‘रीतिकाल के राज्याश्रित महाकवि बिहारी के दोहे का परिचय’

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महाकवि बिहारी की गणना रीतिकाल के राज्याश्रित कवियों में ही की जाती है। महाराज जयसिंह के दरबार में थे ही, किन्तु राजा के मन में उनका सम्मान इतना था कि जब राजा एक नयी-नवेली रानी के साथ राजकाज से भी विरत हो गये, तो बिहारी ने पहले बड़ी रानी से चिंता प्रकट की फिर उनकी …

महाकवि बिहारी की गणना रीतिकाल के राज्याश्रित कवियों में ही की जाती है। महाराज जयसिंह के दरबार में थे ही, किन्तु राजा के मन में उनका सम्मान इतना था कि जब राजा एक नयी-नवेली रानी के साथ राजकाज से भी विरत हो गये, तो बिहारी ने पहले बड़ी रानी से चिंता प्रकट की फिर उनकी सहमति से उन्होंने एक दोहा लिख कर उस महल के अन्तरंग में पंहुचवा दिया ,जहां राजा विलासमग्न था।

नहिं पराग नहिं मधुर मधु नहिं विकास यह काल। अली कली ही सों बिंध्यौ ,आगें कौन हवाल। राजा ने दोहे के भाव को गहराई से आत्मसात कर लिया था। वह महल से बाहर आया,दरबार लगा और राजकाज के समस्याओं का समाधान करने लगा। जब औरंगजेब ने राजाजयसिंह को आदेश दिया कि वह शिवाजी के विरुद्ध युद्ध करें।

युद्ध की तैयारी चल रही थी उन दिनों बिहारी मथुरा में थे , जब वे आमेर पंहुचे तो मामले की नजाकत को पहचाना। कूच करने को सेना तत्पर थी ,तभी बिहारी ने महाराज को एक दोहा सुनाया….

स्वारथ सुकृत न ,स्रम बृथा, देखि बिहंग विचार ।

बाज पराये पानि पर ,तू पच्छीनु न मार ।

यह अन्योक्ति है ।

इसमें विहंग [पक्षी :बाज] को संबोधन है कि दूसरे के हाथ पर बैठ कर तू पक्षियों को ही क्यों मार रहा है ? न मार ! तेरा न स्वार्थ सिद्ध होगा न ही यह पुण्य का कार्य ही होगा।

– राजेन्द्र रंजन चतुर्वेदी

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