवार न्यायालय, बरेली के आदेश को रद्द करते हुए स्पष्ट किया कि केवल अनुमान के आधार पर भरण पोषण याचिका खारिज नहीं की जा सकती है।
बतौर यूट्यूबर ‘रील्स’ बनाने वाली पत्नी के लिए यह मान लेना कि वह स्वयं अपना भरण-पोषण करने में सक्षम है, विधिसंगत नहीं है। बिना किसी ठोस मूल्यांकन के पत्नी की आय के संबंध में निष्कर्ष निकालना कानून की दृष्टि में टिकाऊ नहीं है।
उक्त आदेश न्यायमूर्ति हरवीर सिंह की एकलपीठ ने फरहा नाज़ की अपराधिक पुनरीक्षण याचिका को स्वीकार करते हुए पारित किया। कोर्ट ने मामले के तथ्यों के आधार पर निष्कर्ष दिया कि जब तक परिवार न्यायालय पक्षकारों की आय का निर्धारण आयकर रिटर्न, वेतन पर्ची अथवा अन्य विश्वसनीय दस्तावेजी साक्ष्यों के आधार पर नहीं करता, तब तक भरण-पोषण याचिका पर निर्णय नहीं दिया जा सकता।
वर्तमान मामला बरेली के परिवार न्यायालय से जुड़ा है, जहां पत्नी की भरण-पोषण याचिका इस आधार पर खारिज कर दी गई थी कि वह यूट्यूबर है और स्व-रोजगार में है। कोर्ट में पत्नी की ओर से तर्क दिया गया कि परिवार न्यायालय ने केवल अनुमान के आधार पर यह मान लिया कि ‘रील्स’ से उसे आय हो रही है, जबकि यह स्पष्ट नहीं किया गया कि वास्तव में उसकी कितनी कमाई है।
यह भी बताया गया कि पति बरेली नगर पालिका में तृतीय श्रेणी का नियमित कर्मचारी है और उसकी आय निश्चित है, वहीं पति की ओर से तर्क दिया गया कि पत्नी योग्य है और स्वयं कमाने में सक्षम है। दोनों पक्षों के तर्कों पर विचार करते हुए कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के रजनेश बनाम नेहा मामले का हवाला देते हुए कहा कि भरण- पोषण तय करने से पहले दोनों पक्षों की आय से संबंधित समुचित सामग्री रिकॉर्ड पर लाई जानी चाहिए थी, जो वर्तमान मामले में निचली अदालत के समक्ष प्रस्तुत नहीं किए गए।
कोर्ट ने पुनरीक्षण याचिका स्वीकार करते हुए परिवार न्यायालय का आदेश निरस्त कर दिया और मामले को पुनः उसी न्यायालय को भेजते हुए निर्देश दिया कि आवश्यक दस्तावेज मंगाकर कानून के अनुसार नया आदेश पारित किया जाए।
