जानिए अल्मोड़ा की बेटी कैसे बनी पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री की पत्नी…
उत्तराखंड के सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा में जन्मी आयरीन पंत की कहानी शायद ही आप जानते होंगे। कहानी किसी फिल्मी स्टोरी से कम नहीं है। कुमाऊं की यह बेटी कब, कैसे पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री लियाकत अली खां की पत्नी बन गई, यह वाकई काफी दिलचस्प है। इसे एक प्रेम कहानी से जोड़कर देखा जा सकता …
उत्तराखंड के सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा में जन्मी आयरीन पंत की कहानी शायद ही आप जानते होंगे। कहानी किसी फिल्मी स्टोरी से कम नहीं है। कुमाऊं की यह बेटी कब, कैसे पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री लियाकत अली खां की पत्नी बन गई, यह वाकई काफी दिलचस्प है। इसे एक प्रेम कहानी से जोड़कर देखा जा सकता है। भारत के उस दौर का प्रेम जब वह अंग्रेजों का गुलाम था। दूसरे धर्म से जुड़कर अपनी दुनिया बसाना वाकई पूरी दुनिया से बैर लेने जैसा था।

आयरीन रूथ पंत 13 फरवरी 1905 को अल्मोड़ा में डेनियल पंत के घर में जन्म लिया था। आयरीन वैसे तो एक उच्च कुलीन कुमाऊंनी ब्राह्मण परिवार से थीं, लेकिन उनके परिवार ने वर्ष 1874 में ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया था। उनके दादा जी तारादत्त पंत के धर्मांतरण के बाद ब्राह्मणों ने उन्हें जाति से बहिष्कृत कर दिया था। तारादत्त उस समय एक जाने माने वैद्य थे मगर उनके ईसाई धर्म अपनाने से समुदाय के लोगों में इतना आक्रोश था कि उन्होंने तारादत्त को मृत घोषित कर उनका श्राद्ध भी कर दिया। डेनियल की बेठी आयरीन पंत की शुरुआती शिक्षा अल्मोड़ा और नैनीताल में हुई। तब भारतीय समाज में लड़कियों का ज्यादा शिक्षित होना अच्छा नहीं माना जाता था, लेकिन उसके बावजूद उनके परिवार ने उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए उन्हें लखनऊ भेज दिया।
लखनऊ के इसाबेल थोबर्न कॉलेज से आयरीन ने अर्थशास्त्र और अध्यात्मिक अध्ययन में डिग्री हासिल ली। वह अपनी कक्षा में अकेली छात्रा थीं, लड़के उन्हें काफी परेशान करते थे। 1927 में जब वह साइकिल चलाती थीं, तो लोग उन्हें घूरते थे। क्योंकि लड़कियों और महिलाओं का तब ऐसे देखा जाना दुर्लभ होता था। लड़के उनको परेशान करने के लिए उनकी साइकिल की हवा निकाल देते थे।
लखनऊ में जब आयरीन अपनी पढ़ाई कर रही थीं तो बिहार में भीषण बाढ़ आ गई। अन्य जागरूक छात्रों की तरह ही आयरीन भी बाढ़ पीड़ितों की मदद के लिए आगे आईं। नाटकों व सांस्कृतिक कार्यक्रमों के जरिये पैसा इकठ्ठा करने की मुहीम शुरू की गई। यहां से उनके जीवन का एक नया दौर शुरू हुआ।
आयरीन टिकट बेचने के लिए जब लखनऊ विधानसभा पहुंची, तो उनकी मुलाकात लियाकत से हुई। लियाकत टिकट खरीदने के लिए राजी नहीं थे, क्योंकि उनके पास कोई कंपनी नहीं थी। तब आयरीन ने यह कहते हुए उन्हें टिकट खरीदने को कहा कि अगर कार्यक्रम में साथ आने के लिए उनके पास कोई नहीं है, तो वह उनके साथ बैठ जाएंगी। इस मुलाकात ने दोनों की जिंदगी बदल दी।
इसके बाद आयरीन दिल्ली के इन्द्रप्रस्थ कॉलेज में प्रोफेसर बन गयीं और लियाकत उत्तर प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष बने। आयरीन ने पत्र लिखकर लियाकत को बधाई दी और इसके बदले में लियाकत ने उन्हें जवाब में लिखा कि “मुझे जान कर खुशी हुई कि आप दिल्ली में रह रही हैं क्योंकि ये मेरे पुश्तैनी शहर करनाल के बिल्कुल पास है। जब मैं लखनऊ जाते हुए दिल्ली हो कर गुजरुंगा, तो क्या आप मेरे साथ कनॉट प्लेस के वेंगर रेस्तरां में चाय पीना पसंद करेंगी?

आयरीन के हामी भरने के बाद मुलाकातों का सिलसिला आगे बढ़ा और शादी तक पहुंच गया। पहले से ही शादीशुदा लियाकत के एक पुत्र विलाकत था। उनकी पहली पत्नी जहांआरा थी, जो कि उनकी चचेरी बहन थी। तमाम विरोधों के बाद 16 अप्रैल 1933 को आयरीन और लियाकत विवाह बंधन में बंध गए। यह शादी दिल्ली के सबसे आलीशान होटल मेंडेस में हुई। जामा मस्जिद के इमाम ने उनका निकाह पढ़वाया था। आयरीन ने इस्लाम धर्म कबूल कर लिया और उनका नया नाम गुल-ए-राना रखा गया।
1947 में विभागजन के बाद गुल-ए-राना लियाकत खां और अपने दो बेटों अशरफ और अकबर के साथ दिल्ली के वेलिंगटन हवाई अड्डे से डकोटा विमान में कराची के लिए रवाना हुईं। आजादी और विभाजन के बाद लियाकत पकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री बने और राना पकिस्तान की मादर-ए-वतन का दर्जा मिला। उन्हें मंत्रिमंडल में अल्पसंख्यक और महिला मंत्री के तौर पर भी जगह दी गई।
16 अक्टूबर 1951 को रावलपिंडी में एक सभा को संबोधित करने के दौरान लियाकत अली की हत्या कर दी गयी। तब राना के पास सिर्फ 300 रुपये नगद थे। लियाकत अपने पीछे कोई संपत्ति नहीं छोड़ गए थे।
विभाजन के बाद अपनी दिल्ली वाली जायदाद बेचने के बजाय उन्होंने पाकिस्तान को दान दे दी। जिसे पकिस्तान हाउस के नाम से जाना जाता है। वर्तमान में यहां पकिस्तान के राजदूत रहते हैं। पकिस्तान सरकार ने उन्हें राना को 2000 रुपये महीना देना शुरू किया। बाद में उन्हें हॉलेंड और इटली में पाकिस्तान का राजदूत बनाकर भेजा गया।

उनके आकर्षक व्यक्तित्व के कारण हॉलैंड की रानी भी उनकी दोस्त बन गई। हॉलैंड ने उन्हें अपने देश का सबसे बड़ा नागरिक सम्मान ‘औरेंज अवॉर्ड’ भी दिया। उन्होंने पाकिस्तान में रहकर महिला अधिकारों की लड़ाई लड़ी और भुट्टो की फांसी के खिलाफ कट्टरपंथियों सेमोर्चा लिया। उन्होंने जियाउल हक द्वारा इस्लामिक कानून लागू किये जाने के खिलाफ भी लड़ाई लड़ी। वह सिंध की गर्वनर और कराची यूनिवर्सिटी की पहली महिला वाइस चांसलर भी बनी। इसके अलावा वह नीदरलैंड, इटली, ट्यूनिशिया में पाकिस्तान की राजदूत रहीं। उन्हें 1978 में संयुक्त राष्ट्र ने ह्यूमन राइट्स के लिए सम्मानित किया गया।
